Ajmer Dargah Controversy: याचिकाकर्ता ने इतिहासकार की किताब का हवाला देते हुए कई खुलासे किए
अजमेर दरगाह से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कई अहम बिंदुओं पर सवाल उठाए गए हैं। अजमेर के मशहूर इतिहासकार हरविलास शारदा की किताब का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि इतिहास में कहीं भी अजमेर दरगाह के लिए किसी तरह की खाली जमीन के अधिग्रहण या कब्जे का जिक्र नहीं है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दरगाह परिसर में मौजूद तीन छतरियां, जो वर्तमान में एक गेट के पास स्थित हैं, संभवतः हिंदू धर्म से जुड़ी इमारतों के अवशेष हैं।
Ajmer Dargah Controversy: अजमेर दरगाह से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सवाल उठाए गए हैं। अजमेर के मशहूर इतिहासकार हरविलास शारदा की किताब का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि इतिहास में कहीं भी अजमेर दरगाह के लिए खाली पड़ी जमीन पर किसी तरह के अधिग्रहण या कब्जे का जिक्र नहीं है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दरगाह परिसर में मौजूद तीन छतरियां, जो वर्तमान में एक गेट के पास स्थित हैं, संभवतः हिंदू धर्म से जुड़ी इमारतों के अवशेष हैं।
याचिकाकर्ता ने अजमेर दरगाह के ऐतिहासिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन तीनों छतरियों का विवरण हरविलास शारदा की पुस्तक में दिया गया है। पुस्तक के अनुसार, ये छतरियां एक हिंदू इमारत के टूटे हुए टुकड़े प्रतीत होती हैं और उनके डिजाइन और संरचनाएं दर्शाती हैं कि वे हिंदू मंदिरों या अन्य धार्मिक संरचनाओं के अवशेष हो सकते हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि इन छतरियों में दिखाई देने वाली सामग्री और वास्तुकला हिंदू धर्म के प्रतीकों से मेल खाती है।
उन्होंने कहा कि इन छतरियों की असली पहचान छिपाने के लिए उन पर कई तरह के रंग-रोगन और सफेदी की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि ये छतरियां लाल पत्थर से बनी हैं, जो किसी पुराने जैन मंदिर के अवशेष हो सकते हैं, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया था।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने शाहजहां के समय में लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘पाद शाहनामा’ का भी हवाला दिया, जिसमें अजमेर दरगाह का कोई जिक्र नहीं है। इस पुस्तक में सम्राट शाहजहां के शासनकाल में हुई घटनाओं और उनके द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन किया गया है। लेकिन, इसमें अजमेर दरगाह के निर्माण का कोई जिक्र नहीं है।
याचिका में उठाया गया एक और गंभीर सवाल अजमेर दरगाह के चंदन खाने के तहखाने में रखे अवशेषों का है। याचिकाकर्ता ने कहा कि जिस तहखाने में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के अवशेष रखे जाने की बात कही जा रही है, दरअसल ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार वहां महादेव की छवि भी मौजूद थी। इस छवि पर चंदन अभिषेक करने की परंपरा एक ब्राह्मण परिवार द्वारा निभाई गई थी, जो आज भी जारी है, लेकिन अब इसे दरगाह की धार्मिक परंपरा के रूप में पेश किया जाता है।
आपको बता दें कि निचली अदालत ने बुधवार को अजमेर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह को हिंदू मंदिर घोषित करने की याचिका स्वीकार कर ली थी। मामले में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दिल्ली निवासी विष्णु गुप्ता ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर अजमेर दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा पेश किया था। याचिका की मेरिट पर मंगलवार को भी सुनवाई हुई। बुधवार को भी कोर्ट में सुनवाई हुई और फिर कोर्ट ने वाद स्वीकार कर लिया।