India-Iran diplomacy: ईरान की भारत-पाक मध्यस्थता पेशकश से गरमाया राजनीतिक माहौल, भारत ने ठुकराई दखल की कोशिश
ईरानी विदेश मंत्री की मध्यस्थता की पेशकश पर भारत ने सख्त रुख अपनाया है। भारत ने स्पष्ट किया कि भारत-पाक मुद्दे द्विपक्षीय हैं और किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है। पहलगाम हमले के बाद कूटनीतिक माहौल में हलचल बढ़ी है।
India-Iran diplomacy: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। इस माहौल में ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची की पाकिस्तान यात्रा और भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की पेशकश ने कूटनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है। ईरानी मंत्री ने पाकिस्तान में न केवल पहलगाम हमले की निंदा की बल्कि संयम बरतने की अपील के साथ भारत-पाक के बीच तनाव कम करने में मदद करने की इच्छा भी जताई।
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अराघची 8 मई को भारत दौरे पर आ रहे हैं, जिससे पहले उनका यह बयान भारतीय रणनीतिक समुदाय में चर्चा का विषय बन गया है। भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता।
भारत का रुख स्पष्ट, नहीं चाहिए मध्यस्थता
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने इस पहल को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सभी मुद्दे द्विपक्षीय रूप से हल किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि शिमला समझौता इस बात का प्रमाण है कि किसी तीसरे पक्ष की भूमिका की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने चेताया कि किसी की मध्यस्थता स्वीकार करना शिमला समझौते को कमजोर करने जैसा होगा, जिसका पाकिस्तान वैसे भी सम्मान नहीं करता।
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राजनयिक और रक्षा विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
पूर्व भारतीय राजनयिक केपी फेबियन ने आशंका जताई कि ईरानी मंत्री पाकिस्तान से कोई संदेश लेकर भारत आ सकते हैं, लेकिन भारत का जवाब स्पष्ट रहेगा कि वह किसी प्रकार की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने यह भी संकेत दिए कि यात्रा के दौरान ईरान के साथ तेल व्यापार, अमेरिका-ईरान संबंध और चाबहार बंदरगाह जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हो सकती है।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (से.नि.) जीडी बख्शी ने ईरान-पाक संबंधों को तनावपूर्ण बताते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच हाल ही में सीमा पार हमलों की घटनाएं हुई हैं। इसके बावजूद ईरान भारत के साथ चाबहार बंदरगाह जैसे रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखे हुए है, जो अफगानिस्तान तक पहुंच के लिए एक अहम मार्ग है।
भारत ने दिखाई सख्ती, जयशंकर ने दिया कड़ा संदेश
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस संदर्भ में दो टूक कहा कि “भारत को भागीदार चाहिए, उपदेशक नहीं।” उनका यह बयान उन देशों के लिए सख्त संदेश है जो भारत-पाक मुद्दों में हस्तक्षेप करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भारत अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर किसी तरह की रियायत देने को तैयार नहीं है।
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पाकिस्तान का दबाव और अंतरराष्ट्रीय कोशिशें
बताया जा रहा है कि पाकिस्तान भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से भी संपर्क कर रहा है। वहीं, मलेशिया और ईरान जैसे देश भारत-पाक तनाव कम कराने के लिए मध्यस्थता की इच्छा जता रहे हैं। लेकिन भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर समेत सभी विवाद द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से ही सुलझाए जाएंगे।
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ईरान की इस पहल से स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत-पाक के तनाव को लेकर चिंतित है, लेकिन भारत अपनी रणनीतिक स्थिति और आत्मनिर्भर विदेश नीति को लेकर पूरी तरह स्पष्ट और अडिग है। आने वाले दिनों में अराघची की दिल्ली यात्रा पर निगाहें रहेंगी, लेकिन यह तय है कि भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी प्रकार की विदेशी मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा।
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