Rare Plant Species: उत्तराखंड में संकटग्रस्त पौधों के लिए नई उम्मीद, वन विभाग ने शुरू की पुनःस्थापना योजना
उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय पौधों की 14 प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में पुनःस्थापित करने की पहल शुरू की है। वर्षों की मेहनत से इन प्रजातियों की प्रवर्धन तकनीक विकसित कर मानसून में रोपण कार्य आरंभ किया गया है। यह देश में पौधों के संरक्षण की दिशा में अपनी तरह की पहली महत्वाकांक्षी योजना मानी जा रही है।
Rare Plant Species: उत्तराखंड के जंगलों में अब संकटग्रस्त और विलुप्त होती वनस्पतियों को नया जीवन मिलने जा रहा है। वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने एक ऐतिहासिक और अभिनव पहल की शुरुआत करते हुए उन 14 दुर्लभ और संकटग्रस्त पौधों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में पुनःस्थापित करने की योजना शुरू की है, जो या तो IUCN की रेड लिस्ट में सूचीबद्ध हैं या राज्य जैव विविधता बोर्ड की संकटग्रस्त सूची में शामिल हैं।
पहली बार पौधों के लिए संरक्षण योजना
मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि यह योजना अपने आप में देश की पहली ऐसी पहल है जिसमें पौधों की लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए सुनियोजित पुनःस्थापना कार्यक्रम शुरू किया गया है। इससे पहले इस तरह की योजनाएं केवल वन्यजीवों के संरक्षण के लिए चलती रही हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि अब वन विभाग पौधों की जैव विविधता को लेकर भी गंभीरता से कदम उठा रहा है।
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अंधाधुंध दोहन बनी मुख्य वजह
संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इन प्रजातियों में से अधिकांश का औषधीय महत्व है, जिसकी वजह से इनका अनियंत्रित दोहन हुआ। स्थानीय लोग और कारोबारी इन्हें अत्यधिक मात्रा में जंगलों से निकालते रहे, जिसके कारण इनकी संख्या में तेज़ गिरावट आई। आज ये प्रजातियां या तो विलुप्त होने की कगार पर हैं या पहले से ही बहुत कम मात्रा में पाई जाती हैं।
प्रारंभिक चरण में 14 प्रजातियां
पहले चरण में जिन 14 प्रजातियों को शामिल किया गया है, उनमें त्रायमाण, रेड क्रेन ऑर्किड, सफेद हिमालयन लिली, गोल्डन हिमालयन स्पाइक, दून चीजवुड, कुमाऊं फैन पाम, जटामांसी, पटवा और हिमालयन अर्नेबिया प्रमुख हैं। इन सभी पौधों का पर्यावरणीय और औषधीय महत्व है। इनमें से कुछ प्रजातियां केवल हिमालयी क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं और कई अत्यधिक संवेदनशील हैं।
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वर्षों की मेहनत से तैयार हुई प्रवर्धन तकनीक
वन अनुसंधान शाखा ने वर्षों के अध्ययन और परीक्षणों के बाद इन पौधों की बीज, कंद और राइजोम के माध्यम से प्रवर्धन (Propagation) की तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के जरिए विभाग ने अपने हिमालयी केंद्रों में बड़ी मात्रा में इन पौधों की सफलतापूर्वक पौध तैयार की हैं।
इसके बाद वैज्ञानिकों ने इन पौधों के प्राकृतिक वास स्थलों की पहचान और मानचित्रण किया, ताकि इन्हें फिर से उसी पारिस्थितिक तंत्र में स्थापित किया जा सके जहां से वे विलुप्त होने लगे थे।
मानसून में होगा रोपण
विभाग की योजना के तहत इन पौधों का रोपण कार्य मानसून के दौरान शुरू किया गया है। जुलाई के अंत तक प्रथम चरण का पौधारोपण पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद अगले चरण की तैयारी होगी, जिसमें और अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों को शामिल किया जाएगा। यह योजना केवल पौध रोपण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके तहत स्थायी निगरानी और मूल्यांकन की व्यवस्था भी की गई है ताकि इन प्रजातियों की स्थिति और विकास का विश्लेषण किया जा सके।
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देश के लिए बन सकता है मॉडल
संजीव चतुर्वेदी का मानना है कि यह योजना यदि सफल होती है तो यह देश के अन्य राज्यों और हिमालयी क्षेत्रों के लिए एक मॉडल बन सकती है। यह दर्शाएगा कि किस तरह वन्यजीवों के साथ-साथ वनस्पति जैव विविधता की रक्षा भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
उत्तराखंड वन विभाग की यह पहल न केवल संकटग्रस्त पौधों को बचाने की दिशा में एक मजबूत कदम है, बल्कि यह राज्य की हरित धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास भी है। यदि यह योजना अपने उद्देश्यों में सफल रहती है, तो यह आने वाले समय में देश भर में जैव विविधता संरक्षण की दिशा में एक नई सोच को जन्म देगी।
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