Delhi Election 2025: दिल्ली में अबकी बार अरविंद केजरीवाल के सामने बड़ा चैलेंज, कैसे हो सकतै है दिल्ली की सत्ता में फेरबद जानिए
2025 का दिल्ली विधान सभा चुनाव लगभग 2013 के चुनाव जैसा हो गया है, उस वक्त केजरीवाल चीख-चीख कर तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दिक्षित को महाभ्रस्ट बता कर सत्ता पर काबिज हुए थे और इस बार भाजपा भी केजरीवाल पर वैसे ही आरोप लगा कर मैदान फतह करने की जुगत भिडा रही है। बीजेपी (BJP) यदि इस बार कामयाब हो जाती है तो ये भी एक संयोग ही होगा कि केजरीवाल भी शीला दीक्षित की तरह हारने वाले तीन बार के मुख्यमंत्री होंगे।
Delhiel Ection 2025: दिल्ली में चुनावी भोपू का शोर सोमवार 5 बजे से शांत हो गया है, यानि चुनाव प्रचार और नेताओं का हो-हल्ला अब सुनायी नही देगा। दिल्ली में 5 फरवरी को सभी 70 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने हैं और 8 फरवरी को परिणाम घोषित किये जायेंगे। 2013 से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, केजरीवाल एक बार फिर दावा कर रहे है कि ना सिर्फ उनकी सरकार बल्कि मुख्यमंत्री भी वही बन रहे हैं। वैसे केजरीवाल जो दावे कर रहे है वो भले ही 2015 या 2020 के चुनाव जितने मजबूत ना हों लेकिन चुनावी सीजन में नेताओं के वादों की तरह एक दम खोखले हो ऐसा भी नही है।2015 से कांग्रेस मुकाबले से बाहर है सीधी टक्कर AAP और BJP के बीच होती रही है, इसमे भी चुनावी हार जीत के अंतर को एक तरफ रख कर यदि परिणाम देखे तो बीजेपी भी दोनों चुनावों में AAP के सामने कहीं नही टिकती। 2015 में तो AAP की आंधी में बडे- बडे सूरमा धराशाही हो गये थे। आलम ये था कि जो भाजपा 2013 में सिर्फ दो विधायकों की कमी के चलते सरकार बनाते बनाते रह गयी थी वो भाजपा 2015 के चुनाव में महज तीन सीटों पर ही सिमट गई थी और 2020 में दुनिया की सबसे बडी पार्टी को सिर्फ 8 सीटों पर ही संतुष्ट होना पडा था। लेकिन इस बार हवा एकतरफा नही है कट्टर ईमानदार छवि वाले केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोप में ना सिर्फ खुद तीहाड गये बल्कि उनके कई मंत्री जेल की सलाखों में कैद रहे। शराब घोटाला, जल बोर्ड घोटाले सहित शीश महल (sheesh mahal) का मुद्दा उनके गले की फांस बनी हुई है। केजरीवाल सहित AAP के कई मंत्री और पुर्व मंत्री जमानत पर रहकर चुनाव लड रहे हैं।
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2025 का दिल्ली विधान सभा चुनाव लगभग 2013 के चुनाव जैसा हो गया है, उस वक्त केजरीवाल चीख-चीख कर तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दिक्षित को महाभ्रस्ट बता कर सत्ता पर काबिज हुए थे और इस बार भाजपा भी केजरीवाल पर वैसे ही आरोप लगा कर मैदान फतह करने की जुगत भिडा रही है। बीजेपी (BJP) यदि इस बार कामयाब हो जाती है तो ये भी एक संयोग ही होगा कि केजरीवाल भी शीला दीक्षित की तरह हारने वाले तीन बार के मुख्यमंत्री होंगे। केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए ये चुनाव इस लिए भी मुश्किल है क्योंकि सिर्फ भाजपा, कांग्रेस या विपक्ष ही नही उनकी खुद की पार्टी के डेढ दर्जन से ज्यादा विधायक और नेता पार्टी और केजरीवाल को भ्रष्ट बता कर बीच चुनाव में उनका साथ छोड चूके है। इस बार के विधानसभा चुनाव की तुलना 2013 के चुनाव से इस लिए भी की जा रही है क्योंकि कांग्रेस भी इस चुनाव में पूरे दम खम के साथ मैदान में उतरी है, जिससे मुकाबला और दिलचष्प हो गया है क्योंकि कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा कर ही केजरीवाल दिल्ली की सत्ता में आये थे और ऐसे में कांग्रेस का जितना वोटर वापसी करेगा कांग्रेस के साथ साथ उतना ही भायदा भाजपा को होगा और घाटा सिर्फ केजरीवाल को। ऐसा इस लिए भी क्योंकि भले ही भाजपा 27 साल से दिल्ली में सत्ता से दूर हो लेकिन उसके काडर वोटर ने कभी उसका साथ नही छोडा, यही वजह है कि जीत का सेहरा किसी के सिर सजता रहा हो दूसरे नंबर की पार्टी इस दौरान भाजपा ही रही है ऐसे में यदि कांग्रेस और AAP के बीच वोट बटता है तो उसको सीधा सीधा भायदा भाजपा को हो सकता है।
दिल्ली की राजनीति में इस बार आम आदमी पार्टी (AAP) और अरविंद केजरीवाल के सामने एक बड़ा चैलेंज खड़ा हो गया है। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद अब दिल्ली में सत्ता संतुलन में बदलाव की संभावनाएं बन रही हैं। बीजेपी, कांग्रेस और AAP के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
दिल्ली की सत्ता में फेरबदल कैसे हो सकता है?
