CASHLESS MEDICAL TREATMENT: सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश: 14 मार्च तक मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार की योजना तैयार करें
CASHLESS MEDICAL TREATMENT:सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह 'गोल्डन ऑवर' अवधि में मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार की योजना तैयार करे। कोर्ट ने कहा कि यह योजना मोटर वाहन दुर्घटना के बाद घायल व्यक्तियों को त्वरित चिकित्सा उपचार प्रदान करने के लिए आवश्यक है, क्योंकि 'गोल्डन ऑवर' वह समय होता है जब चिकित्सा हस्तक्षेप से घायल व्यक्ति की जान बचाने की अधिक संभावना होती है। अदालत ने केंद्र को इस योजना को 14 मार्च 2025 तक तैयार करने का आदेश दिया है।
CASHLESS MEDICAL TREATMENT: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए ‘गोल्डन ऑवर’ अवधि में कैशलेस चिकित्सा उपचार की योजना 14 मार्च 2025 तक तैयार करे। अदालत ने यह फैसला मोटर वाहन दुर्घटनाओं के पीड़ितों को त्वरित चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया है।
गोल्डन ऑवर: दुर्घटना के बाद का सबसे महत्वपूर्ण समय
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मोटर वाहन दुर्घटना के पीड़ितों को ‘गोल्डन ऑवर’ में त्वरित चिकित्सा देखभाल मिलनी चाहिए, क्योंकि यह पीड़ित के जीवन को बचाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण समय होता है। ‘गोल्डन ऑवर’ वह समय है जो दुर्घटना के बाद घायल व्यक्ति को इलाज देने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, जिसमें समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप से मृत्यु को रोका जा सकता है।
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मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162 के तहत योजना का प्रावधान
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162 और धारा 164-बी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह योजना पहले ही कानून में शामिल की जा चुकी थी, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया गया। इन धाराओं के तहत केंद्र सरकार को यह योजना तैयार करनी थी, जो 1 अप्रैल 2022 से लागू होने वाली थी।
अदालत ने केंद्र सरकार को इस योजना के लागू होने तक की समयसीमा 14 मार्च 2025 निर्धारित की है और कहा कि इसे किसी भी स्थिति में और अधिक समय नहीं दिया जाएगा।
सात दिन के कवरेज और 1.5 लाख रुपये की अधिकतम सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी भी दी। योजना के तहत, सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक का उपचार खर्च दिया जाएगा, और यह कवरेज केवल सात दिनों के लिए होगा। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने इस सीमा पर आपत्ति जताई और कहा कि यह योजना पूरी देखभाल की आवश्यकता को पूरा नहीं करती।
दावों के लिए दस्तावेजों की जांच
मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए इस योजना में सामान्य बीमा कंपनियों को भी शामिल किया गया है। जीआईसी (जनरल इंश्योरेंस काउंसिल) को दावों की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और जरूरी दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया गया है। इन दस्तावेजों में एफआईआर की कॉपी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र, और पीड़ित और दावेदार के आईडी प्रमाण जैसे दस्तावेज़ शामिल हैं।
फर्जी दस्तावेजों की कमी और 31 जुलाई 2024 तक लंबित दावे
सुप्रीम कोर्ट ने जीआईसी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी प्रकार की दस्तावेज़ी कमी को जल्द से जल्द दूर किया जाए, ताकि दावों की कार्रवाई की जा सके। अदालत ने कहा कि 31 जुलाई 2024 तक 921 दावे लंबित थे, जिनमें दस्तावेजों में कमी थी।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश: त्वरित कार्यान्वयन की आवश्यकता
अदालत ने इस योजना के कार्यान्वयन के बारे में संबंधित अधिकारियों से हलफनामे की मांग की और आदेश दिया कि 21 मार्च 2025 तक इस योजना की एक प्रति रिकॉर्ड में रखी जाए। साथ ही, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से इसकी कार्यान्वयन प्रक्रिया के बारे में हलफनामे की आवश्यकता होगी।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस योजना का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की रक्षा करना है। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार का यह वैधानिक दायित्व है कि वह मोटर दुर्घटना पीड़ितों को त्वरित चिकित्सा उपचार की सुविधा प्रदान करे और यह सुनिश्चित करे कि योजना को पूरी तरह से लागू किया जाए।
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अदालत की अगली सुनवाई 24 मार्च 2025 को
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 24 मार्च 2025 की तारीख तय की है। अदालत ने केंद्र सरकार और जीआईसी को इस समयसीमा के भीतर आदेशों के अनुपालन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
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