India News! हिन्दुत्व की राह पर चलकर बीजेपी ने मौजूदा समय में दो लोक सभा चुनाव में परचम लहराया लेकिन अब पसमांदा समाज (Pasmanda Muslims) की उसे जरूरत होने लगी है। ऐसे में कई सवाल उठ सकते हैं। क्या बीजेपी को लगने लगा है कि आगामी चुनाव में बीजेपी की घेरेबंदी होगी और हिंदुत्व की राजनीति भोथरी हो जाएगी ? क्या बीजेपी को यह भी लगने लगा है कि केवल हिंदुत्व के सहारे अगला चुनाव पार नहीं हो सकता ? क्या बीजेपी भारत जोड़ो यात्रा और विपक्षी एकता की सम्भावना से डर गई है और क्या वाकई बीजेपी को पसमांदा (Pasmanda Muslims) की चिंता होने लगी है। ऐसे बहुत से सवाल है। यह बात और है कि पीएम मोदी कई महीने से पसमांदा (Pasmanda Muslims) को साधने की बात कर रहे हैं लेकिन पिछले दिनों कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने जो कहा वह वाकई समझने की बात है।
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आगे बढे इससे पहले यह जान लें लें कि आखिर पसमांदा है कौन ? देश के भीतर मुसकमानो की जो आबादी है उसका बड़ा वर्ग पसमांदा मुसलमानो (Pasmanda Muslims) की है। यह वह तपका है जो सबसे ज्यादा गरीब भी है और पिछड़ा भी। ये कहने को मुस्लिम समाज से आते हैं लेकिन अमीर मुसलमान इन्हे अपना नहीं कह पाते। देश के भीतर बुनकरी का काम यही समाज करता है और यही समाज मुसलमानो में सबसे पिछले पायदान पर है। यही वजह है कि पीएम मोदी की निगाह पिछले कई साल से इस गरीब ,उपेक्षित समाज पर है। मोदी चाहते हैं कि इस समाज का कल्याण हो और और ये बीजेपी के साथ जुड़े।
2011 जनगणना के मुताबिक इन 5 राज्यों में मुस्लिम आबादी की बात करें तो यूपी में 19.26%, बिहार में 16.87%, बंगाल में 27.01%, झारखंड में 14.53% और असम में 34.22% मुस्लिम हैं।इनमें ज्यादातर संख्या पसमांदा मुस्लिमों (Pasmanda Muslims) की है। इसके अलावे कई और राज्यों में भी मुस्लिम आबादी है और खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में इनकी संख्या काफी ज्यादा है। लेकिन खास बात ये है इन मुस्लिम बहुल इलाको में भी अधिकतर आबादी पसमांदा की ही है /इन कुछ ऐसे राज्य हैं जहां करीब 200 से ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। इन राज्यों में मुस्लिम समीकरण जिसके साथ जाता है उसकी जीत संभव हो पाती है। यही वजह है कि बीजेपी की नजर पसमांदा पर है। बीजेपी को लग रहा है कि मुस्लिम तो अभी बीजेपी के साथ नहीं आएंगे लेकिन पसमांदा अगर बीजेपी के साथ आते हैं तो आगामी चुनाव में बीजेपी को बड़ा लाभ हो सकता है। यही वजह है कि पीएम बार बार पसमांदा को आगे बढ़ाने की बात करते हैं। पसमांदा की तुलना आप दलित मुसलमान से कर सकते हैं। मुस्लिम समाज में यह वर्ग सबसे ज्यादा उपेक्षित है और गरीब भी।
पसमांदा की राजनीति सबसे पहले देश में नीतीश कुमार ने की थी और इसका लाभ उन्हें मिला भी। पसमांदा समाज (Pasmanda Muslims) से आने वाले पत्रकार अनवर अली को नीतीश ने राज्य सभा भेजा और आज आंवल अली देश में पसमांदा के बड़े नेता और शुभ चिंतक के तौर पर देखे जाते हैं। पसमांदा के साथ शुरू से ही गलत व्यवहार किया जाता है। हालांकि सच्चर कमीशन ने इस समाज के लोगो को अनुसूचित जाती में शामिल करने की बात कही थी लेकिन आज तक उस पर अमल नहीं हुआ। जबकि हिन्दू ,सिख ईसाई समाज के निचले तपके को दलित वर्ग में रखा गया। अंग्रेजो की यह कहानी आज भी जारी है लेकिन मुस्लिम दलित पसमांदा को दलित की बजाय ओबीसी वर्ग से जोड़ दिया गया। अब जहा तक पसमांदा के बीजेपी से जुड़ने की बात है उस पर कई तरह की बाते सामने आती है। पसमांदा नेता भी मानते हैं कि अभी तक सभी राजनीतिक दलों ने उसका उपयोग किया लेकिन उसकी हालत नहीं बदली। बीजेपी पहली बार हमारी तरफ देख रही है।
सबसे बड़ी बात यह है कि बीजेपी की समाज योजना से हमारा पेट भर रहा है और कई योजनाए हमें राहत दे रही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पसमांदा मुसलमानो (Pasmanda Muslims) का रुख बीजेपी के खिलाफ नहीं है। संभव है कि बीजेपी के साथ इस वर्ग के कुछ लोग भी जूस सके तो बीजेपी की चुनौती अगले चुनाव में कम होगी। हिन्दू और पसमांदा बीजेपी के लिए कॉकटेल साबित हो सकते हैं।