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Research on Ganga Water: जानें गंगाजल के वैज्ञानिक पहलू, सालों पहले शोध में हुआ था खुलासा

गंगा नदी के पानी का सिर्फ़ धार्मिक और पौराणिक महत्व ही नहीं है। वैज्ञानिक शोधों में भी गंगाजल के बारे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा में बहने वाले प्रदूषण के बावजूद इसकी पवित्रता पर कोई सवाल नहीं है। सालों तक बोतलों में बंद रखा गया गंगाजल कभी खराब नहीं होता। इसके पीछे क्या वजह है? विस्तार से पढ़ें।

Research on Ganga Water: गंगा सदियों से बहती आ रही है और आम से लेकर खास तक को जीवन दे रही है। गंगा अविरल बहे या बोतलबंद रहे, इसे जीवनदायिनी क्यों कहा जाता है? गंगा मैली और प्रदूषित होने के बावजूद पवित्र क्यों कही जाती है? सालों से बोतलबंद गंगा का पानी कभी सड़ता या बदबूदार नहीं होता। गंगा की पौराणिकता से तो सभी वाकिफ हैं लेकिन आज हम इसके वैज्ञानिक पहलू के बारे में कुछ जानकारी पेश करेंगे। गंगा के पानी को दूसरी नदियों की तुलना में अमृत क्यों कहा जाता है?

महाकुंभ के ऐतिहासिक मौके पर प्रयागराज में गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है। शाही स्नान में करोड़ों श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं। इनमें देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लाखों श्रद्धालु शामिल हैं। हजारों की संख्या में साधु-संत और अखाड़ों के प्रमुख अमृत स्नान कर रहे हैं। गंगा में डुबकी लगाने की प्रक्रिया को अमृत स्नान कहा जाता है। ये अमृत क्या है? वैज्ञानिक रिपोर्ट में बताया गया है कि गंगा के पानी में ऐसे वायरस होते हैं जो एंटीबायोटिक्स की तरह असर करते हैं। मेडिकल साइंस में एंटीबायोटिक्स को बीमारियों को ठीक करने के लिए जाना जाता है। यानी गंगा का पानी अमृत के समान है जो इंसान को स्वस्थ बनाता है।

गंगा के पानी को एंटीबायोटिक क्यों कहा जाता है?

श्रद्धालु आस्था के साथ गंगा में डुबकी लगाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग इसके वैज्ञानिक पहलू को जानते हैं। भारत में कुंभ, अर्धकुंभ, महाकुंभ जैसे कई अवसर आते हैं जब हिंदू मान्यताओं को मानने वाले श्रद्धालु गंगा, नर्मदा या अन्य नदियों में स्नान करते हैं। जिसके बाद श्रद्धालुओं को न केवल संतुष्टि मिलती है बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का भी अहसास होता है। देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने इसे अजूबा माना और गंगा जल की शक्ति का गहराई से अध्ययन किया। प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण किया गया और फिर एक रिपोर्ट तैयार की गई। इनमें द रॉयल सोसाइटी जर्नल ऑफ द हिस्ट्री ऑफ साइंस की एक रिपोर्ट भी है जिसमें गंगा जल के गुणों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

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वैज्ञानिकों की रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषित होने के बावजूद गंगा जल को पवित्र मानने का रहस्य वर्षों पुराना है। परीक्षण के बाद पाया गया है कि गंगा जल कई वर्षों तक खराब नहीं होता। गंगा को छोड़कर किसी भी अन्य नदी का पानी लंबे समय तक बोतलों में बंद करके नहीं रखा जाता। आजकल बाजार में ब्रांडेड पानी की बोतलों की भरमार है, लेकिन उन्हें सालों तक रखा नहीं जा सकता। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार – गंगा सीधे स्वर्ग से धरती पर उतरी हैं। गंगा का मिशन मनुष्यों को जीवन देना है। भले ही प्राकृतिक आपदा या किसी अन्य कारण से अनगिनत शव गंगा में फेंक दिए जाएं, लेकिन गंगा का पानी फिर भी स्वच्छ और पवित्र बना रहता है।

गंगा नदी में होते हैं बैक्टीरियाफेज मौजूद

वैज्ञानिकों ने बताया कि गंगा नदी के पानी में बैक्टीरियोफेज हैं। यह एक तरह का वायरस है जो पानी में बैक्टीरिया की मात्रा को बढ़ने नहीं देता। गंगा का पानी हमेशा बैक्टीरिया मुक्त रहता है, इसीलिए इसका एक नाम सदानीरा भी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बैक्टीरियोफेज प्रोटीन से बने होते हैं। जहां बैक्टीरियोफेज नहीं होते, वहां बैक्टीरिया ज्यादा घातक होते हैं। वैज्ञानिकों ने माना है कि भारत की सभी नदियों में गंगा में बैक्टीरियोफेज की मात्रा सबसे ज्यादा है, इसलिए यहां खतरनाक बैक्टीरिया न के बराबर हैं। या अगर हैं भी तो जल्द ही नष्ट हो जाते हैं।

