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Tigress Arrowhead Death: रणथंभौर में छाया मातम, बाघिन एरोहेड ने जंगल को कहा अलविदा, बेटी रिद्धि से जुदाई के दो घंटे बाद ली आखिरी सांस

रणथंभौर नेशनल पार्क की सबसे मशहूर और शाही बाघिनों में शुमार एरोहेड (T-84) ने 19 जून को अंतिम सांस ली। उसकी मौत महज एक बाघिन के जाने भर की नहीं, बल्कि रणथंभौर के उस इतिहास का अंत है जिसने तीन पीढ़ियों तक जंगल में राज किया। एरोहेड की विरासत उसकी दादी मछली और मां कृष्णा से जुड़ी है, जिनके नाम ही रणथंभौर की पहचान बन चुके हैं।

Tigress Arrowhead Death: रणथंभौर नेशनल पार्क की सबसे ताकतवर और चर्चित बाघिन एरोहेड (T-84) ने 19 जून को हमेशा के लिए जंगल को अलविदा कह दिया। उसका यूं जाना सिर्फ एक बाघिन का निधन नहीं, बल्कि एक पूरे युग का अंत माना जा रहा है। उसकी दादी मछली और मां कृष्णा के साथ तीन पीढ़ियों ने जिस शाही अंदाज में रणथंभौर पर राज किया, वह अब इतिहास बन गया।

बोन कैंसर से चार साल तक लड़ने के बावजूद एरोहेड ने अपनी आखिरी सांस तक एक सच्ची रानी की तरह जीवन जिया। मौत से ठीक एक दिन पहले उसने एक विशाल मगरमच्छ का शिकार कर यह दिखा दिया कि वो क्यों रणथंभौर की रानी कहलाती थी।

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माथे के निशान से बना ‘एरोहेड’

T-84 यानी एरोहेड को यह नाम उसके माथे पर बने तीर के निशान की वजह से मिला था। वह मशहूर बाघिन ‘मछली’ की पोती और कृष्णा उर्फ टी-19 की बेटी थी। मछली को ‘लेडी ऑफ द लेक’ और ‘मगरमच्छों को मारने वाली’ कहा जाता था और भारत सरकार ने उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ से भी नवाजा था।

बेटी रिद्धि से टेरिटरी वॉर के बाद दो घंटे में सांसें थमी

एरोहेड की मौत से ठीक दो घंटे पहले उसकी बेटी रिद्धि को ट्रैंकुलाइज कर रणथंभौर से अलवर स्थित मुकुंदरा भेजा गया था। उसके बाद एरोहेड ने अपनी आखिरी सांस ली। विशेषज्ञ इसे मां-बेटी के टेरिटरी वॉर और भावनात्मक दबाव से जोड़ रहे हैं।

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तीन पीढ़ियों ने किया रणथंभौर पर राज

मछली (T-16): 20 साल से अधिक समय तक जंगल पर राज किया, रणथंभौर को विश्व मानचित्र पर लाने वाली बाघिन।

एरोहेड (T-84): कृष्णा की बेटी, जिसने अपनी मां और दादी की विरासत को शान से आगे बढ़ाया।

कृष्णा (T-19): मछली की बेटी, जिसने 26 साल जंगल में राज किया।

रणथंभौर की रानी ने आखिरी समय में दिखाया साहस

मौत से पहले एरोहेड ने एक विशाल मगरमच्छ का शिकार किया। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उसने मगरमच्छ को अपने जबड़ों में पकड़ कर पानी से बाहर घसीट लिया। ये किसी भी सामान्य बाघिन के लिए असंभव सा काम था। उसकी यह ताकत और हिम्मत उसके खून में बह रही मछली और कृष्णा की विरासत का प्रमाण थी।

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जंगल में गूंज रही है सन्नाटा

रणथंभौर के जोन 3, 4 और 5 की शेरनी अब नहीं रही। पर्यटकों के कैमरों में अक्सर दिखने वाली एरोहेड अब सिर्फ यादों में है। उसकी गरिमा, चाल, और शिकार करने का तरीका अब भी लोगों के ज़ेहन में ज़िंदा है। वह भले ही शारीरिक रूप से थक चुकी थी, लेकिन उसकी आत्मा अंतिम क्षणों तक रानी जैसी ही रही।

विरासत को आगे बढ़ाएंगे रिद्धि और सिद्धि

एरोहेड की दो बेटियां रिद्धि (T-124) और सिद्धि (T-125) अब इस वंश को आगे बढ़ाएंगी। उम्मीद की जा रही है कि वे भी अपनी मां और नानी की तरह रणथंभौर में अपनी छाप छोड़ेंगी और इस ‘बाघिन राज’ को आने वाली पीढ़ियों तक ले जाएंगी।

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वन्यजीव प्रेमियों के लिए अपूरणीय क्षति

फोटोग्राफरों, पर्यटकों और रणथंभौर के वन्यजीव प्रेमियों के लिए एरोहेड का जाना एक खालीपन छोड़ गया है। उसकी यादें, कहानियां और तस्वीरें अब इतिहास बन जाएंगी, लेकिन वह हमेशा रणथंभौर की रानी के रूप में याद रखी जाएगी।

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Diksha Parmar

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