GST Council Meeting: GST परिषद की अगली बैठक में दरों में सरलीकरण और सेस पर होगी गहन चर्चा, राजस्व संतुलन भी रहेगा केंद्र में
GST परिषद की आगामी बैठक में टैक्स स्लैब के सरलीकरण, दरों के युक्तिकरण और कंपनसेशन सेस के भविष्य पर व्यापक चर्चा की जाएगी। बीमा प्रीमियम पर जीएसटी में राहत पर भी विचार किया जाएगा, लेकिन राजस्व हानि की आशंका के चलते सभी राज्यों की सहमति जरूरी होगी। बैठक का उद्देश्य जीएसटी प्रणाली को अधिक सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनाना है।
GST Council Meeting: वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली को और अधिक सरल और व्यावहारिक बनाने की दिशा में जीएसटी परिषद की अगली बैठक महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में टैक्स स्लैब को सरल बनाने, दरों के रेशनलाइजेशन (युक्तिकरण) और कंपनसेशन सेस के भविष्य को लेकर विस्तार से विचार-विमर्श किया जाएगा। हालांकि, यह निर्णय एक ही बैठक में नहीं लिए जा सकेंगे क्योंकि विषयवस्तु बेहद व्यापक है और गहराई से विचार की आवश्यकता है।
एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने जानकारी दी कि जीएसटी को सरल बनाने के कई आयाम हैं। इसमें प्रमुख रूप से चार बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा — टैक्स स्लैब का सरलीकरण, दरों का युक्तिकरण, कंपनसेशन सेस की दिशा और बीमा सेवाओं पर कर की समीक्षा। परिषद इन सभी मुद्दों पर प्रारंभिक चर्चा इस बैठक में शुरू करेगी, लेकिन अंतिम निर्णय कई चरणों में लिए जाने की संभावना है।
बीमा सेवाओं पर दरों में राहत पर अब भी संशय
पिछली बैठक में स्वास्थ्य और जीवन बीमा सेवाओं पर जीएसटी दरों को कम करने का मुद्दा भी उठाया गया था, लेकिन उस पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका था। परिषद के सदस्यों ने महसूस किया कि दरों में छूट देने से राज्यों को राजस्व हानि हो सकती है, इसलिए इस पर और अधिक गहन चर्चा की आवश्यकता है। बीमा नियामक संस्था IRDAI से भी इस संबंध में टिप्पणी मांगी गई है, जिसकी प्रतीक्षा की जा रही है।
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सूत्रों के मुताबिक, कुछ राज्य बीमा सेवाओं पर दरों में प्रस्तावित कटौती को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि इससे राजस्व संग्रह पर असर पड़ेगा, खासकर उन राज्यों में जहां बीमा सेवाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
रेट स्ट्रक्चर को युक्तिसंगत बनाने की पहल
जीएसटी के वर्तमान ढांचे में चार प्रमुख टैक्स स्लैब हैं—5%, 12%, 18% और 28%। परिषद की योजना इन स्लैब को सरल बनाकर दो या तीन तक सीमित करने की है। मंत्रियों के समूह ने 148 वस्तुओं पर दरों में बदलाव के लिए सुझाव दिए हैं, जिनकी समीक्षा की जा रही है। हालांकि, इन बदलावों से जुड़ी संभावित राजस्व हानि और उपभोक्ताओं पर प्रभाव का आंकलन अभी किया जाना बाकी है।
रेट रेशनलाइजेशन का उद्देश्य टैक्स प्रणाली को अधिक पारदर्शी और उपभोक्ता के अनुकूल बनाना है। इससे व्यापारियों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा। लेकिन इस प्रक्रिया में केंद्र और राज्य दोनों की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाए रखना जरूरी होगा।
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कंपनसेशन सेस पर भी मंथन जारी
GST लागू होने के समय राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई के लिए कंपनसेशन सेस लगाया गया था। यह सेस जुलाई 2022 तक लागू था, जिसे अब कुछ विशेष कर्जों की अदायगी के लिए जारी रखा गया है। परिषद इस बात पर भी विचार कर रही है कि सेस का भविष्य क्या होना चाहिए। क्या इसे पूरी तरह समाप्त किया जाए या विशेष उत्पादों पर सीमित रखा जाए, इस पर विचार मंथन जारी है।
राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण
जीएसटी परिषद में केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता होती है, लेकिन सभी राज्य वित्त मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इसलिए किसी भी निर्णय पर सहमति बनाना आवश्यक होता है। बीते समय में कई बार राज्यों की आपत्तियों के चलते कई निर्णय टाल दिए गए हैं। यही कारण है कि इस बार भी परिषद का ध्यान सभी पक्षों के संतुलन पर रहेगा।
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GST परिषद की अगली बैठक कई अहम फैसलों की नींव रख सकती है, जिससे कर प्रणाली में पारदर्शिता, सरलता और संतुलन लाया जा सके। हालांकि, अंतिम निर्णय तक पहुंचने में समय लग सकता है, क्योंकि प्रस्तावित बदलावों का व्यापक आर्थिक प्रभाव पड़ेगा। टैक्स स्लैब की समीक्षा, बीमा पर टैक्स छूट, और सेस के भविष्य जैसे मुद्दे आने वाले महीनों में नीति-निर्माण की दिशा तय करेंगे।
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