मदिर प्राण प्रतिष्ठा पर खेल और आडवाणी-जोशी की सहमति!
Ayodhya Ram Mandir News! प्रभु राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में भला कौन शामिल होना नहीं चाहेगा ? सनातनी परंपरा में राम ही सबके है और सबके के लिए राम ही अंतिम आश्रय है। राम है तो सब कुछ है और राम नहीं तो फिर सनातन कैसा ? लेकिन राम के नाम पर सियासत भला किसे रास आये ? सियासत करने वाले भला कब कहते हैं कि वे सियासी खेल कर रहे हैं ? राजनीति का अपना मिजाज है। उस मिजाज में सब कुछ है। झूठ भी है और फरेब भी। लोगों को ठगने की कोशिश भी की जाती है और विचलित भी। जनता को मतलब प्रभु राम से होता है लेकिन सियासत को इससे क्या लेना देना। सियासत तो यही कहती है कि अगर राम के नाम पर ही राजनीति फलती फूलती है तो इसमें हर्ज क्या है ? राजनीति का अंतिम लक्ष्य क्या है ? सत्ता की प्राप्ति ही। चाहे जिस राह से सत्ता मिले। वही सच है। जिस राह से कुर्सी मिले वही सच है।
देश की राजनीति और नेताओं के आचरण को पढ़े और देखे तो कभी-कभी शर्म आती है। जो सच्चा नेता है उसकी जीत कहाँ होती ? सच से राजनीति का कोई लेना देना नहीं। सच से राजनीति दूर भागती है। झूठ राजनीति को अपनाती है। झूठ में ही राजनीति दौड़ती है। सनातन धर्म में सच की बात कही गई है लेकिन राजनीति में सच का क्या जगह है ? जो सच्चा होगा वह राजनीति नहीं कर पायेगा। सच यही है।
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अब मंदिर की बात। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देश में हंगामा मचा हुआ है। कौन वहां जा रहा है और कौन नहीं जा रहा है। किसे बुलाया गया है और किसे बुलाया नहीं गया आज इस पर चर्चा हो रही है। जो जायेगा वह भी सनातनी है जो नहीं जायेगा वह भी सनातनी ही है। देश के चारों मठों के शंकराचार्य अयोध्या अभी नहीं जायेंगे। क्या वे सनातनी नहीं है। इस पर भी बात की जानी चाहिए। क्या कोई बता सकता है कि शंकराचार्य सनातनी नहीं है। सच तो यही है कि वही चार धर्म रक्षक ही देश के असली सनातनी है। वेद ,वेदांग और धर्म शास्त्र के वही ज्ञाता है। वही धर्म रक्षक है। लेकिन इनकी अपनी मान्यता है। वे कहते हैं कि मंदिर अभी अधूरा है इसलिए उसका उद्घाटन नहीं होना चाहिए। उनकी बातों में तर्क है। कोई काट नहीं सकता।
जाहिर है अभी जो हो रहा है वह सब राजनीति है। इस राजनीति में कौन क्या बोलता है इसका कोई मतलब नहीं। मंदिर आंदोलन के अगुवा तो लाल कृष्ण आडवाणी और जोशी ही थे। बूढ़े हो चले हैं। साध्वी उमा भार्ती के योगदान को कौन भुला सकता है। लेकिन सबके अपने तर्क हो सकते हैं। कांग्रेस वाले का अपना तर्क हो सकता है। जब शंकराचार्य के अपने तर्क है तो कांग्रेस वालों का भी अपना तर्क है। इस पर विवाद कैसा ?
आडवाणी और जोशी को भी निमंत्रण मिला है। अब वे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में जायेंगे। उनकी सेहत का ध्यान देने की बात की जा रही है। आडवाणी आखिर क्यों नहीं जायेंगे ? आज बीजेपी जिस मुकाम पर पहुंची है उसमे अटल-आडवाणी का ही बड़ा योगदान है। उन्होंने ही बीजेपी को सींचा और उन्होंने ही राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया। राम मंदिर ने ही बीजेपी को बनाया। आज बीजेपी जहाँ खड़ी है वह सब राम मंदिर आंदोलन की वजह से ही तो है।
अब विहिप सूत्रों ने कहा है कि आडवाणी और जोशी के ख़राब स्वास्थ्य की वजह से नहीं बुलाया जा रहा था। लेकिन अब वे भी इस समारोह में आएंगे। अगर वे जाते हैं तो बीजेपी का इकबाल बढ़ेगा। जाना तो सबको चाहिए लेकिन चाहत से ही सा कुछ नहीं होता। फिर जिसको जब मौका मिलेगा अयोध्या का दर्शन करेगा ही। कांग्रेस वाले भी जायेंगे। शिवसेना वाले भी जायेंगे। ममता भी जाएगी और राजद और जदयू वाले भी जायेंगे। अयोध्या तो सबका है क्योंकि प्रभु राम सबके हैं। ईश्वर कभी भी किसी का अहित नहीं करते। उनके पास जाकर लोग अपने सारे पाप धो डालते हैं।
अयोध्या का यह आयोजन महान है। लेकिन इसको लेकर जो कुछ होता दिख रहा है वह सब ठीक नहीं। ईश्वर में आस्था अलग बात है लेकिन ईश्वर के नाम पर खेल करना दूसरी बात है। इन बातो को गंभीरता से सोंचिये तब जाकर पता चलेगा कि सच क्या है ?