Eid Namaz Ban: मेरठ में ईद की नमाज पर रोक और पासपोर्ट जब्ती का आदेश अवैध, कैराना सांसद इकरा हसन
कैराना की सांसद इकरा हसन ने मेरठ प्रशासन के उस आदेश को अवैध बताया है, जिसमें सड़क पर ईद की नमाज अदा करने पर पासपोर्ट जब्त करने की चेतावनी दी गई थी। उन्होंने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया और प्रशासन से आदेश वापस लेने की मांग की। इस मुद्दे पर विवाद बढ़ता जा रहा है।
Eid Namaz Ban: उत्तर प्रदेश के मेरठ प्रशासन द्वारा ईद की नमाज के दौरान सड़कों पर नमाज अदा करने पर रोक लगाने और ऐसा करने वालों का पासपोर्ट जब्त करने के आदेश को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कैराना की सांसद इकरा हसन ने इसे असंवैधानिक और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है।
आदेश को असंवैधानिक बताया
मेरठ प्रशासन के इस आदेश के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। सांसद इकरा हसन ने प्रशासन के इस फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह भारत के संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को इस आदेश को तुरंत वापस लेना चाहिए, क्योंकि यह धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देता है।
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हसन के मुताबिक, देश का संविधान हर नागरिक को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा-पाठ और प्रार्थना करने का अधिकार देता है। ऐसे में प्रशासन किसी विशेष धर्म को निशाना बनाकर कोई आदेश जारी नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि यदि सड़क पर धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो यह नियम सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
क्या है प्रशासन का आदेश?
मेरठ जिला प्रशासन ने हाल ही में निर्देश जारी किया था कि सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर नमाज पढ़ने पर पूरी तरह से रोक रहेगी। आदेश में यह भी कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति सड़क पर नमाज अदा करता पाया गया, तो उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया जाएगा। प्रशासन का तर्क है कि यह फैसला कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए लिया गया है और इसका मकसद किसी धर्म विशेष को टारगेट करना नहीं है।
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हालांकि, इस आदेश के बाद मुस्लिम समुदाय और कई सामाजिक संगठनों में नाराजगी देखने को मिली है। लोगों का कहना है कि यदि प्रशासन कानून-व्यवस्था के नाम पर ऐसा कोई कदम उठा रहा है, तो यह सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
सांसद इकरा हसन का कड़ा विरोध
कैराना से सपा सांसद इकरा हसन ने इस आदेश के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यह फैसला सरकार की धार्मिक भेदभावपूर्ण नीति को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “यह आदेश न केवल असंवैधानिक है, बल्कि समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा देगा। किसी भी लोकतांत्रिक देश में इस तरह के फरमान को स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
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उन्होंने आगे कहा कि प्रशासन को चाहिए कि वह निष्पक्ष तरीके से कानून लागू करे और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा करे। हसन ने कहा कि वह इस मुद्दे को संसद में भी उठाएंगी और कानूनी कार्रवाई करने पर भी विचार कर रही हैं।
मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
मेरठ प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ विभिन्न मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने भी विरोध जताया है। उनका कहना है कि यदि प्रशासन वास्तव में कानून-व्यवस्था बनाए रखना चाहता है, तो उसे सभी समुदायों के धार्मिक आयोजनों पर समान रूप से नियम लागू करने चाहिए।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश आगामी चुनावों से पहले समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ाने के लिए लाया गया है। विपक्षी दलों का कहना है कि इस तरह के आदेश सरकार की सांप्रदायिक सोच को दर्शाते हैं और इससे धार्मिक सौहार्द्र बिगड़ सकता है।
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भविष्य की रणनीति
सांसद इकरा हसन ने कहा कि अगर प्रशासन इस आदेश को वापस नहीं लेता है, तो वे इसे न्यायालय में चुनौती देंगी। उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। “हम किसी भी हालत में अपने धार्मिक अधिकारों पर आंच नहीं आने देंगे,” उन्होंने कहा।
मेरठ प्रशासन का यह आदेश धार्मिक स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों से जुड़े गंभीर सवाल खड़े करता है। जहां प्रशासन इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी बता रहा है, वहीं इस फैसले का व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा है। इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर बहस तेज हो गई है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन अपने इस आदेश पर पुनर्विचार करता है या नहीं।
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