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अडानी -हिंडनबर्ग मामला : सच तो यही है कि लोकसभा चुनाव तक भी सेबी की जांच पूरी नहीं होगी —–

Lok Sabha Election: क्या देश के लोगों को लगता है कि कोई भी जांच आयोग और जांच कमेटी समय पर कोई काम करती है और अगर समय पर काम होने के बाद जब उसकी रिपोर्ट सामने आती है तो सरकार उस पर अमल करती है ? इतिहास के पन्नो को टटोल कर देखिएगा तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। दरअसल इस देश का इतिहास कहता है कि किसी मामले की जांच के लिए जब भी किसी जांच आयोग या जांच कमिटी का गठन होता है तो उसकी रिपोर्ट समय पर नहीं आती और आती भी है उस रिपोर्ट को कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है। सरकार बदल जाती है और फिर उस पर सवाल नहीं उठता। जांच आयोग पर जो पैसे खर्च किये जाते हैं वह भी बेकार चले जाते हैं।

अभी हाल में ही अडानी की कंपनियों को लेकर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आयी। देश और दुनिया में तहलका मच गया। अडानी की कंपनियों पर कई तरह की कलंकित करने वाले वाली बातें कही गई थी। अडानी उस रिपोर्ट को नकारते रहे लेकिन सच यही है कि उस रिपोर्ट के बाद अडानी की कंपनी रसातल की तरफ चली गई। देखते -देखते उसके 12 लाख करोड़ की पूंजी ख़त्म हो गई। अडानी जो पहले दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार थे ,कही के नहीं रहे। उनकी साख भी ख़त्म हो गई। देश और दुनिया के बैंको ,शेयर बाजारों से उसे ब्लैक लिस्ट किया गया। लेकिन मामला यही नहीं रुका। विपक्षी पार्टियों ने इस कंपनी की जांच जेपीसी से कराने की मांग करती रही लेकिन सरकार ने विपक्ष की आवाज को दबा दिया। आज भी विपक्ष अडानी मसले की जांच पर अड़ा है लेकिन सरकार मौन है।

फिर सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा। सुप्रीम अदालत ने इस मसले की जांच के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर दिया और सेबी को कहा कि इस मसले की जांच जल्द करे। और यह जांच एक्सपर्ट कमेटी की देखरेख में की जाए। याद रहे सेबी केंद्र सरकार के अधीन काम करती है। अगर उसे इस मामले की जांच करनी होती तो वह पहले भी जांच कर सकती थी। लेकिन उसने वैसा कुछ भी नहीं। लेकिन जब दबाव बढ़ा तो सेबी जांच के लिए तैयार हुई। मई के पहले सप्ताह तक सेबी को जांच की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने रखना था।

लेकिन अब एक दिलचस्प कहानी सेबी ने तैयार की है। सेबी को अदालत ने दो महीने में जांच रिपोर्ट तैयार करने को कहा था। अब उसकी अवधि दो मई को ख़त्म भी हो गई। लेकिन इससे पहले सेबी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यह जांच काफी जटिल है। सेबी ने कहा कि अडानी समूह में 12 संदिग्ध लेनदेन तो हुए हैं लेकिन इसकी जांच में काफी समय लग सकता है। सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से और 6 महीने का समय माँगा है। सेबी ने कहा है कि हालांकि इस जांच में 15 महीने का समय लग सकता है लेकिन चुकी हम तेजी से काम कर रहे हैं इसलिए हमें और 6 महीने का समय दिया जाए।

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साफ़ है कि सेबी ने अब अक्टूबर -नवंबर तक जांच करने की बात कही है। सेबी का इतिहास रहा है कि कोई भी जांच वह पांच से छह साल तक करती रहती है लेकिन उसके परिणाम सामने नहीं आते हैं। अगर छह महीने बाद फिर से सेबी ने और समय माँगा तब क्या होगा ? क्या अडानी कंपनी की जांच हो पाएगी ? अगले साल ही देश चुनावी मूड में चला जाएगा। फिर किसी को अडानी मसले की याद भी नहीं रहेगी। ऐसे में जांच अगर होती भी है तो उसके क्या मायने होंगे ? कह सकते हैं कि फिर चुनाव के बाद ही जांच रिपोर्ट सामने आएगी। अगर बीजेपी की सरकार वापस आ गई तो फिर जांच की रिपोर्ट आएगी भी या नहीं। यह कौन जाने ! और सरकार बदल गई तो इस रिपोर्ट का मतलब क्या होगा ? ऐसे में लगता है कि यह सब जानबूझ कर किया जा रहा है। अडानी मसले की जांच कोई करना ही नहीं चाहता। अगर जांच समय से पहले हो जाती तो विपक्ष को एक बड़ा मुदा मिल सकता था लेकिन सरकार ऐसा क्यों चाहेगी ? जाहिर है अब इस मुद्दे से जनता का ध्यान भी हट जाएगा और अडानी का खेल चलता रहेगा। एक सवाल उठता है कि आखिर अडानी को बचाना क्यों चाहती है सरकार ? यही सवाल राहुल गाँधी भी तो पूछ रहे हैं। सेबी की कहानी यही तो बता रही है।

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Ashok Kumar

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