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हल षष्ठी पर्व क्या होता हैं? जानें व्रत कथा विस्तार से…

Hal Sashti Vrat Katha: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी का जन्म हुआ था। इसके ठीक 2 दिन बाद कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखा जाता है। हलषष्ठी (Hal Shashthi) के व्रत में कथा (Sashti Vrat Katha) अवश्य सुननी चाहिए, ऐसा करने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है…

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5 सितंबर यानि मंगलवार को हल षष्ठी तिथि का व्रत (Sashti Vrat Katha) रखा जाएगा। यह त्योहार कृष्ण जन्माष्टमी के 2 दिन पहले पड़ता है। शास्त्रों के मुताबिक, इस तिथि पर भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। बलराम को हल और मूसल बहुत प्रिय है इसलिए बलरामजी को हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा। हल षष्ठी (Hal Shashthi) के व्रत में कथा (Sashti Vrat Katha) सुनना बहुत शुभ माना जाता है। आइए हल षष्ठी व्रत कथा विस्तार से जानते हैं…

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी जो गर्भवती थी और जिसका प्रसव काल बहुत पास था। एक ओर ग्वालिन अपनी प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी तो दूसरी तरफ उस पीड़ा में भी उसका मन गाय भैंस का दूध बेचने की तरफ लगा हुआ था। ग्वालिन सोचने लगी की अगर (Sashti Vrat Katha) मेरा प्रसव हो गया तो फिर ये गौ रस बेकार हो जाएगा। इसलिए ग्वालिन फटाफट उठी और सिर पर दूध दही की मटकी रखकर बेचने के लिए निकल गई। रास्ते में वह किसी झरबेरी की ओट में चली गई और वहां जाकर उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

पुत्र का जन्म देने के बाद भी ग्वालिन का मन दूध, दही आदि चीजों के बेचने में लगा हुआ था। तो वह बच्चे को वहीं कपड़े में लपेटकर छोड़ कर गांवों की तरफ दूध दही बेचने चल दी। संयोग से उस दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि थी यानी हल षष्ठी तिथि थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को उसने भैंस का दूध बताकर पूरे गांव में बेच दिया। (Sashti Vrat Katha) उधर जिस झरबेरी के नीचे उस बच्चे को छोड़ा था, उसके पास ही एक किसान खेत में हल चला रहा था। अचानक से किसान के बैल भड़क गए और हल का फल बच्चे के शरीर में घूस गया, जिससे बच्चा मर गया।

बच्चे को मरे हुए देखकर किसान बहुत दुखी हुआ और उसने हिम्मत से काम लेकर उसी झरबेरी के कांटों से ही बच्चे को टांके लगा दिए और वहीं छोड़कर चला गया। जब ग्वालिन सारा दूध, दही बेचकर अपने बच्चे पास आई तो बच्चे को मरा हुआ देखा। बच्चे को इस अवस्था में देखकर वह समझ गई कि यह सब उसके ही पाप की सजा है। मन ही मन अपने आपको कोसने लगी कि अगर असत्य बोलकर दूध ना बेचा होता है और गांव की महिलाओं की महिलाओं का धर्म भ्रष्ट ना किया होता है (Sashti Vrat Katha) तो मेरे बच्चे की यह दशा ना होती। उसने गांव वालों को सारी सच्चाई बताकर प्रायश्चित करने के बारे में विचार किया।

ग्वालिन तुरंत उठी और गांव की (Sashti Vrat Katha) महिलाओं को सारी बात बताकर माफी मांगने लगी और इस करतूत के बाद मिले दंड के बारे में बताने लगी। गांव की महिलाओं को ग्वालिन पर रहम आ गया और उस पर रहम खाकर क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। जब ग्वालिन गांव से निकलकर वापस अपने बच्चे के पास पहुंची तो उसका बच्चा जीवित हो गया था। उसने ईश्वर का बहुत धन्यवाद कहा और आगे से फिर झूठ ना बोलने का प्रण लिया।

Prachi Chaudhary

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