Uttarakhand Panchayat Elections: दो वोटर लिस्ट वाले प्रत्याशियों को रोकने के हाईकोर्ट आदेश से चुनाव आयोग असमंजस में
उत्तराखंड पंचायत चुनाव में हाईकोर्ट के दोहरी वोटर लिस्ट वाले प्रत्याशियों और मतदाताओं पर रोक के आदेश से चुनाव आयोग असमंजस में है। आयोग ने रविवार को कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल कर अपना पक्ष रखने की अनुमति मांगी है। आदेश के लागू होने से नामांकन प्रक्रिया और चुनाव की वैधता पर संकट गहराने लगा है।
Uttarakhand Panchayat Elections: उत्तराखंड में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। नैनीताल हाईकोर्ट के एक अहम फैसले ने राज्य निर्वाचन आयोग को उलझन में डाल दिया है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि ऐसे व्यक्ति जो एक साथ निकाय और पंचायत दोनों की वोटर लिस्ट में शामिल हैं, वे न तो पंचायत चुनाव में वोट डाल सकेंगे और न ही चुनाव लड़ पाएंगे।
इस आदेश के बाद अब तक पूरी हो चुकी स्क्रूटनी और नाम वापसी की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इस स्थिति में निर्वाचन आयोग की परेशानी बढ़ गई है, क्योंकि अब चुनाव प्रक्रिया में बदलाव करना न तो सरल है और न ही समय के अनुसार संभव दिखता है।
हाईकोर्ट के आदेश से मची हलचल
हाईकोर्ट ने 11 जुलाई को यह आदेश जारी किया, जिससे दोहरे मतदाता सूची में शामिल लोगों के प्रत्याशी बनने और वोट देने पर रोक लगा दी गई। राज्य में पहले से तय पंचायत चुनाव कार्यक्रम के तहत कई प्रत्याशियों की स्क्रूटनी और नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, ऐसे में यह निर्णय राज्य निर्वाचन आयोग के सामने कानूनी और प्रशासनिक चुनौती बन गया है।
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आयोग ने दाखिल किया प्रार्थना पत्र
13 जुलाई, रविवार को राज्य निर्वाचन आयोग ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक प्रार्थना पत्र दाखिल कर अपना पक्ष रखने की अनुमति मांगी है। आयोग चाहता है कि कोर्ट को यह स्पष्ट किया जाए कि आदेश के लागू होने से पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा और इसमें क्या व्यावहारिक कठिनाइयां सामने आ सकती हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल गोयल ने बताया कि आयोग विधिक राय भी ले रहा है ताकि इस मामले में आगे की रणनीति तय की जा सके। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की विस्तृत व्याख्या और प्रभाव का मूल्यांकन किए बिना आयोग कोई निर्णय नहीं ले सकता।
पहले भी विवादों में रहा चुनाव
यह पहली बार नहीं है कि उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। इससे पहले चुनाव की अधिसूचना और आरक्षण निर्धारण के तरीकों को लेकर भी सरकार को कई बार कोर्ट में फजीहत का सामना करना पड़ा है। अब एक बार फिर सरकार और आयोग दोनों पर सवाल उठ रहे हैं।
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पूर्व पंचायत प्रतिनिधि अमरेंद्र बिष्ट ने आरोप लगाया है कि राज्य निर्वाचन आयोग सरकार की कठपुतली की तरह काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि यदि आयोग हाईकोर्ट के स्पष्ट निर्देशों को भी गंभीरता से नहीं ले रहा, तो यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।
चुनाव प्रक्रिया पर अनिश्चितता
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद पहले से नामांकित और स्वीकृत प्रत्याशियों की स्थिति क्या होगी। क्या ऐसे प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित किया जाएगा? या फिर चुनाव प्रक्रिया को ही स्थगित करना पड़ेगा?
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चुनाव आयोग को डर है कि यदि कोर्ट का आदेश पिछली तिथि से लागू माना गया, तो पूरी चुनाव प्रक्रिया में कानूनी जटिलताएं खड़ी हो जाएंगी। वहीं, अगर आदेश केवल भविष्य के लिए मान्य किया गया, तो पहले से दाखिल नामांकन और चुनाव कार्यक्रम वैध रह सकता है।
आयोग को राहत मिलेगी या नहीं?
रविवार को दाखिल किए गए प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के बाद यह साफ हो पाएगा कि आयोग को चुनाव प्रक्रिया में राहत मिलेगी या नहीं। अगर कोर्ट आयोग की दलीलें मानता है तो पंचायत चुनाव अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ सकते हैं।
अन्यथा चुनाव टालने, प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित करने या नामांकन प्रक्रिया को फिर से शुरू करने जैसे विकल्पों पर विचार करना पड़ेगा, जिससे पूरे प्रदेश में नया प्रशासनिक संकट उत्पन्न हो सकता है।
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