नई दिल्ली: हिंदू समुदाय में पितृ श्राद्ध को विशेषतः मान्यता दी जाती है। जिसके माध्यम से मनुष्य अपने पूर्वजों के कल्याण हेतु प्रार्थना करता है, उनकी शांति के लिए प्रयास करता है। यदि अपने वंशज से पितृ जी संतुष्ट हो जाएं तो उसको बदले में आयु, बल, सुख एवं धन प्रदान करते हैं। जिससे वो व्यक्ति अपने जीवन में सभी सुखों का भोग कर सौभाग्यवान बन जाता है।
मान्यताओं के अनुसार यदि पूर्वजों का श्राद्ध उनके वशंजों द्वारा विधिपूर्वक नहीं किया जाता है, तो उनकी आत्मा पाताल में सालों-साल यू-हीं भटकती रहती है। जिस कारण वो अपने वशंजों से रुष्ठ हो जाते हैं और उनके सफल कार्यों में भी विघ्न आने लगते हैं। इसलिए वंशज अपने पूर्वजों के कल्याण हेतु विधि व श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं। उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं जल भोजन आदि अर्पित करते हैं।
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हिंदू पंचाग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध का आरंभ होने वाला है, जो कि शनिवार, 10 सितंबर को पड़ रहा है। श्राद्ध पक्ष का समापन रविवार, 25 सितंबर को हो जाएगा। आमतौर पर श्राद्ध 15 दिनों तक चलते हैं, लेकिन इस बार ये 16 दिनों तक चलेंगे। ऐसा संयोग इससे पहले साल 2011 में बना था। हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। हालांकि, 17 सितंबर को कोई श्राद्ध कर्म नहीं किए जाएंगे।
कब होगा किसका श्राद्ध
10 सितंबर – प्रतिपदा का श्राद्ध- जिन बुजुर्गों की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो, उनका श्राद्ध अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ही किया जाता है।
11 सितंबर – द्वितीया का श्राद्ध- द्वितिया तिथि पर मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों का श्राद्ध इसी दिन किया जाता है।
12 सितंबर – तृतीया का श्राद्ध- जिन लोगों की मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई है, उसका श्राद्ध इस दिन किया जाएगा।
13 सितंबर – चतुर्थी का श्राद्ध- जिनका देहांत चतुर्थी तिथि को हुआ है, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाएगा।
14 सितंबर – पंचमी का श्राद्ध- अविवाहित या पंचमी तिथि पर मृत्यु वालों का श्राद्ध पंचमी तिथि को होता है. इसे कुंवारा पंचमी श्राद्ध भी कहते हैं।
15 सितंबर – षष्ठी का श्राद्ध- जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई है, उनका श्राद्ध षष्ठी तिथि को किया जाता है।
16 सितंबर – सप्तमी का श्राद्ध- सप्तमी तिथि को चल बसे लोगों का श्राद्ध सप्तमी तिथि पर होगा।
17 सितंबर – इस दिन कोई श्राद्ध नहीं है।
18 सितंबर – अष्टमी का श्राद्ध- अष्टमी तिथि पर मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों का श्राद्ध इस दिन किया जाएगा।
19 सितंबर – नवमी का श्राद्ध- सुहागिन महिलाओं, माताओं का श्राद्ध नवमी तिथि के दिन करना उत्तम माना जाता है. इसे मातृनवमी श्राद्ध भी कहते हैं।
20 सितंबर – दशमी का श्राद्ध- जिनका देहांत दशमी तिथि पर हुआ है, उनका श्राद्ध इस दिन होगा।
21 सितंबर – एकादशी का श्राद्ध- एकादशी पर मृत संन्यासियों का श्राद्ध किया जाता है।
22 सितंबर – द्वादशी का श्राद्ध- द्वादशी के दिन मृत्यु या अज्ञात तिथि वाले मृत संन्यासियों का श्राद्ध इस दिन किया जा सकता है।
23 सितंबर – त्रयोदशी का श्राद्ध- त्रयोदशी या अमावस्या के दिन केवल मृत बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
24 सितंबर – चतुर्दशी का श्राद्ध- जिन लोगों की मृत्यु किसी दुर्घटना, बीमारी या खुदकुशी के कारण होती है, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर किया जाता है। फिर चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि पर हुई हो।
25 सितंबर – अमावस्या का श्राद्ध- सर्वपिृत श्राद्ध ।