- आप के खिलाफ बढ़ते कानूनी मामलों का असर – अरविंद केजरीवाल और AAP के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार और शराब नीति से जुड़े मामलों में जांच जारी है। अगर जांच तेज होती है तो पार्टी की छवि को नुकसान हो सकता है।
- बीजेपी की रणनीति – बीजेपी लगातार दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। MCD चुनाव जीतने और केंद्र सरकार के समर्थन से बीजेपी दिल्ली की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है।
- कांग्रेस की वापसी संभव? – कांग्रेस, जिसने हाल के चुनावों में कुछ पुनरुत्थान दिखाया है, अगर मजबूत गठबंधन बनाती है, तो AAP को चुनौती मिल सकती है।
- वोट बैंक में बदलाव – दिल्ली के मतदाताओं की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। महंगाई, बेरोजगारी, और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे अगले विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे।
- एलजी बनाम केजरीवाल सरकार – दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव ने प्रशासन को प्रभावित किया है। अगर यह स्थिति जारी रहती है, तो जनता में AAP के खिलाफ असंतोष बढ़ सकता है।
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भ्रष्टाचार के आरोपों से चौतरफा घिरे केजरीवाल, त्रिकोणीय मुकाबला बनाती कांग्रेस सिर्फ ये ही इस चुनाव में AAP की चुनौती हो ऐसा नही है। फ्री के फोरमुले से दिल्ली वालों के दिल में राज करने वाले केजरीवाल की भाजपा और कांग्रेस ने उनसे भी ज्यादा फ्री की योजनाओं को अपने चुनावी पिटारे से निकाल कर मजबूत घेराबंदी कर दी है। फ्री की योजनाओं को कभी रेवडी कलचर कहने वाली भाजपा को भी सत्ता वापसी का यही ब्रहमात्र लग रहा है,खैर दिल्ली की जनता के दिल में क्या है ये तो 8 फरवरी को आने वाले चुनाव परिणाम तय करेंगे लेकिन अभी इतना तो तय है कि सरकार किसी की भी बने लेकिन अगले 5 साल दिल्ली का जनकल्याण सरकार की फ्री योजनाओं वाले पिटारे से ही होना है।
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8फरवरी को चुनाव के नतीजे ये तय करेंगे की दिल्ली में किस पार्टी की सरकार बनेगी, लेकिन किस पार्टी के जीतने पर कौन मुख्यमंत्री बनेगा इस पर जमकर पेंतरेबाजी चल रही है, भाजपा,कांग्रेस बिना CM फेस के चुनाव लड रही है जिस पर केजरीवाल उन्हे बिन दूल्हे के बराती कह कर तंज कस रहे हैं साथ ही वो ताल ठोक कर कह रहे है कि AAP की सरकार के मुख्यमंत्री वो ही बनेंगे। भाजपा केजरीवाल को घोटालेबाज और जमानत पर छूटे भ्रष्ट नेता कह कर उन्हे जमानत के वक्त सुप्रीम कोर्ट की शर्त याद दिला रहे है जिसमें वो ना सचिवालय जा सकते है ना मुख्यमंत्री ऑफिस ना वो अधिकारियों की मिटिंग ले सकते है नाहि किसी फाइल को साइन करने के उन्हे अधिकार है। केजरीवाल बारात के दूल्हे तो बन सकते है लेकिन शादी के मंडप तक पहुँचने के अधिकार उनके पास नही है, यदि ऐसा है तो वो भी ‘बिन फेरे हम तेरे’ टाइप के दूल्हे बन कर रह जाएंगे। खैर किसकी बारात बिन दूल्हे की है, कौन दूल्हा बेगाना है किसके सिर सेहरा सजेगा ये सब सियासी जुमले है जो चुनावी संग्राम में आम होते है। ये सभी जानते है कि एस तरह के जुमलों से पॉलटीकल माईलेज तो मिल सकता है लेकिन सरकार गणित से बनती है लिहाजा जिसके पक्ष में बहुमत होगा सरकार भी उसी की होगी और मुख्यमंत्री भी उसी का होगा। वक्त से पहले सिर्फ कयास लगाये जा सकते है और कमोबेस वही सब कर भी रहे है, वक्त आने पर तसवीर अपने आप साफ हो जाएगी। तब तक सबको परिणाम आने का इंतजार करना चाहिये, परिणाम अपने आप सबका भविष्य तय करेंगे।
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क्या अरविंद केजरीवाल इस चुनौती से निपटकर फिर से दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो पाएंगे, या इस बार दिल्ली में कोई बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिलेगा? आपकी क्या राय है?