बीजेपी की देखादेखी कोंग्रेसी सांसद भी लड़ेंगे विधान सभा चुनाव !
Indian Politics News! राजनीति आज से पहले कभी देखा नहीं गया। लगता है मानो सब कुछ लूट रहा हो। सामने वालों को परास्त करने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। किसी के मान -सम्मान का भी ख्याल नहीं ! राजनीति का यह दौर केवल सत्ता पाने के लिए है। इस खेल में जीत हासिल करने के लिए वे सारे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं जो अब तक भारतीय राजनीति में देखने को नहीं मिले थे।
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बीजेपी ने अपने सांसदों को चुनावी मैदान में उतारने की कोशिश की। कई लोगों ने सवाल उठाये की विधान सभा चुनाव में आखिर सांसदों को मैदान में क्यों उतारे जा रहे हैं ? बीजेपी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। वैसे भी किसी भी नेता से आप पूछ लीजिये कि आप चुनाव लड़ना चाहते हैं ,मना कर देगा। सच यही है कि कोई भी नेता कभी भी कोई चुनाव नहीं लड़ना चाहता लेकिन जनता के बीच नेता बने रहना जरूर चाहता है। नेता जानता है कि उसकी नेतागिरी तबतक ही है जब तक वह पद पर है। पद गया तो सभी शक्तियां भी गई। पार्टी भी पूछने से इंकार कर देती है। आखिर हारे को पूछता ही कौन है ? पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी ने बड़ा दाव लगाया है। उसने बहुत सारे सांसदों को मैदान में उतार रखा है और उतारने जा भी रही है। कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं लेकिन यह सब बीजेपी की लाचारी जो है। अगर बीजेपी पांच राज्यों के चुनाव में जीत नहीं पाती है तो उसे इस बात की आशंका है कि पार्टी में टूट न हो जाए। आज भले है बीजेपी ऊपर से मजबूत दिख रही हो यह लेकिन बीजेपी के बड़े नेता भी जानते हैं कि पार्टी के अंदर क्या कुछ चल रहा है। वैसे किसी भी पार्टी के भीतर आंत्रिक लोकतंत्र नहीं रह गया है। यह सब केवल कहने की बात रह गई है। बीजेपी के भीतर तो और भी आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। लेकिन कथित अनुशासन की डोर में पार्टी बंधी हुई है। जिस तरह के निर्णय पार्टी के कुछ नेता लेते नजर आ रहे हैं उससे पार्टी के भीतर कई सवाल भी उठ रहे हैं। लेकिन सब कुछ चुप्पी के साथ।
बीजेपी ने पांच राज्यों के चुनाव में बहुत से सांसदों को टिकट तो दिया है और आगे भी देइ। लेकिन कोई उनसे यह नहीं पूछ रहा है कि जिन्हे टिकट दिए जा रहे हैं क्या वे चुनाव लड़ना भी चाहते हैं ? कोई पूछेगा भी क्यों ?पार्टी को केवल एक लक्ष्य दिख रहा है। वह लक्ष्य है जीत का। अगर सांसद महोदय चुनाव जीत गए तो कुछ साल और राजनीति का लाभ ले लेंगे और हार गए तो उनकी राजनीति ख़त्म हो जाएगी। यह लोग भी जानते हैं और टिकट पाने नेता भी जानते हैं। यह सब निपटाने की कोशिश है।
उधर बीजेपी की तरह ही कांग्रेस भी चुनावी मैदान में अपने सांसदों को उतार रही है। वैसे पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के पास सांसद ही बहुत कम है। कांग्रेस के पास सिर्फ 6 सांसद हैं। इनमे से पांच सांसदों को मैदान में उतारा जा रहा है। चार को तो चुनावी मैदान में उतार भी दिया गया है। तेलंगाना से कांग्रेस के तीन सांसद हैं ,उन्हें मैदान में उतार दिया गया है। छत्तीसगढ़ में पार्टी के दो सांसद है उनमे से एक को मैदान में उतार दिया गया है। मध्यप्रदेश में एक सांसद है नकुल नाथ। ये कमलनाथ के बेटे हैं इन्हे मैदान में नहीं उतारा गया है। छटईसगढ़ से पार्टी के एक सांसद ही दीपक बैज। ये पार्टी के अध्यक्ष भी है। काफी शक्तिशाली नेता हैं। वे बस्तर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। तेलंगाना के तीनो सांसद पार्टी के बड़े नेता है और तीनो मैदान में उतार दिए गए हैं।
उधर बीजेपी अभी तक 18 सांसदों को मैदान में उतार चुकी है। इधर कांग्रेस भी पांच सांसदों को मैदान में उतार चुकी है। अब देखना यह है कि सांसदों की यह लड़ाई किसके लिए लाभकारी होता है। यह एक प्रयोग भर है। केंद्र की सत्ता पर लौटने की कहानी है। यह कहानी बीजेपी और कांग्रेस दोनों आगे बढ़ा रही है।