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बिहार में दिखने लगे कास्ट सर्वे के साइड इफेक्ट !

Bihar Cast Census: बिहार में कास्ट सर्वे के साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। एक तरफ जातीय गणना के आंकड़े भले ही लुभावने लग रहे हो लेकिन जिस तरह का माहौल है उससे लगता है कि आने वाले समय में इसे व्यापक साइड इफेक्ट भी होंगे।समाज में कई तरह के बदलाव भी होंगे और राजनीति भी इससे प्रभावित होगी।
जबसे बिहार में कास्ट सर्वे के आंकड़े सामने आए हैं जातियों के बीच विभाजन की रेखा और भी मोटी होती दिख रही है। जो जातियां कल तक हाशिए पर थी अब अपने हक की लड़ाई के लिए सिर उठते दिख रही है। जातियों की लामबंदी हो रही है।
जातियों का जुटान हो रहा है और सबसे बड़ी बात कि जातियों का सम्मेलन भी जोन लगा है ।ऐसे में बड़ा सवाल यही कि क्या बिहार फिर से जातियों की राजनीति का केंद्र बनेगा।

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जब से नीतीश सरकार ने बिहार में तमाम विरोध के बाद कास्ट सर्वे को अंजाम दिया और फिर उसके आंकड़े को सार्वजनिक किया उसके बाद देश में भले कास्ट सेंसस की मांग बढ़बर्शी हो लेकिन बिहार में इसके कुछ अलग नतीजे भी दिख रहे हैं। पहले इसी बिहार में जाति छोड़ जमात की बात की जा रही थी। लेकिन अब फिर से जाति कुलांचे मार रही है ।है कोई जाति का झंडा बुलंद कर रहा है। जातियों के सम्मेलन होने लगे हैं। कही भूमिहार सम्मेलन की तैयारी हैं। कही राजपूत सम्मेलन की तैयारी चल रही है। कोई भीम सम्मेलन की तैयारी में मग्न है तो कोई ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए बिहार की राजनीति को प्रभावित करने में जुटा है।

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बिहार में जातीय सम्मेलन लगभग खत्म हो चुका था ।90 के दशक में जातियों का खूब उभर हुआ और विभिन्न जातियों के नेताओं ने अपनी छवि भी खूब बनाई। राजनीति को भी साधा और राजनीति को अंजाम भी दिया ।जातियों के नाम पर धनधारी लोगों की राजनीति में इंट्री हुई। बहुत से लोग राजदार हुए ।उस समय के लालू यादव और ईडी नीतीश कुमार की राजनीतिको देखें तो बहुत कुछ देखने को मिल सकता है। लेकिन यह भी सच है कि धीरे धीरे जातियों की राजनीति समाप्त दिखने लगी ।लगा अब जाति के ऊपर विकास और धर्म हावी हो रहा है ।बीजेपी की सत्ता में आने के बाद धर्म और हिंदुत्व का अलग खेल भी देखा। बीजेपी ने खूब इसका लाभ उठाया। धर्म और हिंदुत्व के मिलन से बीजेपी सत्ता तक पहुंची और मजबूती ऐसी कि कोई उसे चुनौती ही न दे सके।

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लेकिन बदलाव तो प्रकृति के नियम है। एक ही चीज से मौजूदा इंसान ऊब सा जाता है। इंसानों की फितरत नयापन में होती है।अब फिर से लोग नयापन ढूंढ रहे हैं। नयापन यही है कमंडल की जगह फिर से मंडल की दुदिंभी बज रही है। यही दुदुम्भी आगामी चुनाव तक बजेगी ।दुदुंभी की आवाज बीजेपी के लिए मुश्किल भरे हैं।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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