दिल्ली

ये कैसा आंदोलन… सड़कों पर बवाल, आगजनी और फिर खूनी संघर्ष!

Delhi Kisan Protest: देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर कल जो हुआ वो किसी को बताने की जरूरत नहीं हैं, जो तस्वीरें सामने आईं वो चिंता बढ़ाने वाली थी और डराने वाली थीं। कल दिल्ली में एक तरफ चंद घंटे पहले तक शांति की बात हो रही थी और उसके बाद पुलिस ने किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़े, लाठियों से प्रहार किए और पत्थरों से पलटवार किया गया। खिर क्यों..वो कौन है जो नहीं चाहता कि सरकार और किसानों के बीच बात बन जाए।आखिर जब बातचीत का मुद्दा पहले से तय था सरकार बात भी कर रही थी तो नई मांगें कहां से आ गईं। आखिर नई मांगों के मायने क्या हैं।ऐसे में सवाल तो उठेंगे कि आखिर वो कौन है जो नहीं चाहता कि देश के अन्नदाता को इंसाफ मिले।उनकी मांगें पूरी हों, मांगों की टाइमिंग भी सवालों के घेरे में है। क्योंकि देश में चुनावी माहौल की पटकथा अपने क्लाइमेक्स वाले मोड़ पर है। इसी समय को आंदोलन के लिए क्यों चुना गया।

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सूत्रों के मुताबिक पिछले आंदोलन के दौरान किये गए कुछ वादे अधूरे हैं। उन्हें पूरा कराने के लिए चुनाव से पहले दबाव का सही समय है।  संशय ये है कि अगर अभी वादे नहीं पूरे हुए  और नई सरकार आ गई तो फिर वो पहले वादों से मुकर जाएगी। ऐसे में पहले की गई मांगे धरी रह जाएंगी। सवाल ये भी है कि अगर सरकार ने कभी बातचीत के दरवाजे बंद ही नहीं किये तो संशय आया कहां से  सवाल उन राजनीतिक पार्टियों पर भी कहीं न कहीं जरूर आएगा जो 2024 में मोदी सरकार के खिलाफ ताल ठोक रही हैं।क्योंकि किसान आंदोलन के ऐलान के फौरन बाद राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने किसानों के पक्ष में बयान जारी किये थे

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अपने बड़े नेताओं के पीछे आज कांग्रेस के कुछ दूसरे नेताओं ने ही हुंकार को जुबानी यलगार से जोड़ दिया।.हालांकि ऐसे संवेदनशील समय में उन्हें भी शांति की अपील करनी चाहिए थी।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सियासत के इस यज्ञ में अरविंद केजरीवाल ने भी विरोध की आहुति डाली।दिल्ली सरकार ने बवाना स्टेडियम को अस्थाई जेल बनाने के लिए दिल्ली पुलिस के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि किसान इस देश के अन्नदाता हैं और उन्हें जेल में डालना सही नहीं है. ऐसे में बवाना स्टेडियम को जेल बनाने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। अखिलेश यादव से लेकर असदुद्दीन ओवैसी और किसान नेता राकेश टिकैत भी किसानों के साथ उबलते नजर आए।  हालांकि ये हमला नया नहीं है। इसी पैटर्न पर साल 2020 और 21 में भी सियासी दलों ने सरकार को घेरने की कोशिश की थी।सियासत अपनी जगह है लेकिन सरकार को डर है कि कहीं किसान आंदोलन के बीच उभरी सियासत के बीच कोई षडयंत्रकारी खेल न कर दे। क्योंकि पिछली बार जिस तरीके से किसानों ने लालकिले पर तांडव मचाया था, उससे पूरे देश की छवि धूमिल हो गई थी। किसानों का प्लान तो कुछ ऐसा ही था इस बार भी…लेकिन प्रदर्शनकारियों ने जवानों के सामने एक ना चल पाई।

Shubham Pandey। Uttar Pradesh Bureau

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