Rehabilitation Centers: हर जिले में गठित होंगी नशा मुक्ति केंद्रों की निगरानी टीमें
उत्तराखंड सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2017 के तहत सभी जिलों में नशा मुक्ति केंद्रों की निगरानी के लिए निरीक्षण टीमें गठित करने का निर्णय लिया है। अवैध व बिना पंजीकरण के चल रहे केंद्रों पर आर्थिक दंड और तत्काल बंदी की कार्रवाई होगी। सरकार ने जन जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए व्यापक कार्य योजना भी पेश की है।
Rehabilitation Centers: उत्तराखंड सरकार ने राज्य में संचालित नशा मुक्ति केंद्रों की निगरानी और सुधार के लिए एक अहम फैसला लिया है। अब मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2017 के तहत प्रदेश के हर जिले में जिला स्तरीय निरीक्षण टीमें बनाई जाएंगी। ये टीमें नियमित रूप से नशा मुक्ति केंद्रों का दौरा करेंगी और उनकी गतिविधियों की गहनता से जांच करेंगी।
बिना पंजीकरण चलने वाले केंद्रों पर होगी सख्त कार्रवाई
इन निरीक्षण टीमों की ओर से उन केंद्रों को प्राथमिकता से चिन्हित किया जाएगा जो बिना रजिस्ट्रेशन के संचालित हो रहे हैं या तय मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं। ऐसे केंद्रों के खिलाफ आर्थिक दंड लगाया जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें तत्काल बंद भी किया जाएगा। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि अवैध और लापरवाही से चलने वाले केंद्रों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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स्वास्थ्य सचिव ने की बैठक की अध्यक्षता
शुक्रवार को सचिवालय में आयोजित राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की बैठक की अध्यक्षता स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने की। बैठक में स्वास्थ्य विभाग, सामाजिक कल्याण विभाग, पुलिस प्रशासन और मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अधिकारी उपस्थित रहे। इस दौरान नशा मुक्ति केंद्रों की वर्तमान स्थिति, पंजीकरण प्रक्रिया, सेवा गुणवत्ता और निरीक्षण तंत्र की समीक्षा की गई।
मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सख्त अभियान
बैठक में डॉ. आर. राजेश कुमार ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार प्रदेश को नशे की प्रवृत्तियों से मुक्त करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सरकार का उद्देश्य न केवल अवैध नशा मुक्ति केंद्रों को बंद करना है, बल्कि जनभागीदारी और पेशेवर सेवाओं के माध्यम से प्रभावी पुनर्वास सुनिश्चित करना भी है।
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प्रशासन की संयुक्त टीमें करेंगी निगरानी
नशा मुक्ति केंद्रों की निगरानी के लिए जो टीमें गठित की जाएंगी, उनमें जिलाधिकारी कार्यालय, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। ये टीमें केंद्रों की पंजीकरण स्थिति, स्टाफ की योग्यता, पुनर्वास प्रक्रियाओं और सुविधा स्तर की गहनता से जांच करेंगी।
जन जागरूकता को बताया सबसे प्रभावी उपाय
स्वास्थ्य सचिव ने यह भी कहा कि नशा मुक्ति के लिए जन जागरूकता सबसे सशक्त उपाय है। उन्होंने सभी जिलों को निर्देश दिए कि गांव से लेकर शहर तक व्यापक जनजागरूकता अभियान चलाए जाएं। इन अभियानों के माध्यम से युवाओं, अभिभावकों और समाज के सभी वर्गों को नशे के दुष्प्रभावों से अवगत कराया जाएगा।
राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण ने दी गतिविधियों की जानकारी
बैठक में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से वर्तमान में चल रही गतिविधियों और उपलब्धियों की जानकारी दी गई। बताया गया कि अब तक कितने नशा मुक्ति केंद्र पंजीकृत किए गए हैं, कितनों का निरीक्षण हो चुका है और किन-किन संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
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आगामी कार्य योजना पर भी हुई चर्चा
बैठक में एक विस्तृत कार्य योजना भी प्रस्तुत की गई जिसमें नशा मुक्ति केंद्रों की सेवा गुणवत्ता सुधारने, प्रशिक्षित स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित करने, परामर्श सेवाओं को मजबूत करने और टेक्नोलॉजी के माध्यम से निगरानी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने पर जोर दिया गया।
सरकार की इस नई पहल से न केवल नशे की समस्या पर अंकुश लगेगा, बल्कि पूरे राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा। यह कदम मानसिक रोगियों और नशा पीड़ितों दोनों के लिए राहतदायक साबित हो सकता है।
समाज की नशे के खिलाफ जंग
उत्तराखंड सरकार का यह अभियान केवल प्रशासनिक कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समाज और जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित की जा रही है। सरकार का मानना है कि जब तक समाज जागरूक नहीं होगा, तब तक नशा जैसी सामाजिक बुराइयों को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता।
इस निर्णय से स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार नशा मुक्ति को एक सामाजिक और स्वास्थ्य चुनौती के रूप में गंभीरता से ले रही है और आने वाले दिनों में इस दिशा में और सख्त कदम उठाए जाएंगे।
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