Trump Administration: ट्रंप के टैरिफ प्लान से बढ़ी उथल-पुथल, एक कैबिनेट सचिव पर गिर सकती है गाज
ट्रम्प कैबिनेट के एक सचिव को टैरिफ अराजकता के लिए बलि का बकरा बनाया जा सकता है, क्योंकि व्यापार नीतियों को लेकर तनाव बढ़ रहा है। प्रशासन को अपनी टैरिफ नीतियों से उत्पन्न आर्थिक अव्यवस्थाओं के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस बीच, राजनीतिक नुकसान किसे उठाना पड़ेगा, इस पर अटकलें तेज हो गई हैं।
Trump Administration: वॉशिंगटन, डीसी: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से जुड़ी व्यापारिक अस्थिरता के बीच उनके प्रशासन के एक वरिष्ठ कैबिनेट सदस्य को संभावित रूप से बलि का बकरा बनाया जा सकता है। ट्रंप के नए टैरिफ प्रस्तावों को लेकर बढ़ती चिंता के बीच यह अटकलें तेज हो गई हैं कि अगर यह नीति विफल होती है तो उसका पूरा दोष किसी एक अधिकारी पर मढ़ा जा सकता है।
ट्रंप के टैरिफ प्लान से बढ़ती आर्थिक चिंताएं
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में यह संकेत दिया है कि अगर वह दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं, तो वह आयातित वस्तुओं पर 10% का बेसलाइन टैरिफ लगाएंगे। इसके अलावा, वह चीन से आयातित उत्पादों पर अभी से भी अधिक ऊंचे टैरिफ लगाने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, उनके समर्थक इसे घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने वाला कदम बता रहे हैं, लेकिन कई आर्थिक विशेषज्ञ और यहां तक कि रिपब्लिकन पार्टी के कुछ सदस्य भी इसे महंगाई बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नुकसान पहुंचाने वाला कदम मानते हैं।
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ट्रंप के इस टैरिफ प्लान से अमेरिका में उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे आम उपभोक्ताओं पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, कई व्यवसायों के लिए कच्चे माल की लागत बढ़ जाएगी, जिससे आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) बाधित हो सकती है। इस स्थिति में ट्रंप के प्रशासन का कोई एक बड़ा अधिकारी इस पूरे आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कौन हो सकता है बलि का बकरा?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन के कुछ पूर्व अधिकारी इस संकट के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं। इनमें प्रमुख नाम पूर्व अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव) रॉबर्ट लाइथाइज़र और पूर्व वाणिज्य सचिव (कॉमर्स सेक्रेटरी) विल्बर रॉस का लिया जा रहा है। इन दोनों ने ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान उनकी टैरिफ नीतियों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सूत्रों के मुताबिक, यदि ट्रंप के टैरिफ प्लान से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है, मुद्रास्फीति (इन्फ्लेशन) बढ़ती है, या नौकरियों पर खतरा मंडराता है, तो इन अधिकारियों पर दोष मढ़ा जा सकता है। ट्रंप अक्सर अपनी नीतियों के संभावित दुष्प्रभावों को दूसरों पर डालते रहे हैं, और इस बार भी किसी वरिष्ठ अधिकारी को जिम्मेदार ठहराकर खुद को बचाने की रणनीति अपनाई जा सकती है।
व्यापार जगत में बढ़ती चिंता
अमेरिकी कंपनियां और उद्योग जगत पहले से ही ट्रंप के टैरिफ प्रस्तावों को लेकर चिंतित हैं। कई कंपनियां आयात पर अधिक शुल्क से परेशान हैं, क्योंकि इससे उनके उत्पादन खर्च में इजाफा होगा, जिससे उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर भी असर पड़ सकता है। यदि अमेरिका अपने व्यापारिक सहयोगियों पर अधिक शुल्क लगाता है, तो बदले में वे भी अमेरिकी उत्पादों पर भारी टैरिफ लगा सकते हैं, जिससे निर्यात (एक्सपोर्ट) प्रभावित होगा।
राजनीतिक रणनीति या जोखिम भरा दांव?
ट्रंप के समर्थकों का कहना है कि यह टैरिफ प्लान अमेरिका की अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने का एक बड़ा कदम है। उनका दावा है कि चीन और अन्य देशों पर टैरिफ बढ़ाने से अमेरिकी उत्पादों की मांग बढ़ेगी और घरेलू कंपनियों को फायदा होगा।
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हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह रणनीति कमजोर वर्गों और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है। यदि रोजमर्रा के उपभोक्ता सामान महंगे होते हैं, तो आम जनता का असंतोष बढ़ सकता है।
इस बीच, रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी इस फैसले पर मतभेद हैं। कुछ नेता मानते हैं कि अगर ट्रंप इस योजना को लागू करते हैं और इसका उलटा असर पड़ता है, तो इससे उनकी दोबारा राष्ट्रपति बनने की संभावनाओं को झटका लग सकता है। ऐसे में ट्रंप यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि किसी अन्य अधिकारी पर दोष डालकर खुद को बचाया जाए।
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क्या यह फैसला ट्रंप को फायदा पहुंचाएगा?
अगले राष्ट्रपति चुनावों को देखते हुए ट्रंप के टैरिफ प्लान को एक राजनीतिक दांव माना जा रहा है। अगर यह सफल होता है और अमेरिका की अर्थव्यवस्था को लाभ होता है, तो यह ट्रंप के चुनावी अभियान को मजबूती देगा। लेकिन यदि इस फैसले से आर्थिक संकट गहराता है, तो ट्रंप प्रशासन में शामिल किसी अधिकारी को सार्वजनिक रूप से दोषी ठहराया जा सकता है।
आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि यह टैरिफ नीति किस दिशा में जाती है और इसका असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक परिदृश्य पर कितना पड़ता है।
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