Guru Purnima Special: यहां है दुनिया का पहला गुरुकुल, जहां आज भी लगती है श्रीकृष्ण की क्लास!
गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु के ज्ञान, मार्गदर्शन और योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर आइए जानें उस अद्भुत स्थान के बारे में, जिसे माना जाता है दुनिया का पहला गुरुकुल, और जहां आज भी श्रीकृष्ण की 'क्लास' लगती है।
Guru Purnima Special: गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु के ज्ञान, मार्गदर्शन और योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर आइए जानें उस अद्भुत स्थान के बारे में, जिसे माना जाता है दुनिया का पहला गुरुकुल, और जहां आज भी श्रीकृष्ण की ‘क्लास’ लगती है।
कहां है यह दिव्य गुरुकुल?
यह प्राचीन गुरुकुल स्थित है उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में, जिसे “संधीपनि आश्रम” के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण और बलराम ने यहीं पर आकर अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। यही नहीं, श्रीकृष्ण के साथ सुदामा भी इसी गुरुकुल में उनके सहपाठी थे।
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क्यों है यह दुनिया का पहला गुरुकुल?
संधीपनि ऋषि द्वारा स्थापित यह गुरुकुल हजारों वर्षों पुराना है। यहां आज भी वैदिक परंपराओं के अनुसार शिक्षा दी जाती है। यह स्थल गुरु-शिष्य परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जहां केवल ज्ञान ही नहीं, जीवन जीने की कला भी सिखाई जाती थी।
आज भी होती है श्रीकृष्ण की ‘क्लास’
आश्रम में स्थित प्राचीन यज्ञशाला, कक्षाएं और मंदिर इस बात की गवाही देते हैं, कि यह स्थान केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी जीवंत है। गुरु पूर्णिमा के दिन यहां पूजा और ‘कृष्ण-क्लास’ की प्रतीकात्मक प्रदर्शन होता है, जिसमें शास्त्रों, गीता और नीति श्लोकों का पाठ होता है। बच्चे आज भी पारंपरिक वेशभूषा में गुरुकुल प्रणाली से शिक्षा ग्रहण करते हैं।
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गुरु पूर्णिमा का संदेश
गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि संस्कार और श्रद्धा का उत्सव है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन में जो भी उजाला है, वह गुरु के ज्ञान से ही संभव है। श्रीकृष्ण स्वयं ने भी जीवन में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया।
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क्या है खास?
संधीपनि आश्रम आज भी दर्शन के लिए खुला है।
हर साल हजारों श्रद्धालु यहां गुरु पूर्णिमा पर आते हैं।
गुरुकुल के बच्चे वेदपाठ, संस्कृत और गीता ज्ञान की शिक्षा आज भी पाते हैं।
जब भी गुरु पूर्णिमा आए, तो सिर्फ पूजन और व्रत तक सीमित न रहें, उस गुरु-शिष्य परंपरा को समझें जिसने श्रीकृष्ण जैसे दिव्य व्यक्तित्व को भी आकार दिया। मथुरा स्थित संधीपनि आश्रम इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि प्राचीन भारत का शिक्षा तंत्र कितना समृद्ध और शुद्ध था।
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