Congress: कांग्रेस के लिए चुनावी एजेंडा तय करना आसान नहीं
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) ख़त्म हो गई। वे दिल्ली पहुँच गए हैं। आज बजट का दिन है। संभव हो कि वे बजट सत्र में शामी भी हों। लेकिन कांग्रेस की चिंता बजट की नहीं है। उसकी चिंता तो आगामी चुनाव को लेकर है। कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी एकता को लेकर। कांग्रेस जानती है कि बिना सबको साथ लिए बीजेपी से लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती लेकिन उसकी चुनौती ये है कि कई विपक्षी दल उसके साथ आने से कतरा रहे हैं।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) ख़त्म हो गई। वे दिल्ली पहुँच गए हैं। आज बजट का दिन है। संभव हो कि वे बजट सत्र में शामी भी हों। लेकिन कांग्रेस की चिंता बजट की नहीं है। उसकी चिंता तो आगामी चुनाव को लेकर है। पहले यह चिंता केवल बीजेपी की ही रहती थी। आज भी है लेकिन भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के साथ ही कांग्रेस को मिले समर्थन से पार्टी आह्लादित है उसे भी चुनाव लड़ना है और बीजेपी के साथ दो दो हाथ भी तो करने है। लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ? क्या कांग्रेस कोई चुनावी एजेंडा तय करने की स्थिति में है ?
कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी एकता को लेकर। कांग्रेस जानती है कि बिना सबको साथ लिए बीजेपी से लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती लेकिन उसकी चुनौती ये है कि कई विपक्षी दल उसके साथ आने से कतरा रहे हैं। देश के भीतर अब कुछ ऐसे दल भी खड़े हो गए हैं जिनका विरोध बीजेपी से तो है ही कांग्रेस से भी है। वजह है कि इनकी लड़ाई कांग्रेस से ज्यादा है। वैसे इतिहास को देखें तो आज देश में जितनी भी पार्टियां चुनाव लड़ती है उनमे से अधिकतर या तो कांग्रेस से निकली है या कांग्रेस की जमीन को हड़प कर खड़ी हुई है। क्षेत्रीय जातीय राजनीति करने वाली इन पार्टियों में कइयों की हैशियत आज कांग्रेस से आगे की हो गई है। सपा ,राजद ,ममता ,वाईएसआर ,बीजू जनता दल की राजनीति को आप इसी नजरिये से देख सकते हैं। ये तमाम पार्टियां कांग्रेस की जमीन को छीनकर ही खड़ी हुई है।
लेकिन सवाल तो ये है कि अब चुनाव जब सामने है तो कांग्रेस अपना अजेंडा कैसे सेट करे। सामने चुनाव है और देश के भीतर धार्मिक उन्माद जारी है। कही मानस के खिलाफ आंदोलन चल रहा है तो कही अगले साल अयोध्या में मंदिर उद्घाटन के गीत गाये जा रहे हैं। उधर महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व में संघ ,विहिप और हिन्दू सेना के लोग गोलबंद हो रहे हैं। स्थिति ठीक नहीं है। बिहार यूपी में मानस को लेकर विवाद है। कई पिछड़े समाज के नेताओं ने मानस पर सवाल उठाया है तो कही जलाया भी गया है। कांग्रेस क्या करे ,समझ से परे है। कांग्रेस की परेशानी ये है कि मानस का विरोध भी नहीं कर सकती और सपोर्ट भी नहीं। वह विपक्षी एकता भी चाहती है और देश से नफरत का माहौल भी खतम करना चाहती है। वह चाहती है कि देश में सबकुछ ठीक हो ,बेकारी ख़त्म हो और महिलाओं को सदममान भी मिले और देश का विकास भी हो लेकिन कैसे ?
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सामने दस राज्यों के चुनाव है और फिर लोकसभा चुनाव। बीजेपी की राजनीति साफ़ हो गई है कि वह धार्मिक आस्था के सहारे फिर से मैदान में जाने को तैयार है। लेकिन क्या धर्मिक आस्था की कहानी जब आगे बढ़ेगी तो क्या कांग्रेस वहाँ टिक पाएगी ? क्या राहुल गांधी कुछ कर पाएंगे ? उधर ममता और स्टालिन की अपनी राजनीति भी है भाषाई राजनीति अस्मिता को आगे बढ़ाने वाली इनकी राजनीति के सामने सब ढेर हैं। कांग्रेस इसमें फिट तो बैठ सकती है लेकिन बीजेपी से इनका मुकाबला भी कोई ज्यादा निर्णायक नहीं लगता। बीजेपी एक साथ पुरे देश में धर्म की राजनीति को फिर से खड़ा करने को तैयार है। कम से कम इस लोकसभ चुनाव तक तो धर्म बिकेगा ही। कांग्रेस के बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कितने लोग धर्म से परे कांग्रेस के साथ खड़े होंगे देखना बाकी है।