तुर्की तबाह हो चुका है। करीब दस से ज्यादा जिले भूकंप से जमींदोज हो चुके हैं। हजारो की संख्या में घर मलवा में बदल गए हैं और अबतक 35 हजार से ज्यादा लोगों की जाने जा चुकी है। इसी बीच भूकंप के लगातार झटके से लोग और भी भयभीत हो गए हैं। कल भी भूकंप आये और लोगो में दहशत फ़ैल गया। भागते लोगो ने राष्ट्रपति के खिलाफ नारे लगाए और उनपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए। भूकंप के तांडव से डरे लोग अब राष्ट्रपति को हटाने की बात कर रहे हैं। मई में वहाँ चुनाव होने हैं लेकिन सरकार चुनाव को टालने में लगी है ताकि राष्ट्रपति एर्डोगन के खिलाफ लोगो की आवाज को शांत कर सके।
इधर तुर्की सीमा पर उग्रवादियों का तांडव भी जारी है। कई देशो से पहुंचे रेस्क्यू ऑपरेशन टीम उग्रवादियों के तांडव और झड़प से पीछे लौट रही है। इससे भी तुर्की वासी खासे नाराज है। लोगो को लग रहा है कि सरकार उग्रवादियों पर भी नियंत्रण नहीं कर पा रही है जिसकी वजह से उनका ठीक से रेस्क्यू भी नहीं हो पा रहा है। एर्डोगन सरकार कई चुनौतियों में घिर गई है। सबसे बड़ी चुनौती सत्ता जाने का है।
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लोगो की जाने तो अभी भी जा रही है और जमींदोज हो चुके हजारो मकानों को फिर से खड़ा करने की चुनौती सरकार के सामने है लेकिन इस भूकंप ने एर्डोगन के राजनीतिक किला को भी हिला कर रख दिया है। हजारो लोगो की मौत से लोगो में काफी गुस्सा पनपा हुआ है। ऐसा नहीं है कि तुर्की में यह कोई पहला भूकंप आया है। 1999 में भी वहाँ भूकंप आया था जिसमे 17 हजार से ज्यादा लोगो की जाने चली गई थी। सैकड़ो घर तबाह हो गए थे। तब सरकार ने एक नियम बनाया था कि अब जो भी इमारते बनेगी वह भूकंप रोधी तकनीक से बनेगी। इस नियम को सख्ती से लागू किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ठेकेदारों और बिल्डरो ने सरकार के लोगो से मिलकर उस नियम का पालन नहीं किया और भ्रष्टाचार के जरिये गलत तरीके से मकान का निर्माण किया जिसके परिणाम स्वरुप अधिकतर मकान धवत हो गए। लोग इसके लिए राष्ट्रपति एर्दोगन को दोषी मान रहे हैं है।
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इसके अलावा तुर्की की सरकार ने मजबूत मकान बनाने के नाम पर स्थानीय लोगो से भारी टैक्स भी वसूल किया था। कहा जा रहा है कि इस अतिरिक्त टैक्स की राशि 17 बिलियन डॉलर थी जो भ्रषचार की भेंट चढ़ गई। बता दे कि तुर्की में एर्दोगन पिछले बीस साल से सत्ता में हैं लेकिन अब जनता उनके खिलाफ हो गई है। राष्ट्रपति भी मान रहे हैं कि स्थिति को ठीक से नहीं सम्हाला गया तो उनकी राजनीतिक चुनौती बढ़ेगी और उन्हें सत्ता से बेदखल भी होना पड़ सकता है। विपक्ष अब किसी भी सूरत में एर्दोगन की सत्ता को बर्दास्त करने को तैयार नहीं है।