Chandrayaan Mission: chandrayaan -3 मिशन की कामयाबी के बाद वैज्ञानिकों ने एक अनोखी चीज इसकी मिट्टी से खोजी है। चंद्रयान (chandrayaan) ने चांद की मिट्टी में विभिन्न धातुओं और तत्वों की खोज की है। इसमें वैज्ञानिकों को सबसे महत्वपूर्ण चीज सल्फर मिला (Chandrayaan Mission) है। सल्फर की जो मात्रा मिली है उसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हैरान किया है।
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भारत का (chandrayaan-3) 3 मिशन कामयाबी के साथ चंद्रमा पर उतर चुका है। भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले अमेरिका, चीन और सोवियत यूनियन चांद पर पहुंचे थे। लेकिन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत पहला देश है। 14 पृथ्वी दिनों में ही इसने एक महत्वूर्ण मिशन को पूरा किया है। (chandrayaan-3) ने वैज्ञानिकों को बहुमूल्य डेटा और चंद्रमा का पता लगाने के लिए और प्रेरणा दी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने इनके नतीजों को दुनिया से साझा (Chandrayaan Mission) किया है।
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chandrayaan 3 के प्रज्ञान रोवर ने चांद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की हैं। chandrayaan के प्रज्ञान रोवर के डेटा से पता चला है कि इसकी मिट्टी में लोहा, टाइटेनियम, एल्युमिनियम और कैल्शियम (calcium) हैं। इसके अलावा वैज्ञानिकों को हैरान करने के लिए इसमें सल्फर भी मिला है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में भौतिकी, कला और विज्ञान के रिसर्च प्रोफेसर जेफरी गिलिस डेविस ने एक लेख में कहा, ‘हमारे जैसे ग्रह वैज्ञानिकों को पता है कि चंद्रमा की मिट्टी मंी सल्फर मौजूद है। लेकिन यह बहुत कम सांद्रता (Chandrayaan Mission) में है। लेकिन चंद्रयान (chandrayaan) के डेटा के मुताबिक यह ज्यादा हो सकता है।’
मिट्टी में खोजा गया सल्फर
प्रज्ञान के पास दो उपकरण हैं। एक अल्फा कण एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर और एक लेजर वाला ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर (breakdown spectrometer). ये मिट्टी की मौलिक संरचना का विश्लेषण करते हैं। इन दोनों ने लैंडिग स्थल के पास की मिट्टी में सल्फर को खोजा है। चंद्रमा के ध्रुवों के पास की मिट्टी में मौजूद सल्फर चांद पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को दूर रहने में मदद कर सकता है। यह नया डेटा विज्ञान का एक उदाहरण बन जाएगा। चांद पर मुख्य तौर पर 2 तरह की चट्टानें हैं। एक गहरी ज्वालामुखी चट्टान और दूसरी चमकीली भूमि। इन्हीं दोनों के कारण हमें चांद पर एक चेहरे जैसी छवि दिखाई (Chandrayaan Mission)देती है।
गहराई में होता है ज्यादा सल्फर
पृथ्वी पर प्रयोगशालोओं में चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी की संरचना को मापने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि गहरे ज्वालामुखीय मौदानों की सामग्रियों में चमकीले उच्चभूमि वाले पदार्थों की तुलना में ज्यादा सल्फर होता है। सल्फर आम तौर पर ज्वालामुखी घटनाओं के कारण (Chandrayaan Mission) मिलता है। चंद्रमा की गहराई में मौजूद चट्टानों में सल्फर होता है और जब ये चट्टानें पिघलती हैं तो सल्फर मैग्मा का हिस्सा बन जाता है। जब पिघली हुई चट्टान सतह के करीब आती है तो ज्यादातर सल्फर गैस बनकर जल वाष्प और कार्बन डाईऑक्साइड ( carbon dioxide) के साथ निकलता है।
क्या हो सकता है इस्तेमाल
प्रोफेसर जेफरी ने इसी लेख में लिखा कि लंबे समय से स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष में अपना बेस बनाना (Chandrayaan Mission) चाहती हैं। सल्फर का इस्तेमाल एक संसाधन के तौर पर सौर सेल और बैटरी बनाने में किया जा सकता है। सल्फर आधारित उर्वरक और निर्माण के लिए सल्फर आधारित कंक्रीट बनाते हैं। सल्फर आधारित कंक्रीट के कई फायदे हैं। जहां नॉर्मल कंक्रीट ईंट (normal concrete brick) को सूखने में हफ्ते लगते हैं तो सल्फर वाली कंक्रीट कुछ ही घंटे में मजबूत हो जाती है। चांद पर इससे बेस तो बना ही सकते हैं। साथ ही यह पानी बचाएगा, क्योंकि सल्फर बेस कंक्रीट (sulfur base concrete) में पानी का इस्तेमाल नहीं (Chandrayaan Mission) होता।