Uttar Pradesh News: कथावाचकों से दुर्व्यवहार पर शंकराचार्य का चौंकाने वाला बयान! ‘कथा कहने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को’
इटावा में कुछ गैर-ब्राह्मण कथावाचकों, जिनमें कथित तौर पर मुकुट मणि और संत कुमार यादव शामिल हैं, को ब्राह्मण बनकर कथावाचन करने के आरोप में गांव वालों ने अपमानित किया था। आरोप है कि उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया और उन्हें कथावाचन से रोका गया। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में तनाव पैदा कर दिया है।
Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश (uttar pradesh) के इटावा में गैर-ब्राह्मण कथावाचकों के साथ कथित दुर्व्यवहार का मामला गरमा गया है। इस घटना पर अब ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का एक बड़ा और बेहद तीखा बयान सामने आया है, जिसने धार्मिक और सामाजिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है। शंकराचार्य ने साफ तौर पर कहा है कि सार्वजनिक रूप से कथा कहने का अधिकार केवल और केवल ब्राह्मणों को है।
क्या है मामला?
दरअसल, इटावा में कुछ गैर-ब्राह्मण कथावाचकों, जिनमें कथित तौर पर मुकुट मणि और संत कुमार यादव शामिल हैं, को ब्राह्मण बनकर कथावाचन करने के आरोप में गांव वालों ने अपमानित किया था। आरोप है कि उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया और उन्हें कथावाचन से रोका गया। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में तनाव पैदा कर दिया है।
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शंकराचार्य का दो टूक बयान
इस संवेदनशील मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने स्पष्ट किया कि, “अगर कोई ब्राह्मणों के बीच जाकर ब्राह्मण बनकर कथा कहता है, तो यह सरासर धोखा है।” उन्होंने कहा कि अपनी जाति छिपाकर कथा कहना गलत है। उनके अनुसार, “शास्त्रों के मुताबिक सभी जातियों को कथा सुनाने के लिए ब्राह्मण ही उपयुक्त हैं।”
शंकराचार्य ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर यह धोखाधड़ी का मामला है, तो पुलिस को IPC की धारा 419 और 420 के तहत केस दर्ज करना चाहिए। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब समाज के विभिन्न वर्गों से इस घटना पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
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शंकराचार्य का यह बयान धार्मिक परंपराओं के कठोर पालन पर बल देता है, जबकि आधुनिक समाज में जातिगत भेदभाव को अस्वीकार्य माना जाता है। उनके इस दावे ने एक बार फिर इस बहस को जन्म दिया है कि क्या धार्मिक अनुष्ठानों और कथावाचन का अधिकार किसी विशेष जाति तक ही सीमित होना चाहिए, या फिर योग्यता और ज्ञान के आधार पर किसी को भी यह अवसर मिलना चाहिए।
अब देखना यह होगा कि शंकराचार्य के इस बयान का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है और इस पूरे मामले में आगे क्या मोड़ आता है।
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