Nuh Violence: हरियाणा के नूंह (Nuh Violence) में जो कुछ भी हुआ क्या उसे आप जायज मानेंगे ? दोषी चाहे हिन्दू पक्ष वाले हों या फिर मुस्लिम पक्ष वाले इंसानों की जान लेना कहां का न्याय है ? क्या भगवान भी इसे स्वीकार करते हैं ? क्या अल्लाह भी इसकी इजाजत देते हैं ? कोई भी धर्म तो यही कहता है कि इंसानियत सर्वोपरि है। शांति और सद्भाव सबसे ऊपर है। फिर हिंसा कहां से हुई ? किसने की ? कौन गुनहगार है ? किसके इशारे पर यह सब किया गया ? बहुत से ऐसे सवाल है जिसके जवाब कभी मिलेंगे ही नहीं। कौन देगा जवाब ! सब झूठ ही तो बोल रहे हैं। झूठा आदमी कभी सच बोल सकेगा ? कभी झूठ की गवाही होती है ?
इस दंगे में 6 लोगों की जाने चली गई। क्या वे कसूरवार थे ? उनका कसूर तो यही था न कि वे हिन्दू या मुस्लिम समाज से आते होंगे। लेकिन जो दंगाई थे किसी को तो नहीं छोड़ा। नूंह (Nuh Violence) के बाद पलवल, सोहना, मेवात और फिर गुरुग्राम तक आग लग गई। बहुत कुछ जल गया। कितनों के घर बर्बाद हुए तो कितनों का सब कुछ लूट गया। लेकिन जो दंगाई हैं जो आज भी मजा ले रहे हैं। किसी के खून पर खिलखिला रहे हैं। क्या यह सब कभी बंद हो पायेगा ? बदले की आग बड़ी खतरनाक होती है। सालों तक यह आग मिजाज को सालता रहता है। बदले की आग में जलता इंसान कब क्या कुछ कर दें कौन जानता है? नूंह में यही सब तो हुआ।
जिस ईश्वर की शोभा यात्रा निकाली जा रही थी वह भी शर्मसार हो गए हैं। भगवान और अल्लाह भी समझ रहे होंगे कि इस इंसान रूपी जीव ने तो सबको पछाड़ दिया। भगवान को भी पछाड़ दिया। अल्लाह का भी मजाक बना दिया। खेल उनका और बदनामी हमारी ! दंगा वे करते हैं और नाम हमारा लेते हैं। कोई जय श्रीराम और हर-हर महादेव का नारा लगाता है तो कोई अल्लाह हू अकबर को याद करता है। जबकि हमारी कोई गलती नहीं है। हमने तो प्रेम से सबको रहने का ही आशीर्वाद दिया था लेकिन यह जीव चालाक निकल गया। अपना काम और अपना मकसद पूरा करने के लिए हमारे नाम का प्रयोग करता है। हम बेहद लज्जित हैं मानव समाज के इस व्यवहार से।
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मौजूदा राजनीति ही इस घटना की जड़ है। धर्म की राजनीति कुलांचे मार रही है। कहा जा रहा है कि सबके धर्म खतरे में है। यह सब कहता कौन है ? जरा उनको पहचानिये। यह सब कहने वाले वही कटटर हिन्दू के भेष में भेड़िये हैं तो मुस्लिम के भेष में मौलवी। क्या इनमें से किसी ने शिक्षा ग्रहण की है ? अगर शिक्षित होते तो ऐसा करते ही नहीं। ऊपर से अंधभक्ति ! यह अंधभक्ति ही है जो समाज को ख़त्म कर रहा है। यह समाज कब खतम होगा कोई जानता नहीं। मरना तो सबको है। जो मार रहा है वह भी एक दिन मारा जायेगा। जो मारने की राजनीति करता है वह भी चला जायेगा। लेकिन यह आग नहीं बुझी तो एक दिन सब मारे जायेंगे। इसलिए सबसे पहले उस राजनीति को पहचानने की जरूरत है जो धर्म के नाम पर इंसान को बलि चढ़ाने का खेल करती है। गाैरक्षा तो अच्छी बात है लेकिन गाैरक्षा इंसान की जिंदगी ख़त्म करके कहां का न्याय है ? धर्म का चोंगा तो अच्छी बात है लेकिन धर्म के नाम पर खून बहाने का खेल भला कौन सहेगा ? यह आधुनिक समाज है। लेकिन हम आज भी कबिलाई जिंदगी जीने को तैयार हैं। इस जिंदगी में न तो सभ्यता की पहचान है और न ही संविधान और कानून के प्रति मोह और डर।
ताजा हालात ये है कि आज हर जगह शांति है। कहीं से भी कोई बुरी खबर नहीं आ रही है। हरियाणा की खट्टर सरकार भी मुस्तैद है। इधर सुप्रीम कोर्ट की नजर भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसा कुछ भी न हो और सबसे बड़ी बात जो इस खूनी खेल के दोषी हैं उसे तो दण्डित किया ही जाना चाहिए तभी तो कानून बरकरार रहेगा।