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Manipur Violence मणिपुर की अशांत घाटी और पहड़ियों में सुलगते आग को दबाने की कहानी


Manipur Violence : दरअसल पूर्वोत्तर का इलाका पांच देशों की सीमा से सटा है। चीन ,बांग्लादेश ,भूटान ,नेपाल और म्यांमार की सीमा पूर्वोत्तर से मिलती है। म्यांमार के साथ पूर्वोत्तर की 1643 किलोमीटर की सीमा है। एक अनुमान के मुताबिक केवल म्यांमार से ही 50 हजार से ज्यादा शरणार्थी पूर्वोत्तर में हुए हैं और इनमे से करीब आठ हजार शरणार्थी मणिपुर में रह रहे हैं। आये दिन बर्मी लोग मणिपुर से गिरफ्तार भी होते रहे हैं। भारत सरकार को इस मसले पर भी काम करने की जरूरत है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में कहाँ के कितने शरणार्थी हैं और मणिपुर की इसमें क्या भूमिका है। संभव है कि मणिपुर में आज जो भी होता दिख रहा है उसमे बाहर के देशों से आये शरणार्थी भी कोई खेल कर रहे हों। यह एक संभावना की बात है। ऐसे में दूसरे देशों से आये शरणार्थियों को लेकर यूएन से बात करने की जरूरत हो सकती है। बता दें कि मणिपुर में म्यांमार से लोगों का आना जाना लगा रहता है। मीमार से ड्रग्स की भी आपूर्ति होती है और यह ड्रगस का धंधा भी मणिपुर को जला रहा हो इसकी भी जाँच भी की जानी चाहिए।

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म्यांमार में लोकतंत्र नहीं है। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद आपराधिक और अस्थिरता चरम पर है। यह अस्थिरता पुरे पूर्वोत्तर के लिए घातक है। ऐसे में भारत सरकार को यह भी प्रयास करना चाहिए कि चाहे जैसे भी हो म्यांमार में लोकतंत्र बहाल हो। वहां लोकतंत्र बहाल होता ही तो मणिपुर के साथ ही पूर्वोत्तर की बहुत सारी समस्याएं खत्म हो सकती है। म्यांमार में अभी अफीम का उत्पादन काफी बढ़ गया है। यह अफीम भी पुरे सीमाई इलाके में हिंसा का बड़ा कारण बना हुआ है।
ऐसे में मणिपुर में आज जो भी दिख रहा है उसके की कारण हो सकते हैं। यह केवल मैतेई और नागा ,कुकी के बीच का ही संघर्ष नहीं है। इसके पीछे की कहानी और बहुत कुछ हो सकती है। भारत सरकार को इस मामले पर नजर रखने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में हालत और भी बिगड़ सकते हैं।

मणिपुर की घाटी और पहाड़ियां आज भी सुलग रही हैं। हालांकि आज मणिपुर जतीय हिंसा का शिकार है और आपसी भेदभाव को लेकर एक दूसरे के खिलाफ मणिपुरी खड़े दिख रहे हैं। मणिपुर की घाटी और पहाड़ में सेनाओं के कदमतल जरी हैं और कड़क जूतों की आज से भय भी होता है। लेकिन मणिपुर के लिए यह सब कोई नया नहीं है। राजनीति और सामाजिक ताना बाना ने मणिपुर की कहानी को काफी पहले ही बदरंग कर दिया था। मणिपुर को कभी शांत नहीं रहने दिया गया। इतिहास उठाकर देखिये तो पता चलेगा कि पूर्वोत्तर का यह राज्य हमेशा से ही उग्रवाद का शिकार रहा। एक समय था कि इस छोटे से प्रदेश में तीन दर्जन से भी अधिक चरमपंथी संगठन काम करते थे और हर रोज की हिंसा में लोगों की जाने चली जाती थी। चरम पंथ से जकड़ा मणिपुर तो बर्बाद हो ही रहा था ,अस पास के पडोसी राज्य और पडोसी देश भी इस हिंसा के शिकार थे। कभी -कभी हिंसा के प्रायोजक भी। मणिपुर के युवा ड्रग के आदि हुए। हथियारों ने युवाओं को हिंसक बनाया और फिर युवा वह सब करते दिखे जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लम्बे समय तक मणिपुर उग्रवाद क शिकार रहा। न जाने कितनी जाने चली गई और कितने घर बर्बाद हो गए।


मणिपुर कभी शांत नहीं था। लेकिन 3 से मणिपुर सुलग गया। घाटी और पहाड़ के लोग आपस में भीड़ गए। घाटी में बसी हिन्दू बहुल आबादी और पहाड़ में बसी आदिवासियों की कुकी और नागा आबादी एक दूसरे पर हमला करने को तैयार हो गए। फिर तो सब एक दूसरे के खिलाफ हो गए। सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। कहा जा रहा है कि सब कुछ शांत है लेकिन सच यही है कि न तो मणिपुर की घाटी में शांति है और न ही पहाड़ में शान्ति। अशांत मणिपुर को शांत रखने की कोशिश की जा रही है। यह विस्फोट कभी भी हो सकता है और जब होगा तो भयानक होगा।

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Ashok Kumar

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