LDF WORKER KILLED: हत्या मामलों में सजा कम करने से कमजोर होगा कानून का शासन: सुप्रीम कोर्ट
LDF WORKER KILLED: सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को हत्या के मामले में दोषी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि सजा में कमी करना अपराध की गंभीरता को कमजोर करना होगा।
LDF WORKER KILLED: नई दिल्ली, 7 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में दोषी को मिली आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि हत्या जैसे गंभीर अपराधों में सजा कम करना न केवल अपराध की गंभीरता को कमजोर करता है, बल्कि समाज में जीवन की पवित्रता और कानून के शासन पर जनता के विश्वास को भी डगमगाने का खतरा पैदा करता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने 6 दिसंबर को इस मामले में फैसला सुनाया। यह मामला 2006 में केरल के पथाईकरा गांव में हुई एक राजनीतिक हिंसा से जुड़ा है, जहां चुनाव चिह्न को लेकर हुए विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था और इसमें लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के समर्थक सुब्रमण्यन की हत्या कर दी गई थी।
क्या था मामला?
10 अप्रैल, 2006 को यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और एलडीएफ के समर्थकों के बीच एक पुस्तकालय के पास चुनाव चिह्न के चित्रांकन को लेकर विवाद हुआ था। इस विवाद ने हिंसक झड़प का रूप ले लिया और इसमें एलडीएफ समर्थक सुब्रमण्यन की मौत हो गई। इस मामले में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समर्थक 67 वर्षीय कुन्हिमुहम्मद उर्फ कुन्हेथु को दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की दोषी की दलील
दोषी कुन्हिमुहम्मद ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए तर्क दिया कि हत्या उसकी पूर्व नियोजित मंशा का परिणाम नहीं थी और यह घटना आपसी झगड़े में अनजाने में हुई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया।
जस्टिस विक्रम नाथ ने अपने फैसले में कहा कि मृतक के शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर जानबूझकर वार और बल प्रयोग यह साबित करता है कि आरोपी को अपने कृत्य के घातक परिणामों का पूरा ज्ञान था। अदालत ने कहा, “आईपीसी की धारा 300 के प्रावधानों के तहत, यदि किसी व्यक्ति का इरादा ऐसी चोट पहुंचाने का है, जो मृत्यु का कारण बन सकती है, तो यह हत्या मानी जाएगी। यहां तक कि अगर हत्या का उद्देश्य भिन्न हो, तो भी परिणाम का ज्ञान आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है।”
राजनीतिक अपराधों की गंभीरता
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यह अपराध राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण हुआ, जो इसे और अधिक गंभीर बनाता है। जस्टिस नाथ ने कहा, “राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित अपराध केवल जान गंवाने तक सीमित नहीं होते, बल्कि ये समाज में व्यापक अस्थिरता और कानून के शासन में जनता के विश्वास को कमजोर करने में योगदान देते हैं।”
सजा कम करने पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की सजा कम करने की मांग को खारिज करते हुए कहा कि हत्या जैसे गंभीर अपराधों में सजा में कमी का कोई स्थान नहीं है। पीठ ने कहा, “महत्वपूर्ण अंगों को निशाना बनाकर समूह में की गई हत्या इरादे और क्रूरता के स्तर को दर्शाती है। ऐसे मामलों में सजा कम करना न केवल न्यायिक प्रणाली के सिद्धांतों को कमजोर करेगा, बल्कि समाज में अपराध की पुनरावृत्ति को भी प्रोत्साहित कर सकता है।”
न्यायिक प्रणाली की जिम्मेदारी
अदालत ने अपने फैसले में न्यायिक प्रणाली की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि न्यायिक फैसले जवाबदेही और कानून के शासन को मजबूत करने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे अपराधों के प्रति कठोर रुख अपनाए, जो सामाजिक व्यवस्था और कानून की सर्वोच्चता को बाधित करते हैं।”
फैसले का संदेश
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल हत्या जैसे गंभीर अपराधों के प्रति न्यायपालिका की सख्ती को दर्शाता है, बल्कि यह भी साफ करता है कि सजा में कमी का उपयोग अपराध की गंभीरता को कमतर आंकने के लिए नहीं किया जा सकता। यह फैसला न्यायपालिका के इस दृष्टिकोण को मजबूती देता है कि कानून का शासन बनाए रखना और अपराधियों को उनके कार्यों की जिम्मेदारी से बचने न देना, न्यायिक प्रणाली की प्राथमिक जिम्मेदारी है।