Madhya Pradesh News: कर्नाटक चुनाव में चुनाव की तारीख तो दस मई को है लेकिन आज अंतिम चुनाव प्रचार ख़त्म होने के साथ ही सभी बाहरी नेता वहां से निकल रहे हैं। माना जा रहा है कि आज देर रात तक सभी पार्टियों के नेता कर्नाटक को छोड़ देंगे। लेकिन चुनाव तो चुनाव है। बीजेपी की मुश्किल इस बार कुछ ज्यादा ही बढ़ी है। कर्नाटक बीजेपी का गढ़ रहा है और वहाँ से बीजेपी को इस बार भारी चुनौती मिल रही है। बीजेपी भी जानती है कि इस बार चुनाव आसान नहीं है। कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ चुनावी प्रचार में बीजेपी को मात देने का काम किया है। इसके साथ ही जेडीएस की राजनीति भी इस बार बीजेपी कांग्रेस को घेरने से नहीं चुकी।
सबने एक दूसरे पर वार किया और सबने अपनी सरकार बनाने का ऐलान भी। लेकिन सच यह नहीं है। सच तो यही है कि कर्नाटक में जीत किसकी होगी यह कोई नहीं जानता। बीजेपी की जीत होती ही तो राहुल गाँधी के भारत जोड़ो यात्रा को बेअसर माना जा सकता है और बीजेपी की हार होती है तो इसे बीजेपी के ढहते इकबाल के रूप सकता है। बीजेपी भीतर ही भीतर बहुत कुछ समझ रही है। वह यह भी मान रही है कि पिछले कुछ सालों में उसकी राजनीति कमजोर हुई है और कई राज्यों से उसकी सरकार भी छीनी गई है। कहने के लिए गठबंधन की सरकारें बीजेपी कई राज्यों में चला रही है लेकिन उसकी अपनी सरकार मात्र पांच से छह राज्यों तक ही सिमट गई है। कर्नाटक का चुनाव सामने है। हार हुई तो बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है।
अब बीजेपी की निगाह रजस्थान और मध्यप्रदेश पर है। बीजेपी का मुकाबला इस बार मध्यप्रदेश में और भी कठिन होने वाला ही .पिछले चुनाव में ही कांग्रेस ने बीजेपी को पटखनी दे थी लेकिन सिंधिया के जरिये बीजेपी ने खेल किया और कमलनाथ की सरकार गिर गई। मध्यप्रदेश के इतिहास में यह एक बड़ी घटना है जिसे लोग आज भी याद करते हैं। बीजेपी के लोग ही कहते हैं कि यह बीजेपी का अद्भुत ऑपरेशन था। लेकिन इससे पार्टी की साख भी गिरी है। सिंधिया भले ही बीजेपी में आये हों लेकिन बीजेपी के लोग उन्हें पसंद नहीं कर रहे। बीजेपी वाले आज भी उन्हें बाहरी ही मानते हैं। और जो विधायक कांग्रेस से अलग होकर सिंधिया के साथ बीजेपी में गए थे उनकी राजनीति की बात मत पूछिए। आज की तारीख में वे कहीं के नहीं है। कई विधायक अब फिर से कांग्रेस में लौटने को उतावले हैं लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने साफ मना कर दिया है। ऐसे विधायकों को अगर बीजेपी टिकट देती भी है तो कांग्रेस के पहले निशाने पर वही हैं। कहा जा रहा है कि सिंधिया के चक्कर में बेचारे विधायक अब न घर के हैं न घाट के।
बीजेपी को मध्यप्रदेश में फिर से सत्ता में लौटने की वेचैनी है। यह प्रदेश बीजेपी और संघ का गढ़ भी है। इसी प्रदेश से बीजेपी को बड़ी संख्या में सांसद भी मिलते रहे हैं। इस लिहाज से भी बीजेपी पूरी तैयारी के साथ मध्यप्रदेश में उतर रही है। लेकिन उधर कांग्रेस की भी अपनी तैयारी है। कांग्रेस की नजर बीजेपी के उन नेताओं पर है जो जमीनी नेता है और जिनकी पकड़ आज भी जनता के बीच है। लेकिन वे मौजूदा बीजेपी से नाराज भी है। ऐसे नेताओं की खोज की जा रही है। इस काम को अंजाम दे रहे हैं सूबे के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह। उन्हें दो तरह के काम दिए गए हैं।
पहला काम तो ये है कि पार्टी के रूठे नेताओं को एक मंच पर लाया जाए। उनकी बातें सुनी जाए और उनके कहे मुताबिक ही चुनावी फैसले लिए जाए। इस खेल में कुछ रूठे लोगों को भी टिकट दिए जाने की बात है। दिग्विजय सिंह का दूसरा टास्क उन बीजेपी नेताओं को अपने पाले में लाने का है जो बीजेपी से काफी नाराज चल रहे हैं। अभी हाल में पूर्व सीएम कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी को इसी टास्क के जरिये कांग्रेस में लाया गया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने ऐसे दो दर्जन से ज्यादा बीजेपी नेताओं को टारगेट किया हुआ है। इनमे से कुछ नेता तो अभी हो कांग्रेस में घुसने को तैयार हैं जबकि कुछ नेता बीजेपी से टिकट न मिलने की बाट जोह रहे हैं। बीजेपी सब देख रही है लेकिन कुछ करने की स्थिति में नहीं है। पार्टी के भीतर जिस तरह के बगावत चल रहे हैं उसमे बीजेपी भी सोंच रही है कि जिनको जाना है चले जाए ताकि बचे लोगों को तैयार करके चुनाव लड़ा जाए।
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बीजेपी के की नेता मानते हैं कि अब परेशानी शिवराज सिंह चौहान से भी हो रही है। वे लम्बे समय से कुर्सी पर बैठे हैं और जनता अब उन्हें नेतृत्व पर यकीन नहीं कर रही है। बीजेपी को सबसे पहले चेहरा बदलने की जरूरत है। अगर चेहरा नहीं बदल गया तो खेल ख़राब हो सकता है। केंद्रीय नेतृत्व की राजनीति चाहे जो भी हो राज्य में बीजेपी की राजनीति कमजोर हुई है और सिंधिया के आने के बाद बीजेपी के भीतर असंतोष ज्यादा बढ़ा है। अब बीजेपी क्या कुछ करती है इसे देखना होगा।