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Trump Oath: डोनाल्ड ट्रंप के शपथग्रहण में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को न्योता, पीएम मोदी को नहीं – आखिर क्यों?

Trump Oath: डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने जा रहे हैं, और इसके लिए उन्होंने वैश्विक नेताओं को निमंत्रण भेजा है, जिनमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हैं। हालांकि, इस सूची में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम नहीं है, जो कि एक बड़ा कूटनीतिक सवाल उठाता है। ट्रंप और मोदी के बीच अच्छे व्यक्तिगत संबंध होने के बावजूद, पीएम मोदी को शपथ समारोह में न बुलाए जाने को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं।

Trump Oath: डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर दूसरी बार शपथ लेंगे। इस ऐतिहासिक मौके पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत कई वैश्विक नेताओं को न्योता भेजा गया है। लेकिन इस सूची में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम न होने से राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।

हालांकि ट्रंप और मोदी के बीच अच्छे व्यक्तिगत संबंध रहे हैं, फिर भी पीएम मोदी को न्योता न मिलने के पीछे कई कूटनीतिक वजहें छिपी हैं। ये वजहें भारत-अमेरिका संबंधों के संतुलन और भारत की दीर्घकालिक विदेश नीति की गहराई को समझने का अवसर देती हैं।

ट्रंप और मोदी के रिश्तों पर पुराने घटनाक्रम का असर

नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच की गर्मजोशी किसी से छिपी नहीं है। 2019 में ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम इसका सबसे बड़ा उदाहरण था। इस कार्यक्रम में ट्रंप की उपस्थिति ने दोनों नेताओं के रिश्ते को नई ऊंचाई दी। लेकिन यह भी सच है कि इस घटना को भारत में कूटनीतिक गलती माना गया, क्योंकि इसे अमेरिकी राजनीति में भारत की ओर से एक पक्ष लेने के तौर पर देखा गया।

पढ़े : प्रधानमंत्री मोदी ने दी इटली की मेलोनी के वायरल ‘मेलोडी’ मीम्स पर प्रतिक्रिया

सितंबर 2020 में, जब ट्रंप और कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में थे, प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए न्यूयॉर्क गए थे। इस दौरान ट्रंप ने पीएम मोदी से मुलाकात करने की इच्छा जताई थी। ट्रंप को उम्मीद थी कि मोदी के साथ मुलाकात से उनकी चुनावी छवि को मजबूती मिलेगी। लेकिन भारतीय राजनयिकों ने इस मुलाकात से बचने का फैसला किया, यह मानते हुए कि यह भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए बेहतर रहेगा।

कूटनीतिक संतुलन: मोदी और ट्रंप की मुलाकात क्यों नहीं हुई?

भारत हमेशा यह सुनिश्चित करता है कि उसकी विदेश नीति संतुलित और दीर्घकालिक हो। भारतीय विदेश मंत्रालय ने फैसला किया कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों से दूरी बनाए रखना सही रहेगा। इस फैसले के पीछे कारण यह था कि अगर मोदी ट्रंप से मुलाकात करते और ट्रंप चुनाव हार जाते, तो इसका नकारात्मक प्रभाव नई सरकार के साथ संबंधों पर पड़ सकता था।

कमला हैरिस की संभावित जीत को ध्यान में रखते हुए भारत ने इस जोखिम से बचने का फैसला किया। ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम से सीख लेते हुए भारत ने ट्रंप के साथ चुनावी राजनीति से बचने का प्रयास किया। हालांकि, यह कदम ट्रंप को नागवार गुजरा।

ट्रंप की नाराजगी और पीएम मोदी को निमंत्रण न मिलने का कारण

ट्रंप इस बात से नाखुश थे कि मोदी के साथ एक सार्वजनिक मंच साझा करना उनके चुनावी अभियान के लिए फायदेमंद हो सकता था, लेकिन भारत ने इससे दूरी बनाई।

शपथ ग्रहण समारोह के लिए ट्रंप ने उन नेताओं को आमंत्रित किया, जो उनके वैचारिक तौर पर करीब हैं या जिन्होंने उनका समर्थन किया है। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति ज़ेवियर मिले, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी जैसे नेताओं को निमंत्रण मिलना इसका प्रमाण है।

Trump Oath: Chinese President Xi Jinping invited to Donald Trump’s swearing-in ceremony, but not PM Modi – why?

हालांकि, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को न्योता देना थोड़ा हैरानी भरा था। ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका और चीन के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। बावजूद इसके, जिनपिंग को निमंत्रण भेजा गया। हालांकि, शी जिनपिंग ने खुद आने के बजाय अपने किसी वरिष्ठ प्रतिनिधि को भेजने का फैसला किया।

विदेश मंत्री जयशंकर की यात्रा और भारत का संतुलित रुख

प्रधानमंत्री मोदी को निमंत्रण न दिए जाने की चर्चा के बीच, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दिसंबर के अंत में अमेरिका की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने ट्रंप प्रशासन की ट्रांज़िशन टीम और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस यात्रा को भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम बताया। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि जयशंकर की यात्रा का उद्देश्य पिछले वर्षों में भारत-अमेरिका साझेदारी में हुई प्रगति की समीक्षा करना था।

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भारत की विदेश नीति: कूटनीतिक संतुलन की मिसाल

भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि अमेरिका के साथ उसके संबंध किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित न रहें। चाहे ट्रंप हों या कोई अन्य नेता, भारत ने अमेरिकी प्रशासन के साथ अपने संबंधों को स्थिर बनाए रखने का प्रयास किया है।

ट्रंप और मोदी के बीच व्यक्तिगत संबंध भले ही मजबूत रहे हों, लेकिन भारत ने कूटनीतिक संतुलन को प्राथमिकता दी। इसने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिका के साथ संबंध भारत के दीर्घकालिक हितों के अनुरूप रहें।

क्या भारत-अमेरिका संबंधों पर पड़ेगा कोई असर?

प्रधानमंत्री मोदी का ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होना भारत-अमेरिका संबंधों पर कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं डालेगा। दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी मजबूत है और यह आगे भी बनी रहेगी।

भारत की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिका के साथ संबंध किसी एक नेता या दल पर निर्भर न रहें। यह संतुलित दृष्टिकोण भारत को वैश्विक मंच पर एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित करता है।

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Written By। Mansi Negi । National Desk। Delhi

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