Ayodhya Verdict: जस्टिस आर नरीमन ने अयोध्या फैसले को बताया था न्याय का मजाक, अब पूर्व CJI ने दिया जवाब
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाया था। तब बेंच में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एस बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे।
Ayodhya Verdict: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अयोध्या मामले पर फैसले पर खुलकर बात की है। उन्होंने कहा कि फैसले की आलोचना करने वाले कई लोगों ने एक हजार से अधिक पन्नों के फैसले का एक भी पन्ना नहीं पढ़ा है। उन्होंने जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन के उस बयान पर भी प्रतिक्रिया दी जिसमें उन्होंने कहा था कि अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला सुनाते समय धर्मनिरपेक्षता को उचित स्थान नहीं दिया गया।
टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में शामिल हुए पूर्व जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस नरीमन की टिप्पणियों के बारे में कहा, “मैं फ़ैसले में एक पक्ष था, इसलिए फ़ैसले का बचाव करना या उसकी आलोचना करना मेरे काम का हिस्सा नहीं है। जब कोई जज किसी फ़ैसले में पक्ष होता है, तो वह फ़ैसला सार्वजनिक संपत्ति बन जाता है और दूसरों को इसके बारे में बात करनी पड़ती है।”
उन्होंने कहा, ‘खैर, जस्टिस नरीमन ने फ़ैसले की आलोचना की है, इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि उनकी आलोचना इस बात का समर्थन करती है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत जीवित हैं। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत अंतरात्मा की स्वतंत्रता है और जस्टिस नरीमन जो कर रहे हैं, वह अपनी अंतरात्मा के ज़रिए कर रहे हैं।’
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उन्होंने कहा, ‘हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो ये विचार रखते हैं, यह याद दिलाता है कि देश में धर्मनिरपेक्षता जीवित है। मैं अपने फ़ैसले का बचाव नहीं करना चाहता क्योंकि यह स्पष्ट है कि मैं अपने फ़ैसले का बचाव नहीं कर सकता। हमने पाँच जजों के ज़रिए अपना नज़रिया पेश किया है और हर तर्क पेश किया है। ऐसे में हर जज फ़ैसले का हिस्सा है। हमारे लिए यह फ़ैसला लेने का सामूहिक काम है और हम छपे हर शब्द के साथ खड़े हैं।’
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जस्टिस नरीमन की धर्मनिरपेक्षता की बात पर उन्होंने कहा, ‘यह एक धारणा है और आगे भी कई धारणाएं होंगी। ऐसी स्थिति में अदालतें मौजूदा मुद्दों पर फैसला करती हैं। वे उन मुद्दों पर फैसला करती हैं जो देश के सामने हैं। नागरिकों को आलोचना करने, चर्चा करने, टिप्पणी करने का अधिकार है। लोकतंत्र में यह सब संवाद की प्रक्रिया का हिस्सा है। यह जस्टिस नरीमन का दृष्टिकोण है और हर कोई इस दृष्टिकोण का सम्मान करता है, लेकिन निश्चित रूप से यह दृष्टिकोण सत्य पर एकाधिकार नहीं दिखाता है। अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट का होगा।’
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जस्टिस नरीमन ने क्या कहा?
पूर्व जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में शीर्ष अदालत के 2019 के फैसले की आलोचना करते हुए इसे “न्याय का उपहास” बताया, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं करता। जस्टिस नरीमन ने कहा, “मेरा मानना है कि न्याय का सबसे बड़ा उपहास यह है कि इन फैसलों में धर्मनिरपेक्षता को उचित स्थान नहीं दिया गया है।” जस्टिस नरीमन ने मस्जिद के विध्वंस को अवैध मानने के बावजूद विवादित भूमि प्रदान करने के लिए अदालत द्वारा दिए गए तर्क से भी असहमति जताई।
उन्होंने कहा, ‘आज हम देख रहे हैं कि देश भर में इस तरह के नए मामले सामने आ रहे हैं। हम न केवल मस्जिदों के खिलाफ बल्कि दरगाहों के खिलाफ भी मामले देख रहे हैं। मुझे लगता है कि यह सब सांप्रदायिक दुश्मनी को जन्म दे सकता है। यह सब खत्म करने का एकमात्र तरीका यह है कि इस फैसले के इन पांच पन्नों को लागू किया जाए और इसे हर जिला अदालत और उच्च न्यायालय में पढ़ा जाए। वास्तव में, ये पांच पन्ने सुप्रीम कोर्ट की एक घोषणा है जो उन सभी को बांधती है।
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाया था। तब बेंच में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एस बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे।
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