News Watch India Mahakumbh 2025: दो अद्भुत जन्मों का सच संगम के तट पर जन्मे गंगा और कुंभ, महाकुंभ में बरसा देवताओं का आर्शीवाद हर युग में कुम्भ और गंगा।
मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा हमेशा महाकुंभ मेला और प्रयागराज के संगम से जुड़ा रहे. यही नाम उसे उस अद्भुत स्थल की याद दिलाता रहेगा, जहाँ वह पैदा हुआ था। कुम्भ का मेला हमेशा सेवा का संदेश देता है, और मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा जीवनभर इसी सेवा में जुटा रहे.
Kumbh Mela 2025 Live News Watch India: कुम्भ मेला, वह महाकुंभ जहां हर चार साल में लाखों लोग एक साथ एकत्र होते हैं, संगम के तट पर पवित्र डुबकी लगाते हैं और जीवन की नई राहों का खाका खींचते हैं. लेकिन इस बार, प्रयागराज के महाकुंभ मेला केंद्रीय चिकित्सालय में कुछ ऐसा हुआ जिसने सबका दिल छू लिया. यहां दो बच्चों ने जन्म लिया, जिनके नाम ही इस मेला की महिमा को चिरकाल तक जीवित रखने वाले हैं। एक का नाम कुम्भ और दूसरे का गंगा रखा गया. ये नाम न सिर्फ इनके जीवन की शुरुआत को परिभाषित करते हैं, बल्कि वे प्रयागराज के उस पवित्र संगम की गवाही भी देते हैं, जहां लाखों की भीड़ में ये नन्हे मेहमान अपनी शुरुआत करते हैं।
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एक महिला, जो माघ मेले के दौरान बटर सफाई कर्मचारी के रूप में काम कर रही थीं, अचानक प्रसव पीड़ा से जूझने लगी. हालत गंभीर थी, और अस्पताल में भर्ती कर उनका इलाज शुरू किया गया. समय पर इलाज और डॉक्टर्स की मदद से महिला ने एक बेटे को जन्म दिया.जिसके बाद माँ ने इस बच्चे का नाम कुम्भ रखा. माँ का कहना था, “मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा हमेशा महाकुंभ मेला और प्रयागराज के संगम से जुड़ा रहे. यही नाम उसे उस अद्भुत स्थल की याद दिलाता रहेगा, जहाँ वह पैदा हुआ था। कुम्भ का मेला हमेशा सेवा का संदेश देता है, और मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा जीवनभर इसी सेवा में जुटा रहे.
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वहीं दूसरी तरफ, गंगा के किनारे जन्मी एक नन्ही सी बच्ची ने भी महाकुंभ मेला की पवित्रता को खुद में समेट लिया. उस महिला ने भी अपनी बेटी का नाम गंगा रखा. मां ने बताया, “मेरी बेटी गंगा नदी के किनारे पैदा हुई है, जो न सिर्फ भारतीय संस्कृति की धरोहर है, बल्कि पवित्रता और जीवनदायिनी का प्रतीक भी है. गंगा के किनारे मेरी बेटी का जन्म एक आशीर्वाद की तरह है।” यह नाम उस नदी की महिमा को ही नहीं, बल्कि उस पुण्य के अवसर को भी सम्मानित करता है, जब लाखों श्रद्धालु गंगा के जल में डुबकी लगाते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाते हैं.यह दो नाम न केवल अपनी माताओं की इच्छाओं को पूरा करते हैं, बल्कि संगम नगरी प्रयागराज की महिमा और संस्कृति को भी जीवित रखते हैं.
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कुम्भ और गंगा…दोनों ही नाम ऐसे हैं जो जीवनभर अपने आप में एक कहानी को समेटे रखते हैं… एक बच्चा कुम्भ मेला और उसकी सेवा का प्रतीक बनेगा, जबकि दूसरी बच्ची गंगा नदी की पवित्रता और आस्था का प्रतीक बनेगी.इन बच्चों के जन्म से यह साफ हो जाता है कि सिर्फ धरती पर नहीं, बल्कि हर युग और हर दौर में कुम्भ और गंगा की महिमा बनी रहेगी. इन नामों के साथ यह बच्चे हमेशा उस पवित्रता, सेवा और ताजगी का प्रतीक बनेंगे, जो भारत की संस्कृति का हिस्सा हैं. संगम के तट पर जन्मी ये किवदंतियां आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनेंगी.
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