मोबाइल गेम ने निगले परंपरागत खेल, कैसे होगा बच्चों का मानसिक विकास
नई दिल्लीः कुछ ऐसे खेल हैं जो क्रिकेट और मोबाइल गेम की दुनिया के सामने विलुप्त होते जा रहे हैं। गिल्ली-डंडा, चोर-सिपाही, लुक्का-छिपी, ऊंची कूद, लंबी कूद, खो-खो और लंगड़ी जैसे कई खेल विलुप्त होते जा रहे है। इसका कारण ये है कि बच्चे जिस उम्र में इस खेल को खेलते थे, उस उम्र में मोबाइल गेम में व्यस्त हैं।
आधुनिक समाज के बच्चे पारंपरिक खेलों से दूर होते जा रहे है। मोबाइल गेम के कारण बच्चे खेल का नाम भी भूलते जा रहे हैं। एक समय था जब बच्चे पारंपरिक खेलों में व्यस्त रहते थे लेकिन मोबाइल गेम आने के कारण बच्चे धीरे-धीरे इन खेलों से दूर होते गए।
कुछ पारंपरिक खेल जो विलुप्त होते जा रहे है
पिट्ठू-ग्राम
चप्पी-चप्पी
कंचा
टायर की गाड़ी
कबड्डी
लुक्का-छिपी
लंगड़ी
इन खेलों में बच्चे पहले खोए रहते थे और खेल में भाग दौड़ के कारण इनका मानसिक और शारीरिक विकास भी होता था। हालांकि इन खेलों से बच्चे काफी दूर होते जा रहे हैं।
घोघोरानी खेल
घोघोरानी, घोघोरानी…केतना पानी? घुटना भर पानी…कमर भर पानी…गला भर पानी…! फिर अंत में घोघोरानी डूब जाती थी। बच्चों के इस खेल में पानी धीरे-धीरे घटता था और घोघोरानी फिर से जी उठती थी। नदियों की गोद में बसे सीमांचल के इलाके में यह कभी बच्चों का बहुत ही लोकप्रिय खेल था लेकिन अब ये खेल दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। मोबाइल गेम की बाढ़ में घोघोरानी खेल लगभग विलुप्त होता जा रहा है। पहले बच्चे टोली बनाकर ये सब खेल खेला करते थे लेकिन अब कोई टोली नहीं दिखाई देती है।
गांव अब वीरान पड़े रहते हैं। बुजुर्गों की आंखें बच्चों की टोली देखने के लिए तरसती रहती है, बच्चे दिखाई नहीं देते हैं। यानि मोबाइल गेम के आगे पारंपरिक खेल विलुप्त हो गए। वहीं बच्चों की जिंदगी चारदीवारी में कैद हो गई। हालात ये है की बच्चे एकांतवासी बन रहे हैं।