Medical Collage Scam: भारत के सबसे भयावह मेडिकल कॉलेज घोटाले की असल कहानी
एक जुलाई की सुबह जब सीबीआई की टीमों ने एक साथ दिल्ली, मेरठ, रायपुर, भोपाल, विशाखापट्टनम और वारंगल समेत देश के 40 ठिकानों पर छापेमारी शुरू की, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह कार्रवाई भारत की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को हिलाकर रख देगी। इस कार्रवाई ने देश के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज घोटाले की नींव से लेकर उसकी चोटी तक की परतें उधेड़ दीं।
Medical Collage Scam: एक जुलाई की सुबह जब सीबीआई की टीमों ने एक साथ दिल्ली, मेरठ, रायपुर, भोपाल, विशाखापट्टनम और वारंगल समेत देश के 40 ठिकानों पर छापेमारी शुरू की, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह कार्रवाई भारत की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को हिलाकर रख देगी। इस कार्रवाई ने देश के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज घोटाले की नींव से लेकर उसकी चोटी तक की परतें उधेड़ दीं।
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चौंकाने वाले नाम आए सामने
CBI की एफआईआर में कुल 36 लोगों को नामजद किया गया। इनमें शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी, मेडिकल काउंसिल के निरीक्षक, कॉलेज संचालक, एजेंट, और दो सबसे चौंकाने वाले नाम—पूर्व यूजीसी प्रमुख डीपी सिंह और स्वयंभू आध्यात्मिक गुरु रवि शंकर महाराज।
जांच की शुरुआत छत्तीसगढ़ के रावतपुरा मेडिकल कॉलेज से हुई, जहाँ तीन डॉक्टरों को 55 लाख की रिश्वत लेते पकड़ा गया। ये पैसे दिए गए थे ताकि कॉलेज को नेशनल मेडिकल कमीशन की टीम से फर्जी रिपोर्ट दिलाकर मान्यता मिल जाए।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, CBI को स्वास्थ्य मंत्रालय के भीतर एक संगठित गिरोह की सूचना मिली। ये गिरोह गोपनीय निरीक्षण तिथियां, निरीक्षकों के नाम और फाइलों की स्कैन कॉपियाँ निजी मेडिकल कॉलेजों को भेजता था, मोटी रकम लेकर। हर निरीक्षण से पहले सेटिंग होती थी। कुछ कॉलेजों में रेट तय था—एक निरीक्षण के लिए ₹25 लाख से ₹50 लाख तक। कॉलेज उस दिन सबकुछ ‘सजा’ देते थे।
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कुछ ऐसा था सिस्टम
- डमी टीचरों को बुलाया जाता, जिन्हें एक दिन के लिए स्टाफ बताया जाता। अस्पताल में फर्जी मरीज भर्ती किए जाते।
- बायोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज करने के लिए रबर की नकली उंगलियों का इस्तेमाल होता।
- कुछ जगहों पर तो बायो डेटा भी एजेंट तैयार करते और फोटोशॉप से नकली अनुभव प्रमाण पत्र बनाए जाते।
- मध्यप्रदेश के इंदौर में स्थित एक कॉलेज ने इंस्पेक्शन के दौरान उपस्थिति दिखाने के लिए डॉक्टरों की रबर की उंगलियां बनवाई थीं, ताकि बायोमेट्रिक मशीन को धोखा दिया जा सके।
- आंध्र प्रदेश के वारंगल और विशाखापट्टनम के मेडिकल कॉलेजों ने “डमी टीचर” रखने के लिए स्थानीय एजेंटों को 50 लाख से 4 करोड़ तक की रिश्वत दी।
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पूरे गिरोह का आध्यात्मिक कवर बना स्वयंभू बाबा
इस पूरे गिरोह का आध्यात्मिक कवर बना स्वयंभू बाबा रवि शंकर महाराज (Baba Ravi Shankar Maharaj), जिनके ट्रस्ट के तहत कई मेडिकल कॉलेज (medical colleges) चलते थे। बाबा ने ही डीपी सिंह को साधा और कहा गया कि “ऊपर” से काम कराना है। डीपी सिंह ने कॉलेजों को भरोसा दिया कि उनके “लोग” मंत्रालय में मौजूद हैं।
इसी क्रम में मेरठ का भी नाम आया—जहां NCR मेडिकल कॉलेज को लेकर CBI ने छापा मारा। यह कॉलेज तीन बार एमएलसी रह चुकीं और बड़े राजनीतिक रसूख रखने वाली डॉ. सरोजिनी अग्रवाल का है। CBI ने उनकी बेटी, डॉ. शिवानी अग्रवाल के खिलाफ सीड दर्ज की। जांच में सामने आया कि कॉलेज ने निरीक्षण से पहले नकली फैकल्टी, फर्जी मरीज और मनगढ़ंत दस्तावेजों का सहारा लिया।
CBI की जांच में खुलासा
CBI की जांच में पता चला कि हवाला नेटवर्क के ज़रिए रिश्वत का पैसा एक अधिकारी जीतू लाल मीणा के ज़रिए राजस्थान भेजा गया, जहां इस पैसे से 75 लाख का एक हनुमान मंदिर (Hanuman temple) बनवाया गया। मंदिर भक्ति का केंद्र बना, लेकिन उसकी नींव भ्रष्टाचार से भरी थी।
अब तक 6 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। 36 नामजदों में कुछ ऐसे नाम भी हैं जो पहले कभी कानून के दायरे में नहीं आए थे—इस बार सीधा भ्रष्टाचार की पंक्ति में खड़े हैं।
CBI ने कहा है कि यह घोटाला न केवल शिक्षा प्रणाली को अपवित्र करता है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य और जान से भी खिलवाड़ है। जब अयोग्य कॉलेजों से अयोग्य डॉक्टर निकलेंगे, तो सबसे बड़ा खतरा आम आदमी को ही होगा।
यह घोटाला बताता है कि हमारे सिस्टम में भ्रष्टाचार केवल धन के लिए नहीं, बल्कि सत्ता, छवि और नियंत्रण के लिए भी होता है। और जब शिक्षा से विश्वास उठ जाए, तब समाज की बुनियाद डगमगाने लगती है।
1 जुलाई 2025 सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उस ताले की चाबी बन गई, जिससे चिकित्सा शिक्षा में लगे सबसे बड़े घोटाले का दरवाज़ा खुला। ये शुरुआत है, आगे और भी बड़े नामों के सामने आने की उम्मीद है।
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