India Corporate Debt Crisil Report: भारतीय कंपनियों को FY30 तक 120 लाख करोड़ रुपये के कर्ज की जरूरत: क्रिसिल रिपोर्ट
India Corporate Debt Crisil Report: क्रिसिल के अनुसार, FY26-FY30 में भारतीय कंपनियों को 115-125 लाख करोड़ रुपये कर्ज की जरूरत होगी। इसमें 45-50 लाख करोड़ रुपये कैपेक्स और बाकी कार्यशील पूंजी व NBFCs के लिए होंगे। मौजूदा वित्तीय प्रणाली पूरी मांग पूरी नहीं कर पाएगी, जिससे 10-20 लाख करोड़ रुपये की कमी होगी। इसे पाटने के लिए बॉन्ड बाजार विस्तार, नीतिगत सुधार और विदेशी निवेश जरूरी होगा।
India Corporate Debt Crisil Report: भारतीय कॉरपोरेट जगत को वित्त वर्ष 2026 से 2030 के बीच पूंजीगत व्यय (कैपेक्स), कार्यशील पूंजी और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लगभग 115-125 लाख करोड़ रुपये के कर्ज की जरूरत होगी। यह जानकारी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस कुल ऋण में से लगभग 45-50 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) के लिए आवश्यक होंगे, जबकि शेष 70-75 लाख करोड़ रुपये NBFCs और कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खर्च किए जाएंगे।
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इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र करेगा प्रमुख भूमिका
रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कैपेक्स को पूरा करने के लिए भारतीय कंपनियों को इस भारी वित्तीय पूंजी की जरूरत होगी। विशेष रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र इस अवधि में कुल निवेश का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा बनाएगा और कुल ऋण आवश्यकताओं में 55% योगदान देगा।
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क्रिसिल ने यह भी बताया कि वर्तमान में भारतीय कंपनियों की ऋण-से-इक्विटी अनुपात (Leverage Ratio) दशक के सबसे निचले स्तर पर है, जिससे उनके वित्तीय प्रोफाइल में सुधार हुआ है। इसके अलावा, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की क्रेडिट प्रोफाइल भी मजबूत हुई है, जो इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल बना रही है।
वित्त पोषण की चुनौती और संभावित समाधान
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र – जिसमें बैंक, कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार और बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ECBs) शामिल हैं – अगले पांच वर्षों तक लगभग 10% वार्षिक की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
हालांकि, यह वृद्धि दर बढ़ती ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती, जिससे 10-20 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय अंतर (Funding Gap) की संभावना बनती है।
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इस अंतर को कम करने के लिए कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर उचित नियामक और नीतिगत उपायों का समर्थन मिले, तो यह बाजार वित्तपोषण योगदान में वृद्धि कर सकता है और बैंक ऋणों पर निर्भरता को कम कर सकता है।
क्रिसिल का मानना है कि नीतिगत समर्थन और वित्तपोषण के विविध स्रोतों के साथ, भारत की अवसंरचना विकास योजनाएं और कॉरपोरेट जगत की वित्तीय मजबूती अगले पांच वर्षों में निवेश आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करेगी।
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नीतिगत सुधारों की जरूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दे रही है और कई बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रही है। लेकिन, इन परियोजनाओं के लिए लंबी अवधि की पूंजी आवश्यक होगी, जो पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से पूरी नहीं हो सकती। ऐसे में, बॉन्ड बाजार के विकास, बाहरी निवेश और संस्थागत वित्तपोषण को बढ़ावा देने की जरूरत होगी।
अगर भारत अपने बॉन्ड बाजार को मजबूत करता है और वैकल्पिक वित्तीय स्रोतों का उपयोग करता है, तो यह न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को समर्थन देगा, बल्कि कॉरपोरेट क्षेत्र के वित्तीय स्वास्थ्य को भी बनाए रखेगा।
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