Mission 2024: पहली खबर तो यही है कि कल 18 तारीख को बंगलौर और दिल्ली में देश के दो बड़े दलों के खेमों की बैठक होने जा रही है। बंगलौर की बैठक विपक्षी एकता के नाम पर हो रही है। इस नए गठजोड़ का नया नाम क्या होगा इसी पर मंथन होगा और फिर आगे की रणनीति बनेगी। बंगलौर की बैठक का आयोजन कांग्रेस कर रही है। उसी की अगुवाई में अब आगे का खेला होना है। खेला यही है कि बीजेपी की सरकार की विदाई की जाए क्योंकि इस सरकार ने देश को हर स्थिति में ख़राब हालत में ला खड़ा किया है। विपक्ष वाले कहते हैं कि बीजेपी ने संविधान की धज्जियां उड़ाई है ,लोगों को बांटने का काम किया है और देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया है। इसके साथ ही देश की जो आर्थिक हालत ख़राब हुई है उसके लिए मोदी सरकार की नीतियां दोषी है। ऐसे में अगर अगले चुनाव (loksabha election 2024) में भी बीजेपी की जीत होती है तो देश को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां बीजेपी और उसकी मोदी सरकार पर यही इल्जाम लगाती है।
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उधर बीजेपी की अपनी ठसक है और मोदी सरकार का अपना जलवा। आजाद भारत में यह पहली बार होता दिख रहा है कि सरकार जो कहती है वह करती नहीं और जो करती है उसकी जानकारी जनता को देती नहीं। एक से बढ़कर एक नए कानून देश के सामने आये। एक से बढ़कर एक नए फैसले आये लेकिन किसी भी फैसले की जानकारी न तो संसद को दी गई और नहीं जनता को। फिर मोदी सरकार कहती है कि वह देश की हितैषी पार्टी है, राष्ट्रवादी है। इसलिए वह जो कुछ भी कर रह है वह सब राष्ट्रवाद से प्रेरित है। ऐसा हो भी सकता है। लेकिन राष्ट्रवादी सरकार के इस अमृतकल में जनता इतना बेबस क्यों है ? बेरोजगार जान की बाजी क्यों लगाने को तैयार है ? देश की हाली हालत क्यों ख़राब है ? देश के लोग विदेश भागने को क्यों विवश हैं ? और सबसे बड़ी बात मौजूदा सरकार की सारी शक्तियां विपक्ष को दफ़न करने में ही क्यों लगी हुई है ? इसका जवाब सालों से खोजे जा रहे हैं लेकिन उत्तर नहीं मिल रहे हैं।
लेकिन ये सब तो आरोप-प्रत्यारोप की कहानी हैं। असली कहानी यही है कि सत्ता में कैसे बने रहे। जिस तरह से पीएम मोदी सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं है ठीक उसी तरह देश की कोई भी राज्य सरकार भला सत्ता क्यों छोड़ दें ? वह भी यही चाहती है कि उसकी सत्ता सरकार चलती रही। सरकार बचाने की यही लड़ाई आज दुश्मनी में बदलती जा रही है। देश का अब कोई भी नेता किसी से भी मन से नहीं मिल रहा ? हर मिलन में खेल है और दांव भी। इस खेल और दांव में अभी सबसे ज्यादा बीजेपी आगे चल रही है। जो बीजेपी कल तक देश की छोटी पार्टियों को ख़त्म करने का नारा लगाती थी आज उसी के साथ गलकबहियां करने को विवश है। आखिर क्यों ? कोई तो बात होगी ? जो बीजेपी कल तक जसको चोर और भ्रष्ट बता रही थी आज उसी के साथ सरकार बना रही है आखिर क्यों ?
जवाब एक ही है कि कैसे 2024 (loksabha election 2024) को कामयाब किया जाए। बीजेपी भी जानती है कि अगर 2024 का खेला ख़राब हुआ तो बहुत कुछ बदल जायेगा। बीजेपी में भी टूट हो सकती है। सत्ता सरकार में बैठे लोगों पर भी गाज गिर सकती है और वह सब हो सकता है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए बीजेपी के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती ये है कि चाहे जैसे भी हो अगला लोकसभा चुनाव जीत जाए।
उधर कांग्रेस की भी यही परेशानी है। कांग्रेस जानती है कि वह दस सालाें से विपक्ष में बैठी है। अगर इस बार भी सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी तो उसका भी खेला खत्म हो जायेगा। न पार्टी बचेगी और न ही कोई सहयोगी रहेगा। चलन तो यही है कि उगते सूरज को ही कोई प्रणाम करता है। जिसका सूरज ढलान पर हो उसके अपने भी साथ छोड़ जाते हैं।
मौजूदा समय में अमित शाह और राहुल गांधी की राजनीति दांव पर लगी है। पिछले दो चुनाव अमित शाह की रणनीति पर चलकर बीजेपी सत्ता तक पहुंची है। शाह की इस रणनीति में हर खेल शामिल रहा। साम ,दाम ,दंड और भेद का पूरा खेल किया गया। लेकिन अब उसकी भी एक सीमा है। अब इस सीमा से कोई भी दल आगे नहीं जा सकती। बीजेपी का यह चरम काल है। अब इसके बाद ढलान की ही बारी है। अमित शाह की परेशानी यह है कि अगर इस बार चूक गए तो बीजेपी नहीं बचेगी और जब बीजेपी पर हमला होगा तो फिर वे कहां जायेंगे ? उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का क्या होगा ? यही हाल राहुल गांधी का भी है। इस बार चूक गए तो कांग्रेस जमींदोज हो सकती है। फिर उसके साथ खड़ा होने वाला कोई नहीं बचेगा। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी समाप्त हो जाएगी। इसलिए 2024 (loksabha election 2024) की लड़ाई एक ऐसी लड़ाई है जिसमें कोई भी अनैतिकता के सहारे ही सही मैदान को फतह करने को बेचैन है। विपक्षी एकता और एनडीए की बैठक को इसी नजरिये से देखने की जरूरत है।