Gangotri and Yamunotri Dham: गंगोत्री और यमुनोत्री धाम: सदियों पुरानी देशाटन परंपरा को निभा रहे तीर्थ पुरोहित, यजमानों तक पहुंचाते हैं गंगा-यमुना का आशीर्वाद
Gangotri and Yamunotri Dham:उत्तराखंड में अक्सर अनूठी परंपराये देखने को मिलती है. उन्हीं में गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद निभाई जाती है.
Gangotri and Yamunotri Dham: उत्तरकाशी: उत्तराखंड के गंगोत्री और यमुनोत्री धाम सिर्फ आस्था के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यहां की अनूठी परंपराएं भी श्रद्धालुओं के दिलों में गहरी छाप छोड़ती हैं। हर साल इन धामों के कपाट बंद होने के बाद तीर्थ पुरोहित एक विशेष परंपरा का निर्वहन करते हैं जिसे देशाटन कहा जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ निभाई जाती है।
देशाटन की परंपरा का महत्व
गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद तीर्थ पुरोहित देशाटन पर निकलते हैं। इस दौरान वे अपने यजमानों के घर-घर जाकर गंगा और यमुना का पवित्र जल और धाम का प्रसाद भेंट करते हैं। इसके साथ ही, वे यजमानों को आगामी चारधाम यात्रा पर आने का निमंत्रण भी देते हैं।
गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित राजेश सेमवाल के अनुसार, देशाटन की शुरुआत माघ मास में होती है। हिंदू धर्म में माघ मास को धार्मिक कार्यों के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है। इस परंपरा का उद्देश्य सिर्फ आस्था का विस्तार करना नहीं है, बल्कि यह तीर्थ पुरोहितों के लिए आजीविका का भी एक महत्वपूर्ण साधन है।
दान-दक्षिणा और जीविका का माध्यम
जब गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट छह महीने तक खुले रहते हैं, तब तीर्थ पुरोहितों की आजीविका मुख्य रूप से श्रद्धालुओं की दान-दक्षिणा पर निर्भर करती है। लेकिन सर्दियों में कपाट बंद होने के बाद तीर्थ पुरोहित देशाटन के माध्यम से अपने यजमानों तक पहुंचते हैं। इस दौरान उन्हें गंगा और यमुना जल के साथ पवित्र प्रसाद भेंट किया जाता है, जिससे उनकी जीविका चलती है।
सनातन परंपरा का प्रचार-प्रसार
देशाटन सिर्फ एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह सनातन हिंदू धर्म की परंपराओं के प्रचार-प्रसार का भी एक बड़ा माध्यम है। यमुनोत्री पुरोहित महासभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम उनियाल के अनुसार, देशाटन के दौरान यजमानों को यमुना जल के साथ विशेष प्रसाद भेंट किया जाता है। यह प्रसाद सूर्य कुंड में पकाए गए चावल की पोटली होती है, जिसे धाम का आशीर्वाद माना जाता है।
धामों की लोकप्रियता को बनाए रखने का प्रयास
यह परंपरा गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने का एक प्रभावी साधन है। देशाटन के दौरान तीर्थ पुरोहित न केवल यजमानों की कुशलक्षेम पूछते हैं, बल्कि उन्हें धामों के महत्व और आगामी चारधाम यात्रा के लिए प्रेरित भी करते हैं।
देशभर में फैले यजमानों तक पहुंचने की परंपरा
गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित देश के विभिन्न हिस्सों में फैले अपने यजमानों तक पहुंचते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और वर्तमान में जो तीर्थ पुरोहित इस परंपरा को निभा रहे हैं, उनके पूर्वज भी इसी तरह देशाटन किया करते थे।
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा
देशाटन की यह परंपरा धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देती है। तीर्थ पुरोहित यजमानों को धाम आने के लिए आमंत्रित करते हैं, जिससे अगले वर्ष चारधाम यात्रा के प्रति उत्साह बढ़ता है।
निष्कर्ष
गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों द्वारा निभाई जा रही यह परंपरा न केवल सनातन धर्म की समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि यह आधुनिक समाज में भी धर्म और आस्था के महत्व को जीवंत बनाए रखने का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। यह परंपरा उन लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक संदेश है कि आस्था का वास्तविक स्वरूप सेवा, परंपरा और समर्पण में निहित है।