Global South Summit: बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की सख्त जरूरत, जयशंकर की जोरदार अपील
There is a dire need to reform multilateral institutions, Jaishankar made a strong appeal
नई दिल्ली – वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन के तीसरे संस्करण के समापन पर, भारत ने एक बार फिर बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस मौके पर कहा कि यदि हमें बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता को पुनर्जीवित करना है, तो इस दिशा में ठोस और निर्णायक कदम उठाने की सख्त जरूरत है। उन्होंने यह भी चेताया कि संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाने में असमर्थता का खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ रहा है, और हर गुजरते दिन के साथ यह समस्या और गहरी होती जा रही है।
सम्मेलन में वैश्विक चिंताओं पर गंभीर मंथन
वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन में कुल 123 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें 21 राष्ट्राध्यक्ष, 118 मंत्री और 34 विदेश मंत्री शामिल थे। इस दौरान, 10 मंत्रिस्तरीय सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें टिकाऊ भविष्य के लिए वैश्विक दक्षिण को सशक्त बनाने पर गहन चर्चा हुई। सम्मेलन में भाग लेने वाले अधिकांश देशों ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की जरूरत को रेखांकित किया और इसे समय की मांग के रूप में स्वीकारा।
बहुपक्षवाद की पुनर्स्थापना की अनिवार्यता
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा, “यह एक निर्विवाद सत्य है कि वैश्विक व्यवस्था को भले ही गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन बहुपक्षीय संस्थानों से अपेक्षित समाधान नहीं मिले हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि इन संस्थानों की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए सुधार अनिवार्य हैं। जयशंकर का यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि बहुपक्षीय संस्थानों को आधुनिक समय की जरूरतों के हिसाब से खुद को ढालना होगा, ताकि वे वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकें और प्रभावी समाधान प्रस्तुत कर सकें।
अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में विविधता की जरूरत
जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता के संदर्भ में कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन में विविधता लाने की भी सख्त जरूरत है। इससे न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, बल्कि आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता भी कम होगी, जो किसी एक क्षेत्र में संकट आने पर वैश्विक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। उन्होंने कहा कि उत्पादन की विविधता से आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन आएगा और वैश्विक दक्षिण के देशों को भी इसका लाभ मिलेगा।
ग्लोबल साउथ के देशों की चुनौतियां
विदेश मंत्री ने यह भी बताया कि यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब दुनिया कई संघर्षों, तनावों और दबावों से जूझ रही है। खासकर ग्लोबल साउथ के देश, जो इन समस्याओं से अधिक प्रभावित हैं। जयशंकर ने जोर देकर कहा कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए बहुपक्षीय संस्थानों को और अधिक सक्षम और जवाबदेह बनाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक दक्षिण के देशों को इन संस्थानों में अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाने की आवश्यकता है, ताकि उनके मुद्दों का समाधान प्रभावी ढंग से किया जा सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अहम भूमिका
इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आतंकवाद और उग्रवाद के बढ़ते खतरे के मुद्दे को उठाया और इस बात पर बल दिया कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए वैश्विक सहयोग और एकजुटता जरूरी है। मोदी ने विशेष रूप से कर्ज के बोझ से दबे देशों की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया, हालांकि सम्मेलन में किसी खास देश ने इस मुद्दे पर विशेष जानकारी साझा नहीं की। फिर भी, मोदी के वक्तव्य ने वैश्विक दक्षिण के देशों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत को रेखांकित किया।
बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की अनिवार्यता
ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन के समापन के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार एक अनिवार्यता बन गई है। इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए वैश्विक दक्षिण के देशों ने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की है। अब यह देखना होगा कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय संस्थान इन सुधारों की दिशा में किस तरह से आगे बढ़ते हैं।