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Waqf Amendment Act: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर सुनवाई जारी, पढ़ें कपिल सिब्बल ने क्या दी दलीलें?

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अंतरिम रोक की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जे का जरिया बताया। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के हनन का आरोप लगाते हुए विभिन्न धाराओं की वैधानिकता पर सवाल उठाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है और मामले पर आज सुनवाई हो रही है।

Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। कानून की वैधानिकता को चुनौती देते हुए मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कानून का विरोध किया और दलील दी कि ‘ऐसा कहा जा रहा है कि यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए है, जबकि इसका मकसद वक्फ पर कब्जा करना है। उन्होंने कहा कि कानून इस तरह बनाया गया है कि बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए वक्फ संपत्ति छीन ली जाए।’

वक्फ अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं

सिब्बल ने कानून की विभिन्न धाराओं का हवाला देते हुए उनकी वैधानिकता पर सवाल उठाया और वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया। भोजनावकाश के बाद सिब्बल की दलीलें जारी रहेंगी।

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है।

पढ़े : ‘वक्फ अल्लाह को दिया गया दान है, संपत्ति हस्तांतरित नहीं की जा सकती’, कपिल सिब्बल ने SC में दी दलील

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई है, जबकि दूसरी ओर केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कानून को सही ठहराते हुए अंतरिम रोक का विरोध किया है।

सिब्बल ने की कानून पर अंतरिम रोक की मांग

वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा शीर्ष अदालत में दो और याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें मूल वक्फ अधिनियम को चुनौती दी गई है और मूल वक्फ अधिनियम 1995 और 2013 को गैर-मुस्लिमों के प्रति भेदभावपूर्ण बताते हुए इन्हें निरस्त करने की मांग की गई है। हरिशंकर जैन और पारुल खेड़ा की इन याचिकाओं पर कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया है, लेकिन केंद्र ने अभी तक इन पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में संशोधित कानून को मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की गई है। वैसे तो कोर्ट में दो दर्जन याचिकाएं दाखिल की गई थीं, लेकिन 17 अप्रैल को पिछली सुनवाई में कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी करते हुए साफ कर दिया था कि वह सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही विचार करेगा। उन पांच याचिकाओं में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका भी शामिल है।

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पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र की ओर से दिए गए आश्वासन को किया था दर्ज

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने अंतरिम आदेश के मुद्दे पर केंद्र की ओर से दिए गए आश्वासन को दर्ज किया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि कोर्ट के अगले आदेश तक सेंट्रल वक्फ काउंसिल और स्टेट वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जाएगी।

इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा था कि नोटिफाइड या रजिस्टर्ड वक्फ, जिसमें यूजर वक्फ भी शामिल है, को डी-नोटिफाइड नहीं किया जाएगा और न ही उनकी प्रकृति में बदलाव किया जाएगा।

न्यायालय ने उसी दिन अपने आदेश में कहा था कि अगली तारीख पर सुनवाई प्रारंभिक सुनवाई होगी और यदि आवश्यक हुआ तो अंतरिम आदेश भी पारित किया जाएगा। इसी आदेश के मद्देनजर मंगलवार को कोर्ट में वक्फ संशोधन एक्ट पर अंतरिम रोक की मांग पर सुनवाई शुरू हुई।

मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अंतरिम आदेश के मुद्दे पर बहस शुरू की। हालांकि, इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने अंतरिम आदेश के पहलू पर तीन मुद्दे तय किए हैं और केंद्र सरकार ने उन तीनों मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है।


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आज सुनवाई के दौरान सिब्बल ने क्या दलीलें दीं?

कोर्ट को सुनवाई उन्हीं तीन मुद्दों तक सीमित रखनी चाहिए। लेकिन कपिल सिब्बल ने मेहता की दलीलों का विरोध किया और कहा कि कोर्ट ने मामले पर बहस को सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित रखने का कोई आदेश नहीं दिया है। बहस कानून के सभी मुद्दों पर होगी।

अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती। इसके बाद सिब्बल ने बहस शुरू की और अपनी दलीलें पेश कीं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनका पक्ष स्पष्ट रूप से समझने के लिए कई सवाल भी पूछे, जैसे कि क्या पहले के वक्फ कानून में वक्फ का पंजीकरण अनिवार्य था या स्वैच्छिक। और क्या पंजीकरण न कराने पर कोई परिणाम होता था?

सिब्बल ने कहा कि कानून में वक्फ का पंजीकरण कराने का प्रावधान है और वक्फ का पंजीकरण कराना मुतवल्ली की जिम्मेदारी है और अगर पंजीकरण नहीं कराया जाता है तो मुतवल्ली के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन उस कानून में वक्फ को खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है। सिब्बल की दलीलें लंच ब्रेक के बाद भी जारी रहेंगी।

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Written By। Chanchal Gole। National Desk। Delhi

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