Harish Rawat Protest: पंचायत चुनाव में प्रतीक आवंटन टला, हरदा का मौन व्रत, चुनाव प्रक्रिया पर निष्पक्षता को लेकर उठाए सवाल
उत्तराखंड पंचायत चुनाव में दोहरी वोटर लिस्ट को लेकर हाईकोर्ट के आदेश के बाद चुनाव प्रतीक आवंटन प्रक्रिया टाल दी गई है। इस निर्णय के विरोध में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने देहरादून में मौन व्रत रख निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। उन्होंने सत्ता पक्ष पर चयनात्मक फैसले लेने और लोकतंत्र के उल्लंघन का आरोप लगाया।
Harish Rawat Protest: उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक बार फिर सियासी माहौल गरमा गया है। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव प्रतीक (सिंबल) आवंटन की प्रक्रिया को फिलहाल टाल दिया गया है। यह निर्णय उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें दोहरी मतदाता सूची वाले लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन व्यक्तियों के नाम शहरी निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की वोटर लिस्ट में शामिल हैं, वे चुनावी प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते।
इस फैसले के बाद कई उम्मीदवारों की उम्मीदों को झटका लगा है। वहीं दूसरी ओर, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने इस पूरे घटनाक्रम पर गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने रविवार को देहरादून स्थित अपने आवास पर एक घंटे का मौन व्रत रखकर निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए।
आयोग की भूमिका पर उठे सवाल
हरीश रावत ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा कि “इस राज्य में चुनाव आयोगों को क्या हो गया है?” उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि आयोगों ने अपनी संवैधानिक स्वायत्तता सत्ता के चरणों में समर्पित कर दी है।
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उन्होंने कहा कि पहले नगर निकाय चुनावों में और अब पंचायत चुनावों में आयोग ने “आत्मसमर्पण की मुद्रा” अख्तियार कर ली है। उन्होंने कहा कि राज्य का पंचायती राज अधिनियम स्पष्ट तौर पर कहता है कि दोहरी मतदाता सूची में नाम रखने वाले लोग चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं और उनका नामांकन खारिज होना चाहिए।
चयनात्मक तरीके से हो रहा फैसला?
हरीश रावत ने टिहरी समेत अन्य जिलों में चयनात्मक न्याय किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि सत्तारूढ़ दल के समर्थन वाले कई उम्मीदवारों को, जिनका नाम दोहरी सूची में है, पात्र घोषित कर दिया गया, जबकि कांग्रेस समर्थक उम्मीदवारों को बिना किसी वैध कारण के चुनाव लड़ने से वंचित किया जा रहा है।
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पूर्व मुख्यमंत्री ने उदाहरण के तौर पर जिला पंचायत की पूर्व अध्यक्ष सोना सजवाण का नाम लिया और कहा कि इस तरह के मामलों में प्रशासन सत्ता के दबाव में काम कर रहा है। उन्होंने इसे लोकतंत्र और चुनावी निष्पक्षता के लिए खतरनाक बताया।
पंचायती राज एक्ट की अवहेलना
हरीश रावत ने कहा कि वर्तमान में जिस पंचायती राज अधिनियम के तहत चुनाव हो रहे हैं, वह वर्ष 2016 में पारित किया गया था और अब उसी एक्ट की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन सिद्धांतों के आधार पर पंचायती राज व्यवस्था का निर्माण हुआ, उन्हीं को अब दरकिनार किया जा रहा है।
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उपवास की चेतावनी
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि राज्य निर्वाचन आयोग अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता को इस प्रकार छोड़ता रहा, तो उन्हें मजबूर होकर आयोग के समक्ष उपवास पर बैठना पड़ सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिशें यदि नहीं रोकी गईं, तो जन आक्रोश भी खड़ा हो सकता है।
राजनीतिक माहौल गरमाया
पंचायत चुनावों को लेकर जहां सत्तारूढ़ दल प्रशासनिक तैयारियों में जुटा है, वहीं विपक्षी कांग्रेस लगातार आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रही है। हरीश रावत के इस विरोध और मौन व्रत ने राज्य की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता और संवैधानिक मानकों पर सवाल खड़े होना एक गंभीर मसला है, जिससे आयोग को जल्द निपटना होगा।
उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर शुरू हुई प्रक्रिया पर अब न्यायिक और राजनीतिक दबाव साफ दिखाई दे रहा है। चुनाव आयोग पर निष्पक्षता बनाए रखने की चुनौती पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। वहीं, विपक्ष का यह आंदोलन आगामी दिनों में चुनावी राजनीति को और अधिक प्रभावित कर सकता है।
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