Uttarakhand State Budget: उत्तराखंड में बढ़ती फ्लोटिंग आबादी बनी बड़ी चुनौती, सीएम धामी बोले – हर साल 8 करोड़ लोगों की करनी पड़ती है व्यवस्था
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में हर साल आने वाली 8 करोड़ की फ्लोटिंग आबादी का मुद्दा उठाया है, जबकि स्थायी जनसंख्या केवल 1.19 करोड़ है। उन्होंने केंद्र से मिलने वाली वित्तीय सहायता में इस बात को ध्यान में रखने की मांग की है। आर्थिक विशेषज्ञों ने भी मुख्यमंत्री की इस मांग को जायज बताया है, क्योंकि इससे राज्य की बुनियादी सेवाओं पर भारी दबाव पड़ता है।
Uttarakhand State Budget: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में हर साल आने वाले करोड़ों लोगों की व्यवस्था को लेकर चिंता जताते हुए कहा है कि उत्तराखंड को केंद्र से मिलने वाली आर्थिक सहायता स्थायी जनसंख्या के आधार पर तय की जाती है, जबकि यहां वास्तविक दबाव फ्लोटिंग आबादी का होता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनसंख्या 1.19 करोड़ है, लेकिन हर साल लगभग 8 करोड़ लोग तीर्थाटन, पर्यटन और रोजगार जैसे कारणों से उत्तराखंड आते हैं, जिनके लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य की जिम्मेदारी होती है।
वित्तीय सहायता के मौजूदा मानकों पर सवाल
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि केवल 2011 की जनगणना के आधार पर राज्यों को फंड दिया जाएगा, तो उत्तराखंड जैसे राज्यों के साथ न्याय नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यहां की भौगोलिक परिस्थितियां, पर्यावरणीय संवेदनशीलता और सीमित संसाधनों के चलते राज्य को ज्यादा समर्थन की आवश्यकता है। उन्होंने यह बात केंद्र सरकार के 11 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में रखी।
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वित्त आयोग के सामने रखी मांग
सीएम धामी ने बताया कि हाल ही में राज्य में दौरे पर आए 16वें वित्त आयोग के अधिकारियों के समक्ष उन्होंने इस मुद्दे को मजबूती से रखा। उन्होंने मांग की कि राज्य को आवंटित फंड का निर्धारण केवल स्थायी जनसंख्या नहीं, बल्कि हर साल आने वाली अस्थायी या फ्लोटिंग आबादी को ध्यान में रखते हुए किया जाए। उन्होंने यह मुद्दा नीति आयोग और भारत सरकार के समक्ष भी उठाया है।
फ्लोटिंग पॉपुलेशन से बढ़ता प्रबंधन बोझ
हर साल लाखों लोग उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों, पर्यटन स्थलों और ट्रेकिंग रूट्स पर पहुंचते हैं। 2023 की चारधाम यात्रा में ही 50 लाख से अधिक श्रद्धालु आए थे। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए पानी, बिजली, स्वच्छता, ट्रैफिक और सुरक्षा जैसे प्रबंध राज्य सरकार को अपने सीमित संसाधनों से करने पड़ते हैं। लेकिन फंड आवंटन स्थायी जनसंख्या के आधार पर होने के कारण राज्य को नुकसान होता है।
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आर्थिक विशेषज्ञों की राय
इस मुद्दे पर डीएवी पीजी कॉलेज, देहरादून के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर वीबी चौरसिया ने भी सहमति जताई। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वित्त आयोग फंड आवंटन के लिए पांच प्रमुख मानकों पर विचार करता है – प्रति व्यक्ति आय, जनसंख्या, भौगोलिक स्थिति, पारिस्थितिक योगदान और कर संग्रहण क्षमता। उत्तराखंड की भौगोलिक चुनौतियों और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को देखते हुए अतिरिक्त समर्थन आवश्यक है।
वित्त आयोग के मानकों में संशोधन की जरूरत
प्रो. चौरसिया ने बताया कि पहले के वित्त आयोग 1971 की जनसंख्या को आधार मानते थे, लेकिन अब 2011 की जनसंख्या का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि फ्लोटिंग पॉपुलेशन जैसे अहम पहलू को अब तक नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि यदि आयोग इस पैरामीटर को भी शामिल करे तो उत्तराखंड जैसे राज्यों को वास्तविक जरूरत के अनुसार मदद मिल सकेगी।
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भविष्य की नीति में हो सकता है बदलाव
प्रोफेसर चौरसिया ने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री द्वारा उठाया गया यह मुद्दा आगामी वित्त आयोग की नीति में बदलाव ला सकता है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है जब वित्त आयोग के अध्यक्ष ने उत्तराखंड का दौरा कर हालात को समझने की पहल की है। यदि फ्लोटिंग आबादी को लेकर नीति में कोई बदलाव होता है, तो इससे न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के अन्य पर्यटन और तीर्थ राज्यों को भी फायदा मिलेगा।
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