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Hariyali Devi Kantha Yatra: रात्रि में निकलेगी हरियाली देवी कांठा यात्रा, भक्तों में उत्साह

Hariyali Devi Kantha Yatra will take place at night, enthusiasm among devotees

Hariyali Devi Kantha Yatra: देवभूमि उत्तराखंड की प्रसिद्ध और अनोखी हरियाली देवी कांठा यात्रा का आयोजन इस वर्ष भी पूरे हर्षोल्लास के साथ होने जा रहा है। धनतेरस के दिन, 29 अक्टूबर को, मां हरियाली देवी अपने मायके हरियाल पर्वत के लिए रवाना होंगी। यह यात्रा हर वर्ष की भांति रात में की जाती है और इसमें हजारों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं। इस ऐतिहासिक और पवित्र यात्रा का भक्तों को पूरे साल बेसब्री से इंतजार रहता है, जिसमें हरियाली देवी को महालक्ष्मी का रूप मानते हुए भक्तजन श्रद्धा और भक्ति के साथ शामिल होते हैं।

मां हरियाली देवी की पूजा महालक्ष्मी रूप में

हरियाली देवी को महालक्ष्मी, योगमाया और विष्णुशक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनके सम्मान में कांठा यात्रा की शुरुआत धनतेरस की शाम जसोली गांव के मंदिर से होती है। इस यात्रा में शामिल होने वाले भक्तों को सात दिन पहले से ही तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा, प्याज और लहसुन का त्याग करना आवश्यक होता है। यात्रा के दौरान देवी की डोली हरि पर्वत की ओर प्रस्थान करती है, जो समुद्रतल से 9,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

रात्रि यात्रा के चार प्रमुख पड़ाव

जसोली गांव से हरियाल पर्वत की दूरी लगभग दस किलोमीटर है, और यात्रा के चार मुख्य पड़ाव हैं। यात्रा का आरंभ शाम 6:30 बजे होता है। पहला पड़ाव कोदिमा गांव है, जहां यात्रा रात 8 बजे पहुंचती है। दूसरे पड़ाव बासो में भक्तजन अलाव का सहारा लेते हुए जंगल में भजन-कीर्तन करते हैं। रात 12 बजे के बाद यात्रा तीसरे पड़ाव पंचरंग्या पहुंचती है, जहां मां भगवती को स्नान कराया जाता है और भक्त कुछ देर विश्राम करते हैं। इसके बाद यात्रा अंतिम पड़ाव कनखल की ओर प्रस्थान करती है, जहां भक्त सुबह 5 बजे तक विश्राम करते हैं।

सूर्य की पहली किरण के साथ मां का मंदिर में प्रवेश

सुबह होते ही सूर्य की पहली किरण के साथ मां हरियाली देवी की डोली हरियाल पर्वत पर अपने मंदिर में प्रवेश करती है। यहां देवी का स्वागत पाबो गांव के लोग पुष्पमालाओं और जयकारों के साथ करते हैं। इसके बाद हरियाल मंदिर में हवन, पूजा और अर्चना होती है। इस विशेष यात्रा का समापन जसोली मंदिर में होता है। पूरी यात्रा घने जंगलों के बीच से होती हुई भगवती के जयकारों के साथ पूरी की जाती है, और इसे नंगे पांव किया जाता है, जो श्रद्धा का प्रतीक है।

पवित्र वन क्षेत्र में होती है यात्रा

हरियाली देवी का जंगल पवित्र वनों में गिना जाता है और इसे यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस वन का संरक्षण देवी के नाम से ही किया जाता है। पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली के अनुसार, इस यात्रा के दौरान धनपुर, रानीगढ़, बच्छणस्यूं और चलणस्यूं पट्टियों के लोग मां के दर्शन के लिए विशेष रूप से पहुंचते हैं। इस अवसर पर मायके की धियाणियों को भी विशेष रूप से बुलाया जाता है।

कैसे पहुंचें हरियाली देवी मंदिर

हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जसोली पहुंचकर शाम 6:30 बजे यात्रा में शामिल होकर हरियाल पर्वत के लिए प्रस्थान किया जा सकता है। भक्तजन जसोली से हरियाल पर्वत तक की दस किलोमीटर की यात्रा पैदल नंगे पांव पूरी करते हैं।

देवी के मायके में भोग और विदाई

यात्रा के अगले दिन वापसी में कोदिमा गांव की महिलाएं अपनी बेटी के रूप में देवी की डोली को पूरी, पकौड़ी और नए अनाज का भोग अर्पित करती हैं और भावुक होकर नम आंखों के साथ देवी को विदा करती हैं। यह रस्म भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है और इसे गहरे प्रेम और श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।

Mansi Negi

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