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Biodiversity Protection: उत्तराखंड के फाइकस पार्क से पर्यावरण संरक्षण को नई दिशा, 121 दुर्लभ प्रजातियों का हो रहा संरक्षण

ल्द्वानी के वन अनुसंधान केंद्र द्वारा लालकुआं में विकसित फाइकस पार्क में 121 दुर्लभ फाइकस प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है। यह पार्क पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अब इसे आम लोगों और पर्यटकों के लिए भी खोल दिया गया है, जिससे जागरूकता को बढ़ावा मिल रहा है।

Biodiversity Protection: पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के क्षेत्र में उत्तराखंड लगातार अग्रसर है। इसी कड़ी में हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केंद्र की अनूठी पहल ने देशभर में मिसाल पेश की है। लालकुआं क्षेत्र में विकसित किया गया फाइकस पार्क अब दुर्लभ और विलुप्तप्राय पौधों के संरक्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है। इस पार्क में फाइकस प्रजाति के 121 दुर्लभ पौधों को संरक्षित किया गया है, जो पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

फाइकस प्रजातियों का अनूठा संग्रह

वन अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित इस फाइकस पार्क में पूरे देश के विभिन्न राज्यों से लाई गई प्रजातियों को वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित किया गया है। इनमें केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, मेघालय और मिजोरम जैसे राज्यों की प्रजातियां शामिल हैं। बरगद, पीपल, पाकड़ और गूलर जैसी पारंपरिक भारतीय फाइकस प्रजातियों को यहां पर विशेष रूप से संजोया गया है।

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जैव विविधता के संरक्षण में अहम भूमिका

वन अनुसंधान शाखा द्वारा विकसित इस पांच हेक्टेयर में फैले फाइकस गार्डन का उद्देश्य सिर्फ पौधों का संरक्षण नहीं है, बल्कि यह पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में भी अहम भूमिका निभा रहा है। मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के अनुसार, “फाइकस प्रजाति की पेड़-पौधे न केवल वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, बल्कि ये वन्यजीवों के लिए भी भोजन का प्रमुख स्रोत होते हैं।” उनकी चौड़ी पत्तियां वायुमंडलीय प्रदूषण को कम करने में सहायक होती हैं।

धार्मिक और औषधीय महत्व भी शामिल

फाइकस पार्क में संरक्षित पेड़ों में कई ऐसे पौधे भी शामिल हैं, जिनका धार्मिक और औषधीय महत्व है। पीपल और बरगद जैसे पेड़ भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखते हैं और इनका उपयोग आयुर्वेदिक उपचारों में भी होता आया है। यह पार्क ना केवल वैज्ञानिकों और छात्रों के लिए अध्ययन का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण बन चुका है।

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पर्यटकों के लिए खुला, अध्ययन को बढ़ावा

वन अनुसंधान केंद्र ने अब इस फाइकस गार्डन को आम लोगों के लिए भी खोल दिया है। पर्यटक यहां आकर विभिन्न प्रकार के फाइकस पौधों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और पर्यावरणीय जागरूकता को अपने जीवन का हिस्सा बना सकते हैं। छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए यह स्थान एक जीवंत प्रयोगशाला के समान है, जहां वे प्रकृति के साथ जुड़ने और पारिस्थितिकी की गहराई को समझने का अवसर पा सकते हैं।

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स्थानीय पर्यावरण और भविष्य के लिए वरदान

इस गार्डन की स्थापना पर्यावरणीय असंतुलन को दूर करने की दिशा में एक ठोस कदम है। फाइकस प्रजातियों के संरक्षण से न केवल जैव विविधता को मजबूती मिल रही है, बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने में भी मदद मिल रही है। यह पहल उत्तराखंड को ‘हरित राज्य’ की दिशा में और आगे ले जा रही है।

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