आखिर क्या है रामानंदीय परिपाटी जिससे अब तक होती आ रही प्रभू रामलला की पूजा
Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की तैयारी जोरो पर चल रही है. भगवान श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा की भी तैयारी की जा रही है इस बीच लगातार पुजारियों की भी चर्चा तेजी हो रही है. जिसको लेकर देश दुनिया की नजरें राम मंदिर पर टिकी हुई हैं. मंदिर में पूजा-पाठ करने वाले लोगों को लेकर सोशल मीडिया पर पूरी तरह से ट्रेंड कर रहा है. मंदिर में किए गए हजारों आवेदनों में से 21 अर्चकों को अलग कर दिया गया. अभी इनमें से भी कुछ लोगो की छंटनी की जाएगी जो अभी बाकी है. इन सभी को छंटने के बाद अंतिम चरण में जो पुजारी नियुक्त होगा.
वही रामानंदीय संप्रदाय का पालन करते हुए राम मंदिर में रामलला की पूजा करेगा. इसके साथ ही जब से रामलला अयोध्या में विराजमान हैं तब से इसी परंपरा से ही रामलला का पूजन होता आया है. यहां पर भगवान राम के बालक रूप की पूजा होती है और इसको भी ध्यान रखा जाता है कि रामलला का श्रृंगार से लेकर उनकी पूरी देखभाल भी बहुत ही अच्छे से की जाती है. जैसे किसी बालक की जाती है उसी प्रकार से रामलला का भी देख भाल किया जाता है. रामलला को सुबह नींद से जगाकर स्नान करवाना होता है इसके साथ ही प्रभु को भोजन खिलाया जाता. प्रभु श्री राम जी को जो भी खाना बाल रूप में पसंद आए उसी तरह का भोजन बनाया जाता है. इसके साथ ही प्रभु श्री राम को हर दिन अलग रंग के कपड़े को भी पहनाए जाते है. दोपहर में प्रभु श्री राम को बाल रूप में आराम कराया जाता है जो रामलला के लिए बहुत जरूरी है. ऐसे बहुत सारे बात है. रामलला के पूजन के दौरान इस चीज का पूरा ध्यान रखा जाता है कि मंत्रोच्चार पूरी तरह से शुद्ध हो ये सबसे खास बात होगी. ये सारी बातें रामानंदीय परंपरा का हिस्सा हैं.
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अयोध्या भगवान श्रीराम का जन्मभूमि है यहीं वजह है कि अयोध्या में ज्यादातर मंदिर इसी पूजा पद्धति का पूरा पालन करते हैं. रामानंदीय की परंपरा परिपाटी वैष्णव से आई है. आधिकारिक वेबसाइट पर इसका पूरा जिक्र भी है. इसको लेकर रामानंद संप्रदाय सनातन धर्म के सबसे पुराने वंशों में से एक है. प्रभु श्रीराम इसके स्वयं आचार्य थे. कुछ समय तक इसको श्रीसंप्रदाय भी कहा गया था. इसके साथ ही माना जाता है कि श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कई जगहों पर इसकी शुरुआत की थी. तभी से इसका नाम रामानंद संप्रदाय हो गया था. अयोध्या में जितने भी मंदिर है सभी मंदिरों में इसी चलन से पूजा पाठ की एक और वजह है. माना जाता है कि मुगल आक्रांताओं ने जब हिन्दू धर्म पर हमला किये थे तब स्वामी रामानंदाचार्य ने सभी को एक एकजुट किये थे. इस दौरान वैष्णव शैली की पूजा पाठ की एक तरह का मंच बनाया गया जो सनातन धर्म को एक साथ करने का काम किया. ये वही पद्धति थी जिसमें प्रभु श्रीराम और माता सीता की पूजा होती है. इसके बाद फिर राम की नगरी में यही चलन शुरू हो गया है. पूजा पद्धति सिर्फ अयोध्या तक सीमित नहीं रहा अब लगभग पूरे उत्तर भारत इसे मानने लगा है.
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रामानंदाचार्य की लोकप्रियता को आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं. इस दौरान स्वामी जी के बहुत सारे शिष्य भी बन गए है. जिसमें कबीर, रहीम और रसखान भी शामिल थे. वैसे भी अगर देखा जाए तो अयोध्या में कई मंदिर ऐसे भी हैं जो एक अलग परंपरा से मानते हैं. वहीं रामानुजाचार्य परंपरा की पूजा पद्धति को भी अपनाते है. राम जन्मभूमि में कई ऐसे वर्ग भी रहते हैं. जो प्रभु श्रीराम को अपने तरीके से मानते हैं. प्रभु श्रीराम को मानने वाले राजा और खुद को सेवक की तरह देखते हैं. राम मंदिर में रामलला के पूजा अर्चकों की ट्रेनिंग शुरू हो गई है जो लगभग 6 महीनों तक चलेगी. राम मंदिर ट्रस्ट पूजा अर्चकों को ट्रेनिंग दे रहा है. ट्रेनिंग पूरा होने के बाद इसमें से किसी का चयन पुजारी के लिए किया जाएगा. बाकियों पूजा अर्चकों को ट्रस्ट की तरफ से एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा. जिससे वो लोग भी किसी मंदिर में पूजा करने के लिए मान्यता प्राप्त माने जाएंगे. इसके बाद अगर जब भी रामलला के लिए जरूरत पड़ेगी तो इन्हें बुला लिया जाएगा