Kargil Vijay Diwas 2024: आज ही के दिन पाकिस्तानी सेना के पीछे हटने के बाद भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर एक बार फिर अपना झंडा फहराया था। उस घटना को याद करके आज भी उनकी आंखें चमक उठती हैं।
आज यानि 26 जुलाई को पूरे देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। ये खास दिन उन शहीदों को याद करने के लिए मनाया जाता हैं जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को पराजित करते हुए शहादत हासिल की थी. देश इस दिन उनकी शहादत को सलाम करता है. इसके अलावा, यह दिन 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ देश की जीत का सम्मान करता है पूरा देश आज कारगिल में अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों को श्रद्धाजंलि दे रहा है।
कारगिल युद्ध में जीत और पाकिस्तान को हराने की कहानी हर कोई सुन रहा है। वीर भूमि सेना में अर्धसैनिक बल के कमांडो रवींद्र सिंह आज भी कारगिल युद्ध के खतरनाक पलों को याद करके रोमांचित हो उठते हैं। टाइगर हिल पर उन्होंने तिरंगा झंडा फहराया था। बारह कमांडो के साथ रविन्द्र ने कहा कि वे आगे बढ़ रहे हैं। मातृभूमि की रक्षा के लिए दुश्मन को जवाब देते हुए जिला कमांडो जगदीश यादव और बालेन्द्र सिंह देश के लिए शहीद हो गए। लेकिन, टुकड़ी ने हार नहीं मानी। उन्होंने आगे बढ़ते हुए ऊपर तैनात पाकिस्तानी सैनिकों को परास्त किया। आखिरकार वे टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने में सफल रहे। आज भी जब वे इस घटना के बारे में सोचते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं।
कमांडो रविन्द्र सिंह उस अद्भुत कहानी याद करते हुए बताते हैं कि भूमि के 2 अमर सपूत अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले अमर बलदानियों की गौरव गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। महोबा के रहने वाले कारगिल युद्ध के विजेता भूमि वीर रविंद्र सिंह उस घटना को याद करके बहुत खुश होते हैं। 1997 में 21वीं पैरामिलिट्री कमांडो फोर्स में भर्ती हुए रविंद्र सिंह का जन्म 1 अप्रैल 1977 को महोबा में हुआ था। 5 फरवरी 1996 को उनका चयन राजपुताना राइफल्स में हुआ। फरवरी 2012 में सेना से सेवानिवृत्त हुए रविन्द्र सिंह अपनी मां अवध कुंवर, पिता ज्ञान सिंह, पत्नी आशा, बेटे और दो बेटियों के साथ जिला मुख्यालय महल आलमपुरा में रहते हैं।
गोला गिरने से हुए शहीद
टाइगर हिल के चैंपियन रविंद्र सिंह ने बताया कि हमें असम के जोरहाट में तैनात किया गया था। हमें कारगिल में 250 कमांडो भेजने के आदेश मिले थे। हम अप्रैल 1999 में श्रीनगर ( Srinagar) पहुंचे, फिर कारगिल (kargil) और द्रास क्षेत्र में गए। वहां ऊंची पहाड़ी पर उनकी बटालियन के कमांडो महोबा के जगदीश यादव दुश्मन को जवाब देते हुए चल रहे थे। अचानक एक गोला उनकी पीठ पर आकर गिरा और वे शहीद हो गए। लेकिन जम्मू-कश्मीर (jammu- Kashmir) के आर.एस.पुरा क्षेत्र में गंज गांव के रहने वाले वीर सपूत बालेंद्र सिंह दुश्मनों से लोहा लेते हुए देश के लिए बलिदान दिया।
बारह कमांडो के ग्रुप में आगे बढ़े
रविंद्र सिंह ने बताया, हमें बारह कमांडो के ग्रुप में आगे बढ़ने को कहा गया था। इसमें छह कमांडो आगे रहें और जब वो थक जाएंगे तो वे बाकी के 6 आगे बढ़ जाएंगे। जून माह 1999 में कार्रवाई करते हुए आगे-पीछे कर रेकी करते चल रहे थे। दुश्मन हर हरकत पर नज़र रखे हुए था। चलते हुए हम पहाड़ियों के पास ही रहे। अगर हम अनजाने में अपना सिर ऊपर उठा लेते तो हम पर तुरंत गोली चलाई जा सकती थी।
टाइगर हिल पर भारत की फतह
रविन्द्र सिंह ने आगे कहा उन्हें खबर मिली कि टाइगर हिल पर दुश्मन ने कब्ज़ा कर लिया है। चोटी तक पहुँचने में ढाई दिन लग गए। रात में हम नक्शे के हिसाब से आगे बढ़ते और दिन में चट्टानों के बीच छिप जाते। इस बीच कई सहयोगी मारे गए। हम 24 कमांडो शिखर पर पहुंचे थे, कमांडो सत्ते सिंह बिष्ट, सुरेंद्र सिंह, ओमवीर सिंह, महावीर और अन्य लोगों द्वारा टाइगर हिल पर झंडा फहराया गया।