बैक्टीरियोफेज एक ऐसा वायरस है जो हजारों हानिकारक सूक्ष्मजीवों को मारता है। बैक्टीरियोफेज के अलावा गंगा में कई अन्य रोग निवारक तत्व भी हैं। गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा देश के कई बड़े शहरों से होकर गुजरती है। हर शहर से अलग-अलग तरह का कचरा गंगा में बहता है। वैज्ञानिकों की टीम ने यह भी पाया है कि कानपुर या ऐसे ही औद्योगिक शहरों के किनारे बहने वाली गंगा में खतरनाक किस्म का प्रदूषण डाला जाता है, इसके बावजूद पानी में मौजूद बैक्टीरियोफेज इसके दुष्प्रभावों को जल्द ही नष्ट कर देता है और गंगा साफ रहती है।

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वैज्ञानिकों ने अपने शोध में कहा है कि गंगा में न केवल बैक्टीरियोफेज वायरस होते हैं, बल्कि पोटीविरिडे, लैम्ब्डावायरस, रेट्रोवायरस के, पैपिलोमावायरस और अल्फापोलियोमावायरस भी होते हैं, जो मिलकर एंटीबायोटिक्स बनाते हैं।

संगम में स्नान का क्या महत्व है?

गंगा और यमुना के मिलन स्थल को संगम कहा जाता है। यह प्रयागराज में है। इस संगम के तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यहां स्नान करने के लिए होड़ मची रहती है। इसका धार्मिक पौराणिक महत्व भी है। ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैनबरी हैनकिन ने करीब 125 साल पहले संगम के पानी पर शोध किया था। साल था 1896। हैनकिन ने गंगा के पानी में बैक्टीरियोफेज की खोज की थी। हैनकिन को पहले से ही पता था कि भारत में गंगा जल को रोग निवारक के रूप में भी जाना जाता है, जिसका वर्णन प्राचीन धार्मिक साहित्य में किया गया है। उनकी जिज्ञासा का आधार यह था कि गंगा में स्नान करने से पापों से मुक्ति क्यों मिलती है। संगम पर लगने वाले कुंभ मेले में इतने लोग क्यों आते हैं?

अर्नेस्ट हैनबरी हैनकिन ने गंगा और यमुना नदियों के पानी में एंटीसेप्टिक तत्वों की मौजूदगी की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि एंटीसेप्टिक तत्व भारतीय नदियों में ही बनते हैं। हैनकिन ने यह भी कहा था कि गंगा का बिना उबाला हुआ पानी तीन घंटे से भी कम समय में हैजा जैसी बीमारियों के कीटाणुओं को मारने की क्षमता रखता है। हैनकिन कैम्ब्रिज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के फेलो थे और उन्होंने लंदन में प्रशिक्षण लिया था। उनका मानना ​​था कि गंगा और यमुना नदियों के आसपास रहने वाली आबादी इन नदियों का पानी पीने से कभी हैजा से पीड़ित नहीं हुई।

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हैनकिन के अलावा कई अन्य शोध भी किए गए

हैनकिन के अलावा भी गंगा के पानी पर कई शोध हुए हैं। 1916 में यूरोप के खोजी पत्रकार फेलिक्स डी’हेरेल और विक्टर मैलेट ने भी गंगा के बारे में लिखा था कि यह ‘जीवन की नदी, मृत्यु की नदी’ है। जहरीली होने के बावजूद भी यह पूजनीय है। हालांकि विक्टर मैलेट ने यह भी पाया था कि गंगाजल की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है, इसकी वजह गंगा का अत्यधिक प्रदूषण है। गंगाजल में कीटाणुओं को मारने की क्षमता कम हो गई है। आईआईटी रुड़की और सीएसआईआर ने गंगाजल में 20 से ज्यादा तरह के ऐसे किलर तत्वों की पहचान की है जो हैजा ही नहीं बल्कि टीबी, निमोनिया जैसी बीमारियों के कीटाणुओं से भी लड़ते हैं।

एनआईआरआई के शोधकर्ता डॉ. कृष्ण खैरनार ने 50 अलग-अलग जगहों से गंगा के पानी के नमूने एकत्र करके शोध किया। उन्होंने पाया कि गंगा नदी में एक स्व-शुद्धिकरण मशीन है। यानी गंगा अपने पानी को खुद ही शुद्ध करती रहती है। उन्होंने कुंभ मेले के दौरान भी नमूने एकत्र किए। उन्होंने पाया कि गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा देश की सभी नदियों के मुकाबले सबसे अधिक है।

वैज्ञानिकों की टीम ने अपने अध्ययन में यह भी बताया है कि गंगा नदी का पानी सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र और स्वच्छ है। गंगा में कीटाणुओं, भारी धातुओं और विषैले तत्वों को मारने की क्षमता अन्य नदियों की तुलना में कहीं ज़्यादा है। गंगा के बाद नर्मदा और यमुना नदियाँ आती हैं जिनका पानी लोगों को कीटाणुओं से दूर रखता है।

इन अध्ययनों के बाद देशवासियों ने यह मानना ​​शुरू कर दिया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों में कुछ ऐसे तत्व हैं जो मानव जीवन को शक्ति देते हैं। मनुष्य को ऊर्जावान बनाते हैं और स्वस्थ रखते हैं। आज भी गंगा में स्नान करने वाले लाखों लोग इस वैज्ञानिक पहलू को ठीक से नहीं जानते, वे सिर्फ धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं पर ही विश्वास करते हैं।

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Written By। Chanchal Gole। National Desk। Delhi

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