Kunal Kamra: कुणाल कामरा ने ‘शिंदे जोक’ केस में FIR रद्द कराने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया
कॉमेडियन कुणाल कामरा ने मुख्यमंत्री शिंदे पर की गई टिप्पणी के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की है।उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला बताया है।कोर्ट अब यह तय करेगा कि यह टिप्पणी हास्य के दायरे में आती है या आपराधिक श्रेणी में।
Kunal Kamra: प्रसिद्ध स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी को लेकर दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कराने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। कामरा के खिलाफ यह एफआईआर एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दर्ज की गई थी, जिसमें उन्होंने शिंदे को लेकर एक व्यंग्यात्मक ‘जोक’ किया था।
कामरा ने हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा है कि उनके बयान को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में देखा जाना चाहिए और यह किसी भी आपराधिक मंशा से नहीं कहा गया था।
क्या है पूरा मामला?
कुछ सप्ताह पहले कुणाल कामरा ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक जोक साझा किया था, जो कथित रूप से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की राजनीतिक स्थिति पर तंज कसता था। जोक के वायरल होने के बाद शिंदे समर्थकों ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे “अपमानजनक” और “राजनीतिक छवि को नुकसान पहुँचाने वाला” बताया।
इस बयान को आधार बनाकर उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कुछ धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई। मामला मुंबई पुलिस की साइबर सेल द्वारा दर्ज किया गया था।
कामरा की दलील: हास्य और कटाक्ष पर रोक नहीं लग सकती
कामरा ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि उनके द्वारा किया गया जोक एक सामान्य हास्य-व्यंग्य का हिस्सा था, जो किसी विशेष व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के इरादे से नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नेताओं पर कटाक्ष करना कलाकारों का सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकार है।
उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि एफआईआर को रद्द किया जाए क्योंकि यह एक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है और इससे कॉमेडी जैसी कला को दबाया जा सकता है।
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समर्थन और विरोध दोनों पक्ष सक्रिय
कुणाल कामरा के इस कदम को लेकर सोशल मीडिया और नागरिक समाज में मिलीजुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। एक ओर कई कलाकार, कॉमेडियन और सामाजिक कार्यकर्ता उनके समर्थन में सामने आए हैं और इसे कलात्मक स्वतंत्रता का मामला बता रहे हैं।
वहीं, दूसरी ओर, कुछ राजनीतिक समर्थकों और संगठनों का मानना है कि सार्वजनिक मंच पर किसी भी नेता के खिलाफ अपमानजनक भाषा या मज़ाक नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वह हास्य के नाम पर ही क्यों न हो।
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हाई कोर्ट में जल्द होगी सुनवाई
हाई कोर्ट ने कामरा की याचिका को स्वीकार कर लिया है और इस पर आने वाले दिनों में सुनवाई तय की गई है। कोर्ट यह तय करेगा कि कामरा की टिप्पणी को हास्य की श्रेणी में रखा जा सकता है या इसे आपराधिक इरादे वाला माना जाएगा।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अभिव्यक्ति की सीमा और जवाबदेही को लेकर एक अहम उदाहरण बन सकता है, खासकर डिजिटल युग में जहां सोशल मीडिया पर विचार तुरंत वायरल हो जाते हैं।
कुणाल कामरा का यह मामला सिर्फ एक कॉमेडी जोक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में हास्य, अभिव्यक्ति और आलोचना की स्वतंत्रता को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस की ओर इशारा करता है। आने वाले समय में हाई कोर्ट का निर्णय न केवल कामरा बल्कि देशभर के कलाकारों और विचारकों के लिए एक मिसाल तय कर सकता है।
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