Metro Organ Transport: बेंगलुरु मेट्रो से पहुंचा जिंदगी का पैगाम, पहली बार ट्रेन बनी लिवर ट्रांसप्लांट की ‘लाइफलाइन’
बेंगलुरु में पहली बार मेट्रो ट्रेन का इस्तेमाल एक लिवर को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए किया गया। तेज़ ट्रैफिक के चलते सड़क मार्ग असंभव था, ऐसे में मेट्रो ने 'लाइफलाइन' की भूमिका निभाई। यह कदम जीवन रक्षक ट्रांसपोर्ट में नई दिशा की शुरुआत माना जा रहा है।


Metro Organ Transport: कभी जीवन की रफ्तार बढ़ाने वाली मेट्रो अब सीधे जीवन बचाने का जरिया बन गई। इतिहास में पहली बार बेंगलुरु मेट्रो के जरिए एक लिवर ऑर्गन को ट्रांसपोर्ट किया गया और वह भी इतना समय रहते कि मरीज की जान बच गई। यह मेट्रो की तेज़ रफ्तार, ट्रैफिक-फ्री सफर और बेहतरीन कोऑर्डिनेशन की अनोखी मिसाल बन गई है।
क्या हुआ था मामला?
बेंगलुरु के प्रसिद्ध नरेन हेल्थ सिटी अस्पताल में एक 38 वर्षीय गंभीर रूप से बीमार मरीज को लिवर ट्रांसप्लांट की सख्त जरूरत थी। दूसरी ओर, एक ब्रेन डेड डोनर से लिवर बेंगलुरु के उत्तरी इलाके में स्थित एक निजी अस्पताल में उपलब्ध था। दूरी सिर्फ 25 किलोमीटर थी, लेकिन शहर के ट्रैफिक को देखते हुए सड़क मार्ग से समय पर पहुंचना नामुमकिन लग रहा था।
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फिर आया मेट्रो का आइडिया
ट्रैफिक विभाग, मेट्रो प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारियों के बीच तत्काल संवाद हुआ। तय हुआ कि लिवर को ग्रीन कॉरिडोर की बजाय मेट्रो रेल के जरिए भेजा जाएगा। यह प्रयोगात्मक विचार था, लेकिन वक्त की मांग ने इसे मुमकिन बना दिया।
बेंगलुरु मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BMRCL) ने सिर्फ 30 मिनट में विशेष अनुमति दी और एक ट्रेन का सेक्शन अस्थायी रूप से आम यात्रियों से खाली करवा दिया गया।
12 मिनट में 17 किमी का सफर
लिवर को विशेष कंटेनर में सुरक्षित रखा गया और मेडिकल टीम के साथ यशवंतपुर स्टेशन से मेडिकल कॉलेज स्टेशन तक ले जाया गया। कुल यात्रा 12 मिनट में पूरी हुई, जो सड़क मार्ग से सामान्यतः एक घंटे से ज़्यादा लेती।स्टेशन पर पहले से मौजूद एम्बुलेंस ने लिवर को तुरंत अस्पताल तक पहुंचाया और 45 मिनट के भीतर सर्जरी शुरू हो गई। डॉक्टरों ने सफल ट्रांसप्लांट कर मरीज की जान बचा ली।
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मेट्रो बनी ‘मोबाइल ग्रीन कॉरिडोर’
इस घटना ने साबित किया कि मेट्रो सिर्फ यात्रियों को नहीं, जीवन को भी गति दे सकती है। बेंगलुरु मेट्रो अब देश की पहली मेट्रो बन गई है जिसने लिवर ट्रांसप्लांट जैसी संवेदनशील प्रक्रिया में भागीदारी निभाई।
BMRCL के एक अधिकारी ने बताया, “यह ट्रायल हमारे लिए भी नया था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग का साथ और तेज़ फैसले ने इसे मुमकिन बनाया। आगे भी अगर जरूरत पड़ी तो हम ऐसी इमरजेंसी के लिए तैयार रहेंगे।”
लोगों की प्रतिक्रियाएं
घटना के बाद सोशल मीडिया पर #MetroSavesLife ट्रेंड करने लगा। नागरिकों ने मेट्रो प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारियों की प्रशंसा की। कई लोगों ने लिखा कि अगर मेट्रो जैसी सुविधाएं ट्रांसप्लांट लॉजिस्टिक्स में शामिल हो जाएं, तो समय पर अंग पहुंचाना बहुत आसान हो सकता है।
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भविष्य की दिशा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट लॉजिस्टिक्स के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। अगर देश की अन्य मेट्रो सिटी जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद में भी यह मॉडल लागू किया जाए, तो ट्रैफिक की बाधा को पार करना सरल होगा।
जब सड़कों पर ट्रैफिक एक जीवन को छीन सकता है, वहीं पटरियों पर दौड़ती मेट्रो एक जीवन लौटा सकती है। बेंगलुरु मेट्रो ने आज यह दिखा दिया कि ‘लाइफलाइन’ केवल एक उपमा नहीं, बल्कि हकीकत बन सकती है।
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