नई दिल्ली: पीएम मोदी ने आज अपनी मां के 100 वें साल में प्रवेश करने पर एक भावनात्मक ब्लॉग लिखा। उन्होंने अपनी मां के साथ बिताए हुए कुछ पलों को याद किया। पीएम मोदी खुद के बड़ा करने के दौरान मां द्वारा किए गए बलिदानों को याद किया और अपनी मां की विभिन्न खूबियों का उल्लेख किया, जिससे उनके दिमाग, व्यक्तित्व और आत्म विश्वास को आकार मिला।
पीएम मोदी ने लिखा, “आज, मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी और सौभाग्य की अनुभूति हो रही है कि मेरी मां श्रीमती हीराबा मोदी अपने 100वें साल में प्रवेश कर रही हैं। यह उनका जन्म शताब्दी वर्ष होने जा रहा है।”बचपन में अपनी मां के सामने आई मुश्किलों को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “मेरी मां जितनी सरल हैं, उतनी ही असाधारण हैं। बिल्कुल दूसरी सभी माताओं की तरह।” छोटी सी उम्र में ही, पीएम मोदी की मां ने अपनी मां को खो दिया था। उन्होंने कहा, “उन्हें मेरी नानी का चेहरा या उनकी गोद तक याद नहीं है। उन्होंने अपना पूरा बचपन अपनी मां के बिना बिताया है।”
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उन्होंने वडनगर में मिट्टी की दीवारों और मिट्टी की खपरैल की छत से बने अपने छोटे से घर को याद किया, जहां वह अपने माता-पिता और भाई-बहिन के साथ रहा करते थे। उन्होंने रोजमर्रा में आने वाली मुश्किलों का उल्लेख किया, जिनका उनकी मां ने सामना किया और उन पर विजय प्राप्त की। मोदी ने बताया कि कैसे उनकी मां न सिर्फ घर के सभी काम किया करती थीं बल्कि कम घरेलू आय की भरपाई के लिए भी काम करती थीं। वह कुछ घरों में बर्तन माजा करती थीं और घरेलू खर्च में सहायता के उद्देश्य से चरखा चलाने के लिए समय निकालती थीं।
पीएम मोदी ने याद करते हुए कहा, “बारिश के दौरान, हमारी छत से पानी टपकता था और घर में पानी भर जाता था। मां बारिश के पानी को जमा करने के लिए बाल्टियां और बर्तन रखती थीं। ऐसे विपरीत हालात में भी मां लचीलेपन की प्रतिमूर्ति थीं।” पीएम मोदी ने कहा, स्वच्छता एक ऐसा कार्य था, जिसके लिए उनकी मां हमेशा ही खासी सतर्क रहीं। उन्होंने अपनी मां के स्वच्छता बनाए रखने से जुड़े कई उदाहरण दिए।
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पीएम ने कहा कि उनकी मां साफ-सफाई में लगे लोगों के प्रति गहरा सम्मान रखती थीं। जब भी कोई उनके घर से लगी नाली की सफाई करने आता था, तो उनकी मां उसे चाय पिलाए बिना नहीं जाने देती थीं। उनकी मां दूसरे लोगों की खुशियों में अपनी खुशी तलाश लेती थीं और उनका दिल बहुत बड़ा था। उन्होंने याद करते हुए बताया, “मेरे पिता के एक दोस्त पास के गांव में रहा करते थे। उनकी असमय मृत्यु के बाद, मेरे पिता अपने दोस्त के बेटे अब्बास को हमारे घर पर ले आए। वह हमारे साथ रहा और अपनी पढ़ाई पूरी की। मां को हम भाई-बहिनों की तरह अब्बास से पर्याप्त स्नेह था और उसकी देखभाल करती थीं। हर साल ईद पर वह उसके पसंदीदा व्यंजन बनाती थीं। त्योहारों पर, पड़ोस के बच्चों का घर पर आना और मां की खास तैयारियों का लुत्फ उठाना आम बात थी।”