Mahakumbh Mela Prayagraj: महाकुंभ छोड़ने से पहले क्या खाते हैं नागा साधु?
प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला शुरू हो गया है। जहां देशभर से नागा साधु, संत और श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगाने आए थे। तीसरे अमृत स्नान के बाद सभी साधु-संत अपने-अपने अखाड़ों के साथ महाकुंभ से लौट चुके हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ मेले से निकलने से पहले नागा साधु क्या खाते हैं और इसका क्या महत्व है?
Mahakumbh Mela Prayagraj: आस्था के महापर्व का महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हुआ था, जिसके बाद मकर संक्रांति के दिन संगम पर पहला अमृत स्नान, मौनी अमावस्या के दिन दूसरा अमृत स्नान और बसंत पंचमी के पावन अवसर पर तीसरा अमृत स्नान किया गया था। तीसरे शाही स्नान के बाद नागा साधुओं ने वापसी की यात्रा शुरू कर दी है, लेकिन महाकुंभ अभी खत्म नहीं हुआ है। इसका समापन महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर होगा। इसी दिन महाकुंभ का आखिरी महास्नान भी किया जाएगा।
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महाकुंभ से जाने से पहले नागा साधु क्या खाते हैं?
बसंत पंचमी यानी तीसरे अमृत स्नान के बाद नागा साधुओं और संतों का महाकुंभ से लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है। सभी नागा साधुओं ने अपने-अपने अखाड़ों के साथ वापसी की यात्रा शुरू कर दी है। हालांकि इसके बाद भी कुंभ मेला महाशिवरात्रि तक जारी रहेगा। महाकुंभ मेले से विदाई लेने से पहले साधु-संत सबसे पहले कढ़ी और भाजी का सेवन करते हैं। नागा साधुओं के अपने अखाड़े के लिए रवाना होने से पहले उनके लिए खास कढ़ी और भाजी बनाई जाती है। इस कढ़ी और भाजी को बनाने का काम वहां का स्थानीय मूलनिवासी समुदाय करता है।
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कढ़ी और भाजी खाने का महत्व
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महाकुंभ से लौटते समय कढ़ी-भाजी खाने को गुरु-शिष्य परंपरा के रूप में देखा जाता है। कुंभ मेले के दौरान हर अखाड़े में यह परंपरा देखने को मिलती है। नाभिक समुदाय वहां साधु-संतों को बड़ी श्रद्धा से भोजन कराता है। कुंभ मेले में मौजूद अखाड़े के साधु-संतों की संख्या के हिसाब से ये कढ़ी-भाजी बनाई जाती है। कुंभ मेले से अपने मूल स्थान पर लौटते समय नागा साधु कढ़ी-भाजी खाते हैं और उसके बाद ही प्रस्थान करते हैं। इसके बिना वे प्रस्थान नहीं करते। यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है।
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