Uttarakhand Haldwani News: 4400 घरों को बुलडोजर से ‘सुप्रीम’ राहत, क्या हल्द्वानी में बनेगा नया ‘शाहीनबाग’?
तस्वीरों में आपको लग रहा होगा कि ये दिल्ली का शाहीन बाग है.लेकिन नहीं.ये तस्वीरें उत्तराखंड के हल्द्वानी के गफूर बस्ती और बनभूलपुरा की हैं.यहां के रहने वाले लोग दशकों पहले से ही रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर.
तस्वीरों में आपको लग रहा होगा कि ये दिल्ली का शाहीन बाग है.लेकिन नहीं.ये तस्वीरें उत्तराखंड के हल्द्वानी के गफूर बस्ती और बनभूलपुरा की हैं.यहां के रहने वाले लोग दशकों पहले से ही रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर.क्या घर, क्या दुकान, क्या मकान, क्या स्कूल बना लेते हैं.इतना ही नहीं करीब 4 हजार मकानों की पूरी की पूरी बस्ती ही बसा लेते हैं.फिर जब हाईकोर्ट अतिक्रमण हटाने का आदेश देता है तो विरोध प्रदर्शन करते हैं.सुनिए इन मोहतरमा को कैसे मजमा इकट्टठा करके लोगों को भड़का रहीं हैं.
फिलहाल नैतीताल हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुका है.साथ-साथ उत्तराखंड सरकार और रेलवे को नोटिस भी जारी किया है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रेलवे का विकास भी जरूरी है.लेकिन यहां मानवीय संवेदनाओं को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता.क्या कुछ घंटों की मोहलत से 50 हजार लोग कहां जाएंगे.सरकार के पास वहां रह रहे लोगों के पुनर्वास को कोई प्लान है क्या.अब इस मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी.
ऊपरी अदालत के इस फैसले के बाद प्रदर्शकारियों ने राहत की सांस ली है.सुप्रीम कोर्ट के कारण फिलहाल बुलडोजर अभियान रूक गया.लेकिन इस अतिक्रमण के मामले को मजहबी रंग दिया जा रहा है…क्यों कि यहां ज्यादातार तादाद में मुस्लिम रहते हैं.किसी भी मामले में कूदकर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले सियासतदान भी चिंगारी को शोला बनाने पर तुले हुए हैं.क्या कांग्रेस पार्टी, क्या समाजवादी पार्टी, क्या बहुजन समाज पार्टी.इन सभी के नेताओं ने डेरा डाला हुआ है.और वोट बैंक की खातिर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ धरने पर बैठे हुए हैं.इतना ही नहीं शाहीन बाग के दौरान उसका समर्थन करने वाले टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य, उनके एनजीओ भी यहां मुस्तैदी से तैनात हैं.बीते दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत इस मामले को लेकर उपवास पर बैठ गए थे.अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उत्तराखंड कांग्रेस की ओर से ट्वीट किया गया है.टवीट में लिखा है कि.ये न्याय की जीत है, इंसानियत की जीत है.हल्द्वानी के लोगों के सर से छत नहीं छीनी जायेगी, बच्चों के स्कूल नहीं टूटेंगे, अस्पताल नहीं टूटेगा, मंदिर मस्जिद धर्मशाला नहीं टूटेगी.वहीं हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृद्येश ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया.और सरकार से व्यवस्था करने की मांग की
वहीं इस मामले को लेकर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा- कि कोर्ट के फैसले के मुताबिक हमलोग काम करेंगे.भारत में सबसे ज्यादा जमीन का मालिकाना हक अगर किसी के पास है तो वो रेलवे है.जिसके पास करीब 5 लाख हेक्टेयर जमीन है.यानि कि गोवा के क्षेत्रफल से भी ज्यादा जमीन रेलवे के पास है.वहीं मार्च 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे की 844.38 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा है.लेकिन रेलवे के पास राज्यवार आंकड़ें नहीं हैं कि किन-किन राज्यों में रेलवे की कितनी जमीन पर कब्जा है.हल्द्वानी जैसे एक छोटे से शहर में अवैध कब्जे की ये कहानी 50 साल पुरानी है.जो अब तक रेलवे के 78 एकड़ जमीन पर फैल गई है.स्थानीय लोगों का दावा है कि 50 साल से भी ज्यादा हो गए उन्हें यहां पर रहते हुए.इस दौरान तमाम सरकारें उन्हें तमाम सुविधाएं मुहैया कराती रही.लोग सभी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं.यहां तक कि लोगों को पीएम आवास योजना का भी लाभ मिला है.इस अतिक्रमण वाले इलाके में 90 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है.2016 में आरपीएफ ने अतिक्रमण का मुकदमा दर्ज करवाया था.तब तक करीब 50 हजार लोग रेलवे की जमीन पर आबाद हो चुके थे.इसके बाद नैनीताल कोर्ट ने नवंबर 2016 में 10 सप्ताह के अंदर रेलवे को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था.इसके बाद भी रेलवे, प्रशासन और आरपीएफ नरमी दिखाता रहा.फिलहाल अतिक्रमणकारियों के पास कोई ठोस सबूत नहीं है.यानि उनके पास जब कागज ही नहीं है तो दिखाएंगे कहां से.सवाल ये उठता है कि समय रहते रेलवे ने कार्रवाई क्यों नहीं की.अगर की तो राजनैतिक दलों के वोट बैंक के चक्कर में ये कार्रवाई लंबित होती रही.सवाल कोर्ट की मंशा पर भी उठते हैं.कि उनके पास ऐसे कई मामले लंबित क्यों रहते हैं.यानि देखा जाए तो क्या विधायिका, क्या कार्यपालिका, क्या न्यायपालिका इन पर सवाल उठेंगे ही.कि सरकारी संपत्ति पर कोई कब्जा कैसे कर सकता है.जबकि यहां अतिक्रमण तोड़ने का आदेश सरकार का नहीं था…नैनीताल हाईकोर्ट का था.रही बात इस बस्ती की.कि जहां पर 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम हो तो राजैनितक दल भी सत्ता के लिए गिद्धों की तरह टूट पड़ते हैं.और इन्हीं की वजह से ही अवैध बस्तियां, कॉलोनियां पनपती हैं.और उसमें रहने वालों को सभी सरकारी सुविधाएं भी मिलती हैं.सवाल ये भी है कि अगर यही अवैध बस्ती हिंदू बहुल होती.तो कोई भी दल या उनकी पार्टी का नेता नहीं पहुंचता.अब देखना ये होगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे और सरकार अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास के लिए क्या व्यवस्था करती है.और कब रेलवे को अपनी जमीन वापिस मिलती है.
जयेंद्